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शिवानन्द
जिंदगी तेरा दिगम्बर होना बाकी है रसिक तों हम है तेरे.. मगर तेरा थोड़ा सरल होना बाकी है। ~~शिवानन्द #जिंदगी #दिगम्बर #रसिक #सहज #yqbaba #quote #yqdidi
Shiv Shilpi
अम्बर पहन दिशाओं के,धर्म अहिंसा सिखलाया। आत्मा से परमात्मा होकर,महावीर ने दिखलाया।। ©Shiv Shilpi #Nojoto #दिगम्बर
Prakash Shukla
हे शिव,शम्भू,हे माहेश्वर।हे वामदेव,हे शशिशेखर।हे पिनाकी, विपर्दी,विरूपाक्ष।हे नीललोहित, हे ललाटाक्ष। हे भगवन,शंकर,हे अष्टमूर्ति।हे अनीश्वर, हे त्रयीमूर्ति।हे सामप्रिय, हवि स्वरमयी।हे यज्ञमय,अज,प्रजापति। हे शिपिविष्ट, हेशूलपाणि।हे देव श्रीकण्ठ ,खटवाँगी।हे भक्तवत्सल, अंबिकानाथ।हे भव,शर्व ,कैलाशवासी। हे विष्णुवल्लभ हे त्रिलोकेश।हे उग्र ,कपाली,व्योमकेश।हे महाकाल, हे गंगाधर।हे कृपानिधि, हे विश्वेश्वर। हे कठोर ,कवची,त्रिपुरान्तक।हे अनघ ,गिरीश,गिरीश्वर।हे सोम,वीरभद्र, हे गणनाथ।हे पुराराति, भर्ग,हे सहस्रपाद। हे भगवान मृत्युंजय, सूक्ष्मतनु।हे भीम,वृषांक, खण्डपरशु।हे परशुहस्त, रुद्र, मृगपाणी।हे जटाधार, हरि,स्वरमयी। हे सर्वज्ञ, सोमसूर्याग्निलोचन।हे परमात्मा, हे पाशविमोचन।हे वृषभारूढ़,हे सामप्रिय।हे गिरिधन्वा, हे गिरिप्रिय। हे अनंत, हे अपवर्गप्रद।हे सहस्राक्ष, हे भगनेत्रविद।हे दक्षध्वरहर,हे परमेश्वर।हे अनेकात्मा, हे दिगम्बर। हे कृत्तिवासा, हर तारक।हे हरि,अव्यग्र,मृड,सात्विक।हे सदाशिव,हे भूतपति।हे पंचवक्त्र, हे पशुपति। हे महादेव, अव्यय, शाश्वत।हे प्रमयाधिप,हे अव्यक्त।हे दुर्धुर्ष, हे भूस्मोद्धूलितविग्रह।हे हिरण्यरेता,भुजंगभूषण, शुद्धविग्रह। हे पूषदेन्तभित्,दिगम्बर,स्थाणु।हे अहिर्बुध्न्य,चारुविक्रम, जगत्गुरू। हे जगत्व्यापी, महासेनजनक। महाकाल के शत् नाम प्रकाश महाकाल के शत् नाम
महाकाल के शत् नाम
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।।श्री हरिः।। 26 - विनाद 'आ, दूध पीयेगा?' श्रीव्रजराज दोनों घुटनों में दोहनी दबाये गो-दोहन कर रहे हैं। पीछे कौन आकर खड़ा हुआ, यह जानने की उन्हें आवश्यकता नहीं। दाऊ, श्याम, भद्र, सूबल, तोक - कोई भी हों बाबा के लिए सब अपने ही हैं। नूपूरों की रुनझुन ध्वनि से केवल इतना समझा उन्होंने कि कोई शिशु है और वह उनके पीछे उनके कंधे को सहारा बनाकर खड़ा हुआ है। 'ले, मुख खोल तो!' बाबा ने देखा कि उनका कृष्ण अब उनके पीछे से सामने आ खड़ा हुआ है। यह अभी-अभी नींद से उठकर, मैया की आंख बचाकर गोष्ठ में चला आया है। अल
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।।श्री हरी।। 13 - स्नान 'दादा! स्नान करेगा तू?' कन्हाई अग्रज के समीप दौड़ा-दौड़ा आया और वाम पार्श्व में खड़े होकर दोनों भुजाएँ भाई के कण्ठ में डालकर कन्धे पर सिर रखकर बड़े स्नेहपूर्वक पूछ रहा है। 'स्नान?' दाऊ ने तनिक सिर घुमाया। वे इस पूछने का अर्थ जानते हैं। श्यामसुंदर स्नान करना चाहता है। शैशव से यह जल पाते ही उसमें लोट-पोट होने में आनन्द मनाता रहा है।स्नान योग्य जल हो तो स्नान करने को इसका मन मचल पड़ता है। लेकिन मैया ने बार-बार मना किया है कहीं यमुना अथवा सरोवर में स्नान करने को। सखाओं को म
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23 - भेंट || श्री हरि: || 'दादा!' बड़ी कठिनाई तो यह है कि इस समय सिर उठाकर इधर-उधर देखा नहीं जा सकता और यह दाऊ तो पूरा
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