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shreya upadhayaya
नव रात्रि शक्ति का वो प्रतीक हैं जो नारी को उसके अस्तित्व का बोध कराती हैं जहां नारी अबला नहीं सबला हैं। ©shreya upadhayaya #नवरात्रि #नवरूप #रात्रि #माता #दुर्गा #शक्ति #मां ≋P≋u≋s≋h≋p≋ rasmi Anshu writer Durgesh nandani SURAJ PAL SINGH
Rupam Jha
मेरे सपनों के तहखाने में आती है एक बुढ़िया, झकझोरती है, जगाती है मुझे, मेरे तपते जज्बातों की भट्टी पर बनाती है खूब सारे लजीज व्यंजन, पड़ोसती है थाली मेरे लिए, और फिर सामने से खींच लेती है ! मेरे सपनों के तहखाने में आती है एक बुढ़िया, झकझोरती है, जगाती है मुझे, मेरे तपते जज्बातों की भट्टी पर बनाती है खूब सारे लजीज व्यंजन, पड़ोसती है थाली मेरे लिए, और फिर सामने से खींच लेती है !
मेरे सपनों के तहखाने में आती है एक बुढ़िया, झकझोरती है, जगाती है मुझे, मेरे तपते जज्बातों की भट्टी पर बनाती है खूब सारे लजीज व्यंजन, पड़ोसती है थाली मेरे लिए, और फिर सामने से खींच लेती है !
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दुनिया सिमटी है घर के अंदर,ये वायरस कितना दुखदायी है। भयभीत बैठा हर मानव जेहन,कैसी ये विपदा आयी है। विश्व व्याप्त इस महामारी का भयावहता सर्वविदित है, पर कुछ लोग न बाज आ रहे,जिनकी सोच सीमित है। ज्ञात है इस विकराल बीमारी का कोई उपचार नहीं है, एकाकीपन अपना लो मानव,एकमात्र बचाव यही है। अगर प्यार है अपने राष्ट्र से,मानवता से और प्रियजन से। कुछ दिन रोकिये भाव को अपने,न गढ़िए स्वप्न मिलन के। एक जन की लापरवाही,समूचे जनमानस को तबाह कर सकती है, हमारे भारत की दशा भी चीन-अमरीका-इटली सी हो सकती है। समय रहते ही क्यों न लें हम प्रण कि अपने देश को बचाएंगे, इस मुश्किल क्षण को घर में रह अपने परिवार के संग बिताएंगे। धोएंगे अपने हाथों को बारम्बार,ना किसी से हाथ मिलाएंगे। करते है छोटी सी त्याग,घर से बाहर कुछ दिनों के बाद जाएंगे। इस प्रकृति पर न हक़ है अपना,ये बात खुद को समझाते हैं, पशु-पंछी पौधों-पेड़ों को भी थोड़ा उनका हक लौटाते हैं। सोचो उन गरीबों का जो दो जून रोटी को तरसते हैं, अगर ग्राह्य बन गए कोरोना का तो बच नहीं सकते हैं। गर डॉक्टर,पुलिस व स्वच्छताकर्मी का हम सहयोग करेंगे, विश्वास है हम सब इस मुश्किल क्षण से जल्दी ही उबरेंगे। हर मानव इस वैश्विक महामारी से लड़ने को योद्धा बन सकते हैं। सिर्फ घर बैठ कुछ नहीं कर,हम बहुत कुछ कर सकते हैं। SAME IN CAPTION👇 दुनिया सिमटी है घर के अंदर,ये वायरस कितना दुखदायी है। भयभीत बैठा हर मानव जेहन,कैसी ये विपदा आयी है। विश्व व्याप्त इस महामारी का भयावहता सर्वविदित है, पर कुछ लोग न बाज आ रहे,जिनकी सोच सीमित है। ज्ञात है इस विकराल बीमारी का कोई उपचार नहीं है, एकाकीपन अपना लो मानव,एकमात्र बचाव यही है। अगर प्यार है अपने राष्ट्र से,मानवता से और प्रियजन से।
SAME IN CAPTION👇 दुनिया सिमटी है घर के अंदर,ये वायरस कितना दुखदायी है। भयभीत बैठा हर मानव जेहन,कैसी ये विपदा आयी है। विश्व व्याप्त इस महामारी का भयावहता सर्वविदित है, पर कुछ लोग न बाज आ रहे,जिनकी सोच सीमित है। ज्ञात है इस विकराल बीमारी का कोई उपचार नहीं है, एकाकीपन अपना लो मानव,एकमात्र बचाव यही है। अगर प्यार है अपने राष्ट्र से,मानवता से और प्रियजन से।
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मौन रह जाती हूं अब अक्सर, लब कुछ कहने से पहले थर्रातें हैं। जो इन लाचार बेबस की व्यथा न सुन सका, वो मेरी चीख भला क्या सुनेगा? जिन्हे मौत का भी भय नहीं है, बस दो जून रोटी की चिंता है। उनके भूख की डकार को जो चुपचाप सहता है, वो मेरी आह की आवाज भला क्या सुनेगा? अब सब विद्रोह निरर्थक लगता है, अब ना ही कोई आस बाकी है, इन आंसू को जो मैं शब्द देती हूं, उसे क्या इतनी फुर्सत है,जो भला वो ये पढ़ेगा? होगा कहीं व्यस्त अपने जुमलेबाजी में, कहीं फिर से बहारों का वादा कर रहा होगा। ये जो कल के भविष्य काल के गाल में जा रहे हैं, उसे क्या है भला इससे?उसका भविष्य थोड़ी न बिगड़ेगा। कोई कविता नहीं लिखी गई है महज मेरे दुख़ व क्रोध हैं,खुद को रोक नहीं पाई और चंद पंक्तियां लिखी हूं। ख़ुद को लाचार, बेबस महसूस कर रही हूं कि अपने देश को बचाने के लिए घर में रहने के सिवा और कुछ नहीं कर पा रही हूं।और जिनके पास सत्ता है वो आत्मुग्धता के मारे हैं।अब तो वाकय इन मामलों पर उदासीन रहने का मन करता है,क्या होगा चीख - चिल्ला के कौन सुनेगा हमारी?😓 बहुत भारी मन से ये लिखी हूं और अच्छा तो बिल्कुल नहीं लग रहा है कि इतने दिन के बाद गर कुछ लिखूं तो वो मेरे आंसू लिखवाए।😥 (संभवतः काफी त्रुटियां ह
कोई कविता नहीं लिखी गई है महज मेरे दुख़ व क्रोध हैं,खुद को रोक नहीं पाई और चंद पंक्तियां लिखी हूं। ख़ुद को लाचार, बेबस महसूस कर रही हूं कि अपने देश को बचाने के लिए घर में रहने के सिवा और कुछ नहीं कर पा रही हूं।और जिनके पास सत्ता है वो आत्मुग्धता के मारे हैं।अब तो वाकय इन मामलों पर उदासीन रहने का मन करता है,क्या होगा चीख - चिल्ला के कौन सुनेगा हमारी?😓 बहुत भारी मन से ये लिखी हूं और अच्छा तो बिल्कुल नहीं लग रहा है कि इतने दिन के बाद गर कुछ लिखूं तो वो मेरे आंसू लिखवाए।😥 (संभवतः काफी त्रुटियां ह
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तेरे इश्क़ में डूबी हूं, अक्सर प्रेम गीत गाती हूं, ख्यालों में तेरे ऐसी कि स्वप्न में भी तुम्हें ही पाती हूं। तुमसे मिल के जाना मैंने इश्क़ बड़ा रूमानी है, प्रिय,तेरे बिन अब मेरी अधूरी जिंदगानी है।। मुझे प्रेम लिखने का दिल कभी जो करता है, शब्द लाख होकर भी कागज पे न उतरता है। तेरे मेरे प्रणय की भी एक अलग कहानी है, लाख जज़्बात दिल में हों पर होंठ पे न आनी है।। हाल - ए दिल मेरा तुमसे खामोशियां कहती है, हाथ थाम कर तेरा ख्वाबों में भी चलती है। तुझे कैसे बताऊं प्रियवर कैसी तेरी दीवानी हूं, दिल झूम उठता है सुनके कि मैं ही तेरी रानी हूं।। वीरान दिल में तुमने इश्क़ का दीपक जलाया है, मेरे मनमंदिर को हौसलों से सजाया है, मेरे जीवन में तेरा आना प्यासों का पानी है, थम सा गया जीवन में आई रवानी है।। तुमसे मिलने को हरदम जी मेरा अब करता है, कैसे समझाऊं नादां दिल को,ये न समझता है। तुम जो साथ हो जानां तो जिंदगी सुहानी है, यूं ही तेरे संग रह के अब जिंदगी बितानी है।। •SAME IN CAPTION•👇 तेरे इश्क़ में डूबी हूं, अक्सर प्रेम गीत गाती हूं, ख्यालों में तेरे ऐसी कि स्वप्न में भी तुम्हें ही पाती हूं। तुमसे मिल के जाना मैंने इश्क़ बड़ा रूमानी है, प्रिय,तेरे बिन अब मेरी अधूरी जिंदगानी है।। मुझे प्रेम लिखने का दिल कभी जो करता है, शब्द लाख होकर भी कागज पे न उतरता है।
•SAME IN CAPTION•👇 तेरे इश्क़ में डूबी हूं, अक्सर प्रेम गीत गाती हूं, ख्यालों में तेरे ऐसी कि स्वप्न में भी तुम्हें ही पाती हूं। तुमसे मिल के जाना मैंने इश्क़ बड़ा रूमानी है, प्रिय,तेरे बिन अब मेरी अधूरी जिंदगानी है।। मुझे प्रेम लिखने का दिल कभी जो करता है, शब्द लाख होकर भी कागज पे न उतरता है।
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दिल की तन्हाइयां मन को सताने लगी, आज फिर से तेरी याद आने लगी, स्वप्न में तुम जो फिर आए थे कल, प्रेम नगमा मैं फिर से गुनगुनाने लगी। यूं ही✍️ #yqdidi #yqhindi #love #yqbaba #thoughts #jhapost #नवरूप #अनवरत
Rupam Jha
अनसुलझी पहेली रसोई में खाना बनाने की उत्सुकता से लेकर, आत्मविश्वास की कमी के कारण उसे चखने की प्रक्रिया तक एक ऐसे अप्रत्याशित आदत का लगना जो जीवन के हर मोड़ को चखने के पश्चात ही उस पर विश्वास करने की अनुमति देता है एवं यही अप्रत्याशित आदत किसी व्यक्ति को यायावर बनने पर मजबूर कर देता है। इसके बुरे प्रभाव के बारे में ज्ञात होने के पश्चात भी बारम्बार इसी आदत को दोहराना ये प्रमाणित करने लगता है कि जीवनभर उस व्यक्ति को खतरा मोल लेने का एक शौक गहरा है। जीवन के हर पहलू को चखने के होड़ में कभी कभार अमृत तथा अधिकतर वि
रसोई में खाना बनाने की उत्सुकता से लेकर, आत्मविश्वास की कमी के कारण उसे चखने की प्रक्रिया तक एक ऐसे अप्रत्याशित आदत का लगना जो जीवन के हर मोड़ को चखने के पश्चात ही उस पर विश्वास करने की अनुमति देता है एवं यही अप्रत्याशित आदत किसी व्यक्ति को यायावर बनने पर मजबूर कर देता है। इसके बुरे प्रभाव के बारे में ज्ञात होने के पश्चात भी बारम्बार इसी आदत को दोहराना ये प्रमाणित करने लगता है कि जीवनभर उस व्यक्ति को खतरा मोल लेने का एक शौक गहरा है। जीवन के हर पहलू को चखने के होड़ में कभी कभार अमृत तथा अधिकतर वि
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ग़म एक ऐसा कुबेर का खज़ाना साबित हुआ, जो कभी खाली ही नहीं होता कमबख्त। काश कि वो जरा सी भी होती खुशकिस्मत, और देख पाती उन गमों के पीछे की अदृश्य खुशी। काश कि गम की चारदीवारी में होता एक छोटा सा छिद्र और बस वो छिद्र मात्र भरा होता खुशियों से, ग़म एक साये की तरह लिपटा है उससे, और शायद वो महफूज़ भी है उन गमों के चादर में। जब कोई खुशी उसके करीब आने लगती है, तो गम का साया हो जाता है अत्यधिक प्रबल और होने लगती है अन्तर्द्वन्द खुशी और गम के मध्य, फिर जीत जाता है गम आखिरकार, और पुनः बनाने लगता है उसे अपना ग्राह्य। (I don't know what i wrote)😌 #yqdidi #yqhindi #yqlife #sadness #jhapost #नवरूप #अनवरत