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एक इबादत
कैसे दो राहे पर लाकर आज जिंदगी ने मुझे खडा़ किया है मुश्किल यह है यह राह एक -दूजे के विल्कुल विपरीत है फर्क़ इतना है एक खुद के प्यार की ओर जाता है और दूसरा अपनों का भविष्य सुधारने की ओर ..!! हे देवा! यह कैसी परीक्षा ले रहा है भुला चुका था जिसको मैं निकाल चुका था जिसको हृदय से अचानक गत वर्ष आकर दरवाजे पर खुद ही दस्तक देती है, बेहिचक अवसर देख और खुद को अकेला पा मैने उसे स्वीकार भी कर लिया , #किन्तु अंतराल एक वर्ष का और फिर दो राह जिंदगी में आ पडे़ एक पर चलता हूँ जीवन अपना संवरता है और दूसरे पर चलता हूँ तो अपनों के हर अरमान पूरे कर सकता हूँ... बप्पा तू ही कोई रास्ता दिखा ,अब तो मुझे कुछ समझ नही आ रहा है..!!
हे देवा! यह कैसी परीक्षा ले रहा है भुला चुका था जिसको मैं निकाल चुका था जिसको हृदय से अचानक गत वर्ष आकर दरवाजे पर खुद ही दस्तक देती है, बेहिचक अवसर देख और खुद को अकेला पा मैने उसे स्वीकार भी कर लिया , #किन्तु अंतराल एक वर्ष का और फिर दो राह जिंदगी में आ पडे़ एक पर चलता हूँ जीवन अपना संवरता है और दूसरे पर चलता हूँ तो अपनों के हर अरमान पूरे कर सकता हूँ... बप्पा तू ही कोई रास्ता दिखा ,अब तो मुझे कुछ समझ नही आ रहा है..!!
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#तस्वीर_के_रंग_चाहे_जो_भी_हो….! #किन्तु #मुस्कान_का_रंग… #हमेशा_खुबसूरत_ही_होता_है. ©KS
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण
read more'मनु' poetry -ek-khayaal
ये करुणा... दया... सहानुभूति..!!! विसर्जित कर ही आना अंतिम कूच से पहले, अत्यंत सूक्ष्म रस तो इसमें भी छिपा है, हां सत्य है के तरल, तनु.... आपका व्यक्तित्व हो जाता है इसमें, किन्तु अवलोकन स्वयं का बहुत आवश्यक है जब भाव करुणा, दया के हों सहानुभूति के हों.. ठहर के देख लेना खुद को..!!! रस मिल रहा है क्या ...पोषित तो नही हो रहा अहंकार इसमे...!!ये अंतिम गांठ है जो खुलनी बहुत जरूरी है, सिर्फ मोह ही नही....ये भी मीठे किन्तु विषैले रस से भरे फल हैं ..हालाकिं उद्देश्य परमार्थ ही है, किन्तु फिर भी। इन्हें त्यागना है....यात्रा का अंतिम पूर्णविराम..!!!! 'मनु' अहंकार
अहंकार #Quote
read moreAnkit Bahuguna
तुम शहर हो,मैं गांव हूँ मैं तुम्हारे साथ एकांत चाहता हूं, किन्तु अपने मित्रों और सम्बन्धियों का साथ छोड़कर एकाकीपन नहीं , तुम छोटे से घर तक अपनी दुनिया बनाये रखना चाहती होगी, किन्तु मैं स्वछंद घूमता रहा हूं इस गली से उस गली तक, और उस नीम के दरख़्त से लेकर खेतों तक, तुम्हारी सुबह,शाम और रात ,एक छत, एक बग़ीचे और बाजार तक सीमित है, और मेरे लिए ये सब घर,गाँव, तालाब,दरख़्त, खुले आकाश और जमीन हैं मैं तुमसे मिलना चाहता हूं किन्तु मैं नही चाहता बहुत कुछ मिटा देना, तुम्हारे औऱ मेरे भीतर से भारतीय संस्कृति के दो छोर हैं हम, "तुम शहर हो,मैं गाँव हूं "
Manisha Sharma
दीवारें उखड़ रहीं थीं, मलबा निकल रहा था, मेरे पूरे अस्तित्व का शायद पुनर्निमाण चल रहा था, पर ये ज़रूरी भी था, खुद की थी मैं खुद ही पतवार, था वो बेहद दर्द भरा, थी असहनीय पीड़ा अपार, किन्तु मेरे जीवन का कोई ग्रहण उतर रहा था, दीवारें उखड़ रहीं थीं, मलबा निकल रहा था, मेरे पूरे अस्तित्व का शायद पुनर्निमाण चल रहा था। रुक रुक के लहू के साथ, पस भी निकल रहा था, वो नासूर जिसने सोने ना दिया था कभी, वो उफ़न उफ़न कर मुझ पर वार कर रहा था, था वो दर्द भरा, थी असहनीय पीड़ा अपार, किन्तु मेरे जीवन का कोई ग्रहण उतर रहा था, दीवारें उखड़ रहीं थीं, मलबा निकल रहा था, मेरे पूरे अस्तित्व का शायद पुनर्निमाण चल रहा था।
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
read moreBirjesh Singh
एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं। उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है। महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई। उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी। क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं। " उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया। असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?" 'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।" दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई। महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।" एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है। अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई। कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है | इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।" 'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती... एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा "सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों। यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी। तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा, "मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे। सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..? लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।" और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए। 'सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई। अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है। मैरे पास ये कहानी आई थी। मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों भी बहुत पसंद आएगी। 🇮🇳🇮🇳🙏🏻जय हिन्द🙏🇮🇳🇮🇳 good morning
good morning
read moreManoj dev
उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका। ऊषा जाग उठी प्राची में-कैसी बाट, भरोसा किन का! शक्ति रहे तेरे हाथों में-छुट न जाय यह चाह सृजन की; शक्ति रहे तेरे हाथों में-रुक न जाय यह गति जीवन की! ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढ़ा चीरता जल दिड्मंडल अनथक पंखों की चोटों से नभ में एक मचा दे हलचल! तिनका? तेरे हाथों में है अमर एक रचना का साधन- तिनका? तेरे पंजे में है विधना के प्राणों का स्पन्दन! काँप न, यद्यपि दसों दिशा में तुझे शून्य नभ घेर रहा है, रुक न, यदपि उपहास जगत् का तुझ को पथ से हेर रहा है; तू मिट्टी था, किन्तु आज मिट्टी को तूने बाँध लिया है, तू था सृष्टि, किन्तु स्रष्टा का गुर तूने पहचान लिया है! मिट्टी निश्चय है यथार्थ, पर क्या जीवन केवल मिट्टी है? तू मिट्टी, पर मिट्टी से उठने की इच्छा किस ने दी है? आज उसी ऊध्र्वंग ज्वाल का तू है दुर्निवार हरकारा दृढ़ ध्वज-दंड बना यह तिनका सूने पथ का एक सहारा। मिट्टी से जो छीन लिया है वह तज देना धर्म नहीं है; जीवन-साधन की अवहेला कर्मवीर का कर्म नहीं है! तिनका पथ की धूल, स्वयं तू है अनन्त की पावन धूली- किन्तु आज तू ने नभ-पथ में क्षण में बद्ध अमरता छू ली! ऊषा जाग उठी प्राची में-आवाहन यह नूतन दिन का उड़ चल हारिल, लिये हाथ में एक अकेला पावन तिनका! #hardtime
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 13 - हृदय परिवर्तन 'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था। 'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्
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