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Ghumnam Gautam

White निकल आओ सलीके-से,निकलना ही मुनासिब है
बिना क़िरदार यूँ कब तक रहोगे तुम कहानी में!

©Ghumnam Gautam #City #कहानी 
#क़िरदार #मुनासिब 
#ghumnamgautam

Rabindra Kumar Ram

*** ग़ज़ल *** *** कोई शख्स *** " तुमसे फासले कुछ यूं ही रहेंगे , मुहब्बत के मसले कुछ यूं रहेंगे , दरकिनार करे तो करे क्या करें , तेरे दीद के खातिर यूं ही मिलते रहेंगे . " हुस्न ये लाजवाब ठहरा मेरा इरादा कहीं ग़ैर ठहरा ,

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***  ग़ज़ल *** 
*** कोई शख्स *** 

" तुमसे फासले कुछ यूं ही रहेंगे ,
मुहब्बत के मसले कुछ यूं  रहेंगे ,
दरकिनार करे तो करे क्या करें ,
तेरे दीद के खातिर यूं ही मिलते रहेंगे . "
हुस्न ये लाजवाब ठहरा मेरा इरादा कहीं ग़ैर ठहरा ,
मिलता तबजऔ फिर कहा दस्तक देते हम ,
कोई एहसान तो हो जो मेरे तसव्वुर की तेरी पहचान मिले ,
हसरतें नाकाम से होंगे वेशक इस ऐवज में इस क़फ़स में कैसे रहेंगे ,
यूं देखना तुझे फिर मुनासिब हो ना कभी अपने हलाते-ए-हिज़्र का जिक्र तुझसे कैसे करेंगे ,
मिल की बिछड़ जाना तु फिर कहीं ,
इस ऐवज में क्या हालत नहीं बना रहे ,
फिर कहीं हम कहीं यकीनन तो नहीं मिल रहें ,
रंजूर ये तेरा ताउम्र रहे फिर कहीं तु इस से बाकिफ तो ,
दलीलें देकर खुद अब ये मंज़ूर कर लूं ,
तु हैं तो बेशक वो शक्श मेरे तसव्वुर से मिलता जुलता नहीं ." 

                           --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram ***  ग़ज़ल *** 
*** कोई शख्स *** 

" तुमसे फासले कुछ यूं ही रहेंगे ,
मुहब्बत के मसले कुछ यूं  रहेंगे ,
दरकिनार करे तो करे क्या करें ,
तेरे दीद के खातिर यूं ही मिलते रहेंगे . "
हुस्न ये लाजवाब ठहरा मेरा इरादा कहीं ग़ैर ठहरा ,

Rabindra Kumar Ram

" फिर तेरी याद कहाँ मुनासिब हो ऐसे में, मैं मंसूब हु कब से तेरे ख्याले-ऐ-जिक्र से , जिक्र कर, जिरह कर ले कोई फैसला तो कर, आखिर मैं कब तलक तेरा रहुँ तेरे मुददते मुंतज़िर में . " --- रबिन्द्र राम #मुनासिब #ख्याले-ऐ-जिक्र #मंसूब #जिक्र #जिरह #मुददते #मुंतज़िर

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" फिर तेरी याद कहाँ मुनासिब हो ऐसे में, 
मैं मंसूब हु कब से तेरे ख्याले-ऐ-जिक्र से , 
जिक्र कर, जिरह कर ले कोई फैसला तो कर, 
आखिर मैं कब तलक तेरा रहुँ तेरे मुददते मुंतज़िर में . "

                 ---  रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " फिर तेरी याद कहाँ मुनासिब हो ऐसे में, 
मैं मंसूब हु कब से तेरे ख्याले-ऐ-जिक्र से , 
जिक्र कर, जिरह कर ले कोई फैसला तो कर, 
आखिर मैं कब तलक तेरा रहुँ तेरे मुददते मुंतज़िर में . "

                 ---  रबिन्द्र राम
 #मुनासिब  #ख्याले-ऐ-जिक्र #मंसूब
#जिक्र #जिरह #मुददते #मुंतज़िर

Rabindra Kumar Ram

" चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. " --- रबिन्द्र राम

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" चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, 
बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, 
कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, 
हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, 
मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, 
फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. "

                      ---  रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " चल फिर तुझसे से मिला जाये कही, 
बात जो हो मुनासिब हो वो बात किया जाये, 
कही फिर ये मंजर का‌ एहसास तो हो, 
हम जिस के जद में रहे ओ कही आस पास तो हो, 
मुंशिब होने दे हसरतें ख़याल से भी अब मुझे, 
फुर्कत राब्ता राश‌ नहीं आती अब ये हयाते-ए-हिज्र तेरा. "

                      ---  रबिन्द्र राम

Rabindra Kumar Ram

" फकत ये भी होता कही कुछ‌ बात तो बनता , ना मिलते हम वेशक कभी कहीं मुंतज़िर तुम भी मैं भी बनता. " ये दौर हैं हमारे फासलों का तो क्या किया जाये, फ़ुर्क़त से कभी कही मुनासिब तुम भी मैं भी होगें. " --- रबिन्द्र राम #मुंतज़िर #फासलों #फ़ुर्क़त #मुनासिब

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Rabindra Kumar Ram

" तुम चश्मदिद बन मैं गवाह बन जाऊगा, एक गुनाह के हम दोनों बफादार हो जायेगें. " बात जितनी मुनासिब हो उसे और भी संगीन हम कर जायेगें , आदततन तुझे भी इस गुस्ताखी का हमनवा कर जायेगें . " --- रबिन्द्र राम #चश्मदिद #गवाह #गुनाह #बफादार #मुनासिब #संगीन #गुस्ताखी #हमनवा

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" तुम चश्मदिद बन मैं गवाह बन जाऊगा, 
एक गुनाह के हम दोनों बफादार हो जायेगें. "
बात जितनी मुनासिब हो उसे और भी संगीन हम कर जायेगें , 
आदततन तुझे भी इस गुस्ताखी का हमनवा कर जायेगें . "

                    --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram " तुम चश्मदिद बन मैं गवाह बन जाऊगा, 
एक गुनाह के हम दोनों बफादार हो जायेगें. "
बात जितनी मुनासिब हो उसे और भी संगीन हम कर जायेगें , 
आदततन तुझे भी इस गुस्ताखी का हमनवा कर जायेगें . "

                    --- रबिन्द्र राम 

#चश्मदिद #गवाह #गुनाह #बफादार #मुनासिब #संगीन #गुस्ताखी #हमनवा

Rabindra Kumar Ram

*** कविता *** *** मेरा इश्क़ *** " इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम, कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो, मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते, बेशक इक तरफ़ा इश्क़ होने देते,

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*** कविता *** 
*** मेरा इश्क़ ***

" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, 
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , 
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो,
 मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते,
बेशक इक तरफ़ा इश्क़ होने देते, 
मैं दरिया था मुझे और समन्दर होने देते, 
बेशक आती मौज लहरों की, 
मुझे इस बहाने ही सही मेरा इश्क़ छुपाने तो देते , 
तुम जो कही मुनासिब कर पाते , 
कही किसी रोज बात मुझसे , 
ऐसे में मैं खुद को कहा तक सम्हाल पाता, 
गुमनाम गुमसुदा सा कहीं मेरा इश्क़, 
उलफ़ते-ए-हयात इस बनाम को क्या नाम देते, 
इस ख़्वाहिश से खुद को कहाँ कही और मसरूफ़ रख पता,
मंसूब हुआ हूँ जब से तुम से ऐसे में , 
कहाँ कही खुद को तुझसे बेजार करते. "


                   --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** कविता *** 
*** मेरा इश्क़ ***

" इश्क़ हैं की जनाब क्या बात करे हम, 
उलफ़ते-ए-हयात नवाइस कर तो देते , 
आखिर किस दरिया में उतरते ऐसे में हम,
कुर्बत मुनासिब हो जो भी जैसा भी हो, मैं तुम्हें इस मलाल से छोड़ तो नहीं देते,
बेशक इक तरफ़ा इश्क़ होने देते,

Rabindra Kumar Ram

*** ग़ज़ल *** *** जिरह *** " यूं सोचना तुझे मेरा लाजमी हैं , फकत तुझे भी कुछ एहसास हो तो सही , बेवक्त यूं ही तु‌झे मयस्सर किया करु , कभी तो मेरी बात तेरे लब पे भी आये सही ." तु फकत एहसास सा गुजराता कभी हमनशी ,

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*** ग़ज़ल *** 
*** जिरह *** 

" यूं सोचना तुझे मेरा लाजमी हैं ,
फकत तुझे भी कुछ एहसास हो तो सही ,
बेवक्त यूं ही तु‌झे मयस्सर किया करु ,
कभी तो मेरी बात तेरे लब पे भी आये सही ."
तु फकत एहसास सा गुजराता कभी हमनशी ,
जैसे की चांद अभी अभी बादलों का सय लिया हो सही ,
तकब्बुर क्या करूं मैं कि अभी कुछ बात बन रही ,
यू सोचना तूझे मेरा लाजमी हैं ,
फकत तुझे भी कुछ एहसास हो तो सही ,
मेरे लहजों में तेरा आना अभी उस तरह मुक्कर हुआ ही नहीं ,
दे के सौगात तुम्हें उस तरह मना भी लु तो किसी का क्या जायेगा ,
तेरे दिल में मेरे लिए वो कसक कहीं घर बनाये तो सही ,
ये बात तेरे दिल से कहीं मुनासिब हो भी जायेगा ,
कभी आननफानन में दिल को किसी तरह जिरह कर के मानाये तो सही. " 

                           --- रबिन्द्र राम

©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** 
*** जिरह *** 

" यूं सोचना तुझे मेरा लाजमी हैं ,
फकत तुझे भी कुछ एहसास हो तो सही ,
बेवक्त यूं ही तु‌झे मयस्सर किया करु ,
कभी तो मेरी बात तेरे लब पे भी आये सही ."
तु फकत एहसास सा गुजराता कभी हमनशी ,


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