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विकास जोधपुरी
मसखरा मशहूर है, आँसू बहानेके लिए बाँटता है वो हँसी, सारे ज़माने के लिए घाव सबको मत दिखाओ, लोग छिड़केंगे नमक आएगा कोई नहीं मरहम लगाने के लिए देखकर तेरी तरक्की, ख़ुश नहीं होगा कोई लोग मौक़ा ढूँढते हैं, काट खाने के लिए फलसफ़ा कोई नहीं है, और न मकसद कोई लोग कुछ आते जहाँ में, हिनहिनाने के लिए मिल रहा था भीख में, सिक्का मुझे सम्मान का मैं नहीं तैयार झुककर उठाने के लिए ज़िंदगी में ग़म बहुत हैं, हर कदम पर हादसे रोज कुछ समय तो निकालो, मुस्कुराने के लिए #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
Truth बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय, किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय। #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
Truth हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय, लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय। #मारवाड़ी#हुल्लड़
विकास जोधपुरी
Truth हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय, फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय। #मारवाड़ी#हुल्लड़