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Priya Dubey

#मणि करनिका

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
2 – ग्रह-शान्ति

'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
2 – ग्रह-शान्ति

'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 52 - सखा सत्कार कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है। कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपह

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।।श्री हरिः।।
52 - सखा सत्कार

कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है।

कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपह

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 48 - गौ-गणना आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है। सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

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।।श्री हरिः।।
48 - गौ-गणना

आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है।

सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 43 - किसकी वर्षगांठ? कन्हाई आज इतना क्यों व्यस्त है, यह बात गोप कुमारों की समझ में नहीं आयी। आज गोचारण से लौटने के पर्याप्त पूर्व से यह गुञ्जा, पिच्छ और पता नहीं क्या-क्या एकत्र करने लगा था। सायंकाल तो गोपकुमार शृंगार करते नहीं। शृंगार तो वन में आते ही हो जाता है। अब घर लौटने पर तो सब शृंगार उतारकर मैया स्नान करवेगी। तब इस सब संग्रह का प्रयोजन? 'तू यह सब इस समय क्यों एकत्र कर रहा है? इसका क्या करेगा?' श्रीदाम ने पूछ लिया। 'करूंगा - मुझे चाहिये!' कन्हाई सीधे उत्तर नहीं देता तो को

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।।श्री हरिः।।
43 - किसकी वर्षगांठ?

कन्हाई आज इतना क्यों व्यस्त है, यह बात गोप कुमारों की समझ में नहीं आयी। आज गोचारण से लौटने के पर्याप्त पूर्व से यह गुञ्जा, पिच्छ और पता नहीं क्या-क्या एकत्र करने लगा था। सायंकाल तो गोपकुमार शृंगार करते नहीं। शृंगार तो वन में आते ही हो जाता है। अब घर लौटने पर तो सब शृंगार उतारकर मैया स्नान करवेगी। तब इस सब संग्रह का प्रयोजन?

'तू यह सब इस समय क्यों एकत्र कर रहा है? इसका क्या करेगा?' श्रीदाम ने पूछ लिया।

'करूंगा - मुझे चाहिये!' कन्हाई सीधे उत्तर नहीं देता तो को

Anil Siwach

।। श्री हरि।। 14 - नवीन परिभाषा कन्हाई नवीन-नवीन परिभाषाएँ बनाता रहता है। यह कब किस शब्द या क्रिया की क्या परिभाषा बना देगा, ब्रह्मा भी नहीं समझ सकते। अाज नियुद्ध-मल्लयुद्ध की सूझ गयी थी! गोचाण के लिए वन में आने पर बालकों का प्रतिदिन का बंधा क्रम है कि पहुंचते ही सब इधर-उधर बिखर जायेंगे। खड़िया, गैरिक, हरताल आदि वन-धातुएँ तथा नाना रंगों के कुसुम, किसलय, गुञ्जा, पक्षियों के गिरे पंख संग्रह करने रहते हैं। अपनी सामग्री एकत्र हुई और जुट जायेंगे एक दूसरे को सजाने-शृंगार करने में। दाऊ दादा और

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।। श्री हरि।।
14 - नवीन परिभाषा  

कन्हाई नवीन-नवीन परिभाषाएँ बनाता रहता है। यह कब किस शब्द या  क्रिया की क्या परिभाषा बना देगा, ब्रह्मा भी नहीं समझ सकते।

अाज नियुद्ध-मल्लयुद्ध की सूझ गयी थी! गोचाण के लिए वन में आने पर बालकों का प्रतिदिन का बंधा क्रम है कि पहुंचते ही सब इधर-उधर बिखर जायेंगे। खड़िया, गैरिक, हरताल आदि वन-धातुएँ तथा नाना रंगों के कुसुम, किसलय, गुञ्जा, पक्षियों के गिरे पंख संग्रह करने रहते हैं। 
 
अपनी सामग्री एकत्र हुई और जुट जायेंगे एक दूसरे को सजाने-शृंगार करने में। दाऊ दादा और


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