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Arun K.

जिसे समझा था बेईमान हमनें वो ईमानदार निकला
बेइज्जती हो गई सरेआम जिसकी वो शहर का इज्जतदार निकला
पकड़ा गया जिस इलाके में वो चोरी करते हुए
उस इलाके का दरोगा उसका यार निकला #hindipoetry #arun#nojotolove #funny

आदी अधूरा

●◆Megha Maitrey◆● Army is good जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व तक जहां भी Indian Army तैनात हैं, वहाँ से सैनिको द्वारा औरतों के साथ दुर्व्यवहार और बलात्कार की खबर मिलती रहती है। एक आम भारतीय भले ही आर्मी का महत्व समझता हो, उसे सपोर्ट करता हो, पर लगातार आती ऐसी खबरें कहीं ना कहीं आर्मी के चरित्र के प्रति उसके दिमाग में नकारात्मक छवि तो बनाती ही है। मैं दुनिया की किसी भी organization को दूध का धुला नहीं मानती। औरत के साथ दुर्व्यवहार करने वाला चाहे कोई भी हो उसे सजा मिलनी ही चाहिये, आर्मी अपवाद

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●◆Megha Maitrey◆●
Army is good 
जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व तक जहां भी Indian Army तैनात हैं, वहाँ से सैनिको द्वारा औरतों के साथ दुर्व्यवहार और बलात्कार की खबर मिलती रहती है। एक आम भारतीय भले ही आर्मी का महत्व समझता हो, उसे सपोर्ट करता हो, पर लगातार आती ऐसी खबरें कहीं ना कहीं आर्मी के चरित्र के प्रति उसके दिमाग में नकारात्मक छवि तो बनाती ही है।

मैं दुनिया की किसी भी organization को दूध का धुला नहीं मानती। औरत के साथ दुर्व्यवहार करने वाला चाहे कोई भी हो उसे सजा मिलनी ही चाहिये, आर्मी अपवाद

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह?  वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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Story of Sanjay Sinha 
 कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? 
वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं।
अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम


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