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अमित ओझा

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भारत महापुरषों का देश है जहाँ एक से बढ़कर एक महापुरुष पैदा हुए, जिनमे वीर कुंवर सिंह भी एक थे.  बिहार की माटी के लाल बाबू वीर कुंवर सिंह को बिहार का बच्चा बच्चा भी जानता है,क्योंकि उनकी आन बान शान और सम्मान में हम सब बचपन से होली और अन्य लोकगीतों में देश के लिए उनके त्याग और बलिदान की कथा सुनते आ रहे हैं.

जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी ब्रिटिश हुकूमत से लड़कर उनके दांत खट्टे कर दिए थे. जी हां आज में 1857 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिहार का नेतृत्व करने वाले वीर सपूत वीर कुंवर सिंह जी की जीवनी के बारे में बताने जा रहा हूँ. 

जी हाँ जैसा की आप सभी अब जानने लगे है की आजादी के बाद कई दशकों तक एक शाजिश के तहत हमारे देश के विभिन्न राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथा को दबाने और महज कुछ जो सत्ता के आस पास रहने वाले थे उनका नाम ऊपर लेन की साजिशें चली और उसका परिणाम ये हुआ की जो जीर शहीद वास्तव में स्मरणीय होना चाहिए उन्हें भुला दिया गया और उन्ही में से एक है हमारे वीर कुंवर सिंह जिनका शौर्य शहीदी दिवस23 अप्रैल को था. 

वीर कुंवर सिंह का जन्म सन 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के  जगदीशपुर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह और माता का नाम महारानी पंच रतन देवी था. इनके पूर्वज मालवा के प्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे. बचपन से ही कुंवर सिंह अपने पूर्वजों की भांति कुशल यौद्धा थे. इनके पास बड़ी जागीर थी लेकिन एस्ट इंडिया कम्पनी ने जबरन कुंवर सिंह की जागीर को हड़प लिया था. जिससे कुंवर सिंह अंग्रेज और ईस्ट इंडिया कंपनी से खफा थे.  वीर कुंवर सिंह की शादी राजा फ़तेह नारायण सिंह की बेटी से हुई जोकि मेवारी सिसोदिया राजपूत थे  जो गया जिले के ज़मींदार थे.

जागीरदार साहेबजादा सिंह के घर पैदा हुए कुंवर सिंह बचपन से ही वीरता एवं साहस का परिचय दे रहे थे.

सन 1848-49 ई• डलहौजी की विलय नीति ने राजों- रजवाड़ो में भय पैदा कर दिया था, जिससे कुंवर सिंह अपनी वीरता दिखाने को आतुर हो उठे.रही- सही कसर नई इनफील्ड रायफलों ने पूरी कर दी, जिससे हिंदुओ एवं मुसलमानों दोनों की धामिॅक भावनाएं आहत हो रही थी.

उस समय अंग्रेजों ने जो किसानों पर अत्याचार किया उससे किसान और आम जनता में अत्यंत ही रोष पैदा हो गया था जिसे वीर कुंवर सिंह ने नेतृत्व प्रदान किया,जिसकी तपिश ने सरकार की चूलें हिला दी.

1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया. मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया. बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी. मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया.

27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा. जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया.।

Birendra Lodhi

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