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Sanjay Gurav
मनाच्या अवकाशात कुट्ट मेघांछी दाटी मी सोडवायच्या चिंतेत तुझ्या वेगळ्या वाटाघाटी.. ©Sanjay Gurav #City #अवकाश #मेघ #चारोळी
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read morePravesh Kumar
ज्वार भावनाओं के, उमड़ते आते हैं, आज दिल से, दिल की बात, हम बताते हैं, पड़ाव अवकाश का भी, सुखद तो है लेकिन, देखते नहीं बनता, कि आप जाते हैं, हमारे शाखा प्रबंधक महोदय की सेवा निवृत्ति के अवसर पर #मेरीक़लमसे #भावना #ज्वार #सेवानिवृत्त #दिल #दिल_की_बात #अवकाश 🙏🙏🙏
हमारे शाखा प्रबंधक महोदय की सेवा निवृत्ति के अवसर पर #मेरीक़लमसे #भावना #ज्वार #सेवानिवृत्त #दिल #दिल_की_बात #अवकाश 🙏🙏🙏
read morepoliteocean
ना कभी था बैर, पर था तो सरोकार, इजाज़त हो ना हो, ओढ़ना तो होगा बैराग... #बैरागी #सरोकार #अवकाश #yqbaba #yqtales #yqhindi #myquote
Alok Vishwakarma "आर्ष"
शीत ऋतु के वार का, सावन के इंतज़ार का, आज "आभास" है । आज अवकाश है... आज आभास है... #anki_ki_baate #आभास #अवकाश #hindi #प्यार
आज अवकाश है... आज आभास है... #anki_ki_baate #आभास #अवकाश #Hindi #प्यार #yqbaba #yqdidi #alokstates
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
read moreMahendra Joshi
#2YearsOfNojoto निहारूंगा कल सौंदर्य असीम आज मुझे अवकाश नहीं है . प्रताड़ित हैं मेरे उद्गार और स्नेह का सिंधु अपार कल करना ये प्यार की बातें आज मुझे अवकाश नहीं है . महेन्द्र जोशी
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया
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