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Mukesh Poonia
अकेलापन ही हमें हमारे लक्ष्यो की तरफ खींचता है। . ©Mukesh Poonia #kinaara #अकेलापन ही हमें हमारे #लक्ष्यो की #तरफ #खींचता है।
Vicky Khatri
ये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ। आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है। महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहींये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ। आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है। महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहीं चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता! आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है । नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं। यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है। चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता! आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है । नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं। यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है।
Anil Siwach
राम - श्याम की झांकी -1 || श्री हरि: || 'उठ! तल!' दिगम्बर स्वर्णगौर छोटा-सा दाऊ अपने छोटे भाई का पलना पकड़कर खड़ा है। यह समझ नहीं पाता कि क्यों उसका अनुज उसके साथ खेलने नहीं चल सकता है।
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