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Sanket Kashid
हमारी अफवाह के #धुंए वही से #उठते हैं, जहॉं हमारे #नाम से #आग लग जाती हैं🔥🔥 #शब्दांचा_जादूगर... #संकेत काशिद
dayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreAVIZ RAJ SINGH(Mightier_pen✍)
मसरूर हो उठते थे हम ,उन्हे मसरूफ देख कर मशगूल हो उठते थे हम ,उन्हे मारी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया करतीं थीं वो ,अपनी मौसकी भरी नजरों से मगरूर हो उठते थे हम ,उन्हे 'हमे' मकबूल देख कर मसरूर = खुश , आनंद मसरूफ = काम मे लगा देख के मशगूल = वयस्त मौसकी = संगीत मगरूर = घमंडी मकबूल= मान्य,कबूल करना #yourquote #quote #stories #qotd #quoteoftheday #wordporn #quotestagram #wordswag #wordsofwisdom #inspirationalquotes #writeaway #thoughts #poetry #instawriters #writersofinstagram #writersofig #writersofindia #igwriters #igwritersclub
मसरूर = खुश , आनंद मसरूफ = काम मे लगा देख के मशगूल = वयस्त मौसकी = संगीत मगरूर = घमंडी मकबूल= मान्य,कबूल करना #yourquote #Quote #Stories #qotd #quoteoftheday #wordporn #quotestagram #wordswag #wordsofwisdom #inspirationalquotes #writeaway #Thoughts #Poetry #instawriters #writersofinstagram #writersofig #writersofindia #igwriters #igwritersclub
read moreDeepak Kashyap
#OpenPoetry टूटे टूटे आइने भी अक्सर कुछ बोल उठते हैं हम उसकी आहट सी सुनते है चौंक उठते है
ARZ-ए-SAYED
मैं उठते उठते संभल जाऊंगा तुमने गिरा तो दिया है ज़ाहिर नहीं की है कोई बात ,मगर एहसान जाता तो दिया है। Arz - ए- Sayed मैं उठते उठते संभाल जाऊंगा तुमने गिरा तो दिया है, ज़ाहिर नहीं की है कोई बात , मगर, एहसान जाता तो दिया है। Arz - ए- Sayed
मैं उठते उठते संभाल जाऊंगा तुमने गिरा तो दिया है, ज़ाहिर नहीं की है कोई बात , मगर, एहसान जाता तो दिया है। Arz - ए- Sayed
read moreVishal Kashyap Rajpoot
लिखता हूँ जब भी तेरे बारे में , ना जाने क्यों लोग जल उठते है। जब भी आते हो तुम मेरे सामने, तेरी ओर ये कदम चल उठते है। #love #girlfriend #boyfriend #shayari Sachin Joshi Kavita Rani Pradeep Kumar Khushboo Rani Mamta
#Love #Girlfriend #boyfriend #Shayari Sachin Joshi Kavita Rani Pradeep Kumar Khushboo Rani Mamta
read moreRomesh Rajpoot
#हमारी #अफवाह के #धुंए ? #वही से #उठते है जहाँ #हमारे #नाम से #आग लग #जाती हैं
Neetu Sahu
"पापा" आज भी अगर चलते_चलते थक जाऊँ तो "मोटी हो गई है "तू ये कह कर पीठ पे उठा लेते है पापा👤, शाम को थक हार कर घर लौटते ही नज़र न आऊँ तो कहाँ है बेटा ये पुकार उठते हैं पापा👤, सुबह लेट उठने पर आज भी जगाते जगाते माथा चूम लेते हैं पापा👤, कभी -कभी कितने दिनों से pocket money नही दी ये कह कर पैसे थमा देते है पापा 👤, सफर करते वक़्त कही bikeपर नींद ना लग जाए ये सोचकर मुझे आज भी अपने तौलिये से बांध लेते है पापा👤, कभी रूठ जाऊं तो मेरा हीरा हैं तू ये कह कर मना लेते हैं पापा 👤, आज भी अगर उनके सामने रो दूँ तो मेरे साथ रो उठते है पापा👤, अंदर से पूरे नरम पर फिर भी थोड़ी सख्तियत दिखाते हैं पापा👤,में क्या कहूँ, क्या हैं पापा बस मेरी दुनिया मेरा जहां हैं पापा👤, happy Father's day ❤👤
happy Father's day ❤👤
read moreUtkarsh Trivedi
क्यों उठते-उठते सोंचा था , दिन में होगी कुछ बात नयी...? लो दिन बीता लो, रात गयी...। लो दिन बीता लो, रात गयी...।
लो दिन बीता लो, रात गयी...।
read morethe.poem_writer
तुम मुस्कुरा दो एक बार तो फूल खिल उठते है देख के मुस्कान तुम्हारी, दुश्मन भी जल उठते है तुम चलो जब जब लहराती हवा सी कभी ह्रदय रूपी वन में जैसे मोर नाँच उठते है तुम जब जब जुल्फ खोलो काली घटा सी अपनी मानो रातों के वो जुगनू भी गुन गुना उठते हैं तुम बोलती हो जब अपने मंद सुरीले अंदाज़ में तो हर तरफ मानो सितार बज उठते हैं जिस तरफ देख लो तुम अपनी नज़र भर के बचता नही कोई सब गिर गिर के संभलते हैं हम क्या तारीफ करें अब तुम्हारी, तुम वो हो जिस से मिलने को भीड़ के सैलाब उमड़ उठते हैं #the.poem_writer मुस्कुरा दो
मुस्कुरा दो
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