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खामोशी और दस्तक

..दो साल पहले मेरी गाड़ी से एक छोटा सा एक्सिडेंट हो गया था उस समय मै कार चलाना सीख ही रही थी , ज्यादा नुकसान भी नही हुअा था तो मामला निपटा लिया गया था पर ताकीद दे दी गईं थी की एक दो बार कोर्ट आना पड सकता है , मैं लगभग भूल ही चुकी थी सब पर दो साल के बाद कोर्ट से बुलावा आया और मै तय समय से कुछ पहले ही कोर्ट पहुच गयी और इंस्पेक्टर का इंतज़ार करने लगी ,मेरी नज़र पेड़ के नीचे बैठी एक महिला पर पड़ी ...काफ़ी बुजुर्ग थी फटे हुए कपड़े ..कमर झुकी हुई ..चेहरे पर झुर्रिंयाँ , आँखे अंदर तक धँसी हुई , टूट

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बूढी औरत -न्यायपालीका ..दो साल पहले मेरी गाड़ी से एक छोटा सा एक्सिडेंट हो गया था उस समय मै  कार चलाना सीख ही रही  थी , ज्यादा नुकसान भी नही हुअा था तो मामला निपटा लिया गया था पर  ताकीद दे दी गईं थी की एक दो बार कोर्ट आना पड  सकता है , मैं लगभग भूल ही चुकी थी  सब पर दो साल के बाद कोर्ट से बुलावा आया और मै तय समय से कुछ पहले ही कोर्ट पहुच गयी  और इंस्पेक्टर का इंतज़ार करने लगी ,मेरी  नज़र पेड़ के नीचे बैठी एक महिला पर पड़ी ...काफ़ी बुजुर्ग थी फटे हुए कपड़े ..कमर झुकी हुई ..चेहरे पर झुर्रिंयाँ , आँखे अंदर तक धँसी हुई , टूट

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 7 - निष्ठा की विजय 'मैं महाशिल्पी को बलात्‌ अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
7 - निष्ठा की विजय

'मैं महाशिल्पी को बलात्‌ अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के

Narendra Singh Yadav

तीर्थ दर्शन / राजसत्ता सुख दिलाने वाला है मां पीतांबरा सिद्धपीठ, 1935 में हुई थी मातृ शक्ति की आराधना नवरात्र पर्व में देश के विभिन्न मंदिरों पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस मौके पर आपको मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर के बारे में बता रहे हैं। इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो सभी ने माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।। ऐेसा म

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 तीर्थ दर्शन / राजसत्ता सुख दिलाने वाला है मां पीतांबरा सिद्धपीठ, 1935 में हुई थी मातृ शक्ति की आराधना नवरात्र पर्व में देश के विभिन्न मंदिरों पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस मौके पर आपको मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर के बारे में बता रहे हैं। इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो सभी ने माता का आशीर्वाद प्राप्त किया।। ऐेसा म

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
13 - ज्ञानी

आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 41 - बताऊँ? मैया अपने लाल के "बताऊं" से घबड़ाती है। वह जानती है कि यह चपल "बताऊँ" कहकर पता नहीं क्या-क्या बललाने लगेगा और फिर स्नान कलेऊ सब भूल जाएगा। 'बताऊं मैया!' कन्हाई के कहते ही मैया हंसकर कह देती है - 'अभी तू अपना बतलाना रहने दे। पहिले हाथ-मुख धो और कुछ खा। दिन भर तो वनमें घूमता रहा है, तुझे भूख लगी होगी।' 'बताऊँ मैया, यह तोक कैसे फुदकता है।' कृष्ण को प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ बतलाना रहता है। वन से लौटते ही मैया के कण्ठ से जा लिपटता है और फिर कुछ बतलाना चाहता है। बतलाने की सैं

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।।श्री हरिः।।
41 - बताऊँ?

मैया अपने लाल के "बताऊं" से घबड़ाती है। वह जानती है कि यह चपल  "बताऊँ" कहकर पता नहीं क्या-क्या बललाने लगेगा और फिर स्नान कलेऊ सब भूल जाएगा।

'बताऊं मैया!' कन्हाई के कहते ही मैया हंसकर कह देती है - 'अभी तू अपना बतलाना रहने दे। पहिले हाथ-मुख धो और कुछ खा। दिन भर तो वनमें घूमता रहा है, तुझे भूख लगी होगी।'

'बताऊँ मैया, यह तोक कैसे फुदकता है।' कृष्ण को प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ बतलाना रहता है। वन से लौटते ही मैया के कण्ठ से जा लिपटता है और फिर कुछ बतलाना चाहता है। बतलाने की सैं

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 6 - न्यायशास्त्री 'अरे, तूने फिर ये कपि एकत्र कर लिये?' माँ रोहिणी जानती हैं कि इस नीलमणिके संकेत करते ही कपि ऊपर से प्रांगण में उतर आते हैं। उन्हें डर लगता है, कपि चपल होतें हैं और यह कृष्णचन्द्र बहुत सुकुमार है। यह भी कम चपल नहीं है। चाहे जब कपियों के बच्चों को उठाने लगता है। उस दिन मोटे भारी कपि के कन्धे पर ही चढ़ने लगा था। कपि चाहे जितना इसे माने, अन्नत: पशु ही हैं। वे इसे गिरा दे सकते हैं। माता बार-बार मना करती है कि - 'कपियों को प्रांगण में मत बुलाया कर! मैं इनके लिए भवन

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|| श्री हरि: || 
6 - न्यायशास्त्री

'अरे, तूने फिर ये कपि एकत्र कर लिये?' माँ रोहिणी जानती हैं कि इस नीलमणिके संकेत करते ही कपि ऊपर से प्रांगण में उतर आते हैं। उन्हें डर लगता है, कपि चपल होतें हैं और यह कृष्णचन्द्र बहुत सुकुमार है। यह भी कम चपल नहीं है। चाहे जब कपियों के बच्चों को उठाने लगता है। उस दिन मोटे भारी कपि के कन्धे पर ही चढ़ने लगा था। कपि चाहे जितना इसे माने, अन्नत: पशु ही हैं। वे इसे गिरा दे सकते हैं।

माता बार-बार मना करती है कि - 'कपियों को प्रांगण में मत बुलाया कर! मैं इनके लिए भवन

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 13 - ज्ञानी आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।। कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।। 'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा। 'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था।

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|| श्री हरि: ||
13 - ज्ञानी

आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भविंत इत्थम्भूतगुणो हरि:।।

'तुम काश्मीर से स्वास्थ्य सुधार आये?' श्रीस्वामीजी ने समीप बैठे एक हृष्ट-पुष्ट संम्भ्रान्त नवयुवक से पूछा।
'जी, अभी परसों ही घर लौटा हूँ। लगभग छ: महीने लग गये वहाँ। बड़ा रमणीक प्रदेश है।' युवक संभवत: बहुत कुछ कहना चाहता था।


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