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अविनाश पाल 'शून्य'
शायद इसीलिए शहर में कहीं भी छप्पर नहीं मिलते, यहाँ तो अर्थी के लिये कन्धे भी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। #स्वरचित © #छप्पर #शहर #अर्थी #शायद #इसीलिए #शून्य #कन्धे
@thewriterVDS
"एक पड़ाव" किसी ने कहा है, मुस्किल वक्त में अपने ही साथ देते हैं, लेकिन मैं नही मानता अरे दुश्मन तो दुश्मन हैं, अपने भी जनाजे में कन्धे बदल देते हैं। कोई यहाँ मुझे अपना नही मिला, माँ भी मिली, पिता भी मिले, बहन भी मिली, भाई भी मिला, दोस्त, दुश्मन, सगे-सम्बन्धी सब मिले, लेकिन कोई भी यहाँ अपना नही मिला। "एक #पड़ाव, आखिरी पड़ाव" किसी ने कहा है, #मुस्किल #वक्त में #अपने ही #साथ देते हैं, लेकिन मैं नही मानता अरे #दुश्मन तो दुश्मन हैं, अपने भी ₹जनाजे में #कन्धे बदल देते हैं।
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 13 - हृदय परिवर्तन 'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था। 'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्
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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 8 - असुर उपासक 'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह
read moreSuraj P Mishra
मेरे कंधे पर बैठा मेरा बेटा .. जब मेरे कंधे पर खड़ा हो गया.. मुझी से कहने लगा... ""देखो पापा मै तुमसे बड़ा हो गया "" मैने कहा कि बेटा.. इस खूबसूरत गलत्फ़हमी मे भले ही जकड़े रहना.. लेकिन मजबूती से मेरा हाथ पकड़े रहना " जिस दिन ये हाथ छूट जायेगा.. बेटा तेरा रन्गीन सपना भी टूट जायेगा दुनिया वास्तव मे इतनी हसीन नहीं है देख तेरे पैरो तले अभी जमीन नहीं है मै तो बाप हूँ. . बेटा बहुत खुश हो जाउन्गा ..जिस दिन तू वास्तव मे बड़ा हो जयेगा मगर मेरे बेटे कन्धे पर नहीं जब तू जमीन पर खड़ा हो जायेगा ये बाप तुझे अपना सब कुछ दे जायेगा.. तेरे कन्धे पर इस दुनिया से चला जाउन्गा!!!🙏🙏🙏 पिता जी
पिता जी
read moreVeer Rathore
गुरुर कर क्या पाएंगे जो कन्धे आज हमने दिये हैं वैसे ही एक दिन चार कन्धे हमको भी ले जाएंगे #NojotoQuote
Anil Siwach
|| श्री हरि: || 30 - अपने लिए 'दादा!' कन्हाई बहुत छोटा था तब से विशाल के कन्धों पर बैठता आया है। गोपियाँ तो हंसी में विशाल को कृष्ण का घोड़ा कहती हैं। अब भी यह विशाल के समीप आता है तो उसके कंधेपर ही बैठता है। दूसरे सखाओं के समान विशाल से सटकर बैठना इसने सीखा नहीं है! अब दौड़ा-दौड़ा आया है और विशाल के कन्धे पर अपने दोनों पैर उसके आगे की ओर करके, उसका सिर पकड़कर बैठ गया है। विशाल सचमुच शरीर से विशाल है। आयु में दाऊ से छोटा होने पर भी ऊचाईं में उससे बड़ा है। जितना ऊँचा, उतना ही तगड़ा। विशाल का आक
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|| श्री हरि: || 23 - भूख लगी है 'दादा, मुझे भूख लगी है।' कन्हाई आकर दाऊ के वाम पार्श्व में बैठ गया है। दोनों भुजाएं अग्रज के कंधे पर सिर रख दिया है इसने। 'तब तु आम खा ले।' दाऊ ने छोटे भाई की अलकों पर स्नेहपूर्वक अपना दाहिना हाथ घुमाया। 'नहीं, आम की भूख नहीं लगी है।' कृष्ण का उदर अद्भुत है। नन्दनन्दन की क्षुधा ऐसी नहीं है कि यह चाहे जिस पदार्थ से बुझ जाय। इसे भूख भी कभी फल की लगती है, कभी दही या नवनीत की लगती है और कभी माखन-रोटी की लगा करती है।
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|| श्री हरि: || 22 - नाम बताओ 'अरे, कौन है? छोड़ भी।' आज तनिक भद्र सखाओं से हटकर तमाल तरु के मूल में आ बैठा था। तमाल की ओट से आकर कन्हाई ने पीछे से उसके दोनों नेत्र अपने करों से बन्द कर लिये भद्र चौंका नहीं; किन्तु उसने अपने दोनों करों से नेत्र बन्द करने वाले के कर कलाइयों से कुछ ऊपर पकड़ लिये। अब यह स्पर्श भी क्या पहिचानने की अपेक्षा करता है? रुनझुन नूपुर भी बजे थे। बहुत सावधानी से आने पर भी कटि की मणिमेखला में कुछ क्वणन हुआ ही था और नन्दनन्दन के श्री अंग से जो उसकी वनमाला में लगी तुलसी का स
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