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Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 15 - राधे-श्याम का कुआँ 'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।' मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'
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।।श्री हरिः।। 52 - सखा सत्कार कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है। कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपह
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।।श्री हरिः।। 51 - आज का दिन अत्यन्त दुस्सह, बड़ा क्लेशदायी है आज का दिन। सबसे बुरी बात यह है कि यह प्रत्येक महीने आया ही रहता है। ये ऋषि-मुनि पता नहीं क्यों यह बात नहीं मान लेते कि सब बालकों का जन्म-नक्षत्र एक ही दिन मना लिया जाया करे। अनेक बालकों के जन्म-नक्षत्र एक साथ पड़ते हैं, तब कन्हाई का ही जन्म-नक्षत्र अकेला क्यों पड़ता है? इसका जन्म-नक्षत्र क्यों दूसरों के साथ नहीं पड़ जाया करता? जब जन्म-नक्षत्र पड़ेगा, जिसका भी पड़ेगा, उसे उस दिन पूजा में लगना पड़ेगा। पूजा करना तो अच्छा है; किन्तु उस
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।।श्री हरिः।। 50 - ये असुर अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।' नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज
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।।श्री हरिः।। 48 - गौ-गणना आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है। सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली
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।।श्री हरिः।। 47 - वैद्यराज कृष्ण का नाम ही भवौषधि है, यह बात बड़ी जटा-दाढीवाले ऋषि-मुनियों की अथवा वेद-शास्त्र की। भोले गोप, गोपियाँ इसे नहीं जानते। छोटे गोप-बालक तो भला क्या जानेंगे; किन्तु कन्हाई का स्पर्श सब पीड़ा हर लेता है, यह सबका अपना अनुभव है। कोई आवश्यक नहीं है कि किसी का सिर पीड़ा ही करे। सच तो यह है कि किसी रोग का कोई अधिदेवता ऐसा नहीं जो किसी की उपासना-आराधना के द्वारा दबाव डालने पर भी नन्दब्रज की ओर देखने का साहस कर सके। स्वेच्छा से तो क्या आएगा। अघ और अरिष्ट का अर्थ तो आप जानते
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।।श्री हरिः।। 36 - बाबा के पास 'तुम हाऊ के बाबा हो?' भद्र ने हंसते-हसते ब्रजराज से पूछा। 'मैं हाऊ का बाबा क्यों होने लगा।' बाबा भी हंसे - 'मैं तेरा बाबा हुँ और इस नीलमणिका बाबा हूँ।' 'और दाऊ दादा के, तोक के, अंशु के, तेजस्वी के, देव के, विशाल के....।' कन्हाई एक ओर से सब सखाओं के नाम गिनाता ही चला जा रहा है।
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।।श्री हरिः।। 17 - शीत में इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले
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।।श्री हरिः।। 16 - ऊधमी मैया यशोदा का लाल ऊधमी बहुत है। कब क्या ऊधम करेगा, कुछ ठिकाना नहीं रहता। इससे कुछ खटपट किये बिना रहा नहीं जाता है और लड़कियों को चिढाने, तंग करने का तो जैसे इसे व्यसन है। लडकियाँ भी तो ऐसी हैं कि इससे दूर नहीं रह पाती, किन्तु इसमें बेचारी लड़कियों का क्या दोष है। यह भुवनमोहन है ही ऐसा कि इससे दूर तो पशु-पक्षी भी नहीं रह पाते, मनुष्य कैसे दूर रहेगा। गोपकुमार प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही नन्दभवन आ जाते हैं। जागते ही उन्हें कन्हाई के समीप पहुँचने की धुन चढती है। मातायें
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