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mukesh verma
❇शर्त❇ तुम्हें भूलने की खुद से एक शर्त लगा रखी है, मयखाने के आगंन में मैंने भी अपनी एक महफिल सजा रखीं है। पतंगे की एक जिद थी आसमान में चमकते उस चांद को पाने की, एक सपना था इन गर्म थपेड़ों से कहि दूर जाकर एक नई दुनिया बसाने की, मीट जाए सभी यादें उस बुरे से सपने की, इसलिए मैंने भी अपने हाथों में शराब की बोतल उठा रखी हैं, तुम्हें भूलने की खुद से एक शर्त लगा रखी है, मयखाने के आगंन में मैंने भी अपनी एक महफिल सजा रखीं है। वो भेड़, बकरियां, लकड़बघे, वो कुकरमुते , मेरे इस हालत पर हसते है तो हसने दो, श्मशान घाट में पड़ी वो कटी- फटी लाशें मेरे इस बर्बादी पर तंज कसती है कसने दो, ये मेरे हमदम, किस बात का है अब डर मुझे, मैंने तो तेरे होठों का जाम अपने होठों से लगा रखी है , तुम्हें भूलने की खुद से एक शर्त लगा रखी है, मयखाने के आगंन में, मैंने भी अपनी एक महफिल सजा रखीं है। तेरी झील सी आंखें फिर से मेरे खिलाफ कोई साजिश न कर दे, तेरी सांसो की खुश्बू फिर से मुझे मदहोश न करें, इसलिए अपने दिल को जलाने के लिए, मैंने भी पैमाना बढ़ा रखी है| तुम्हें भूलने की खुद से एक शर्त लगा रखी है, मयखाने के आगंन में , मैंने भी अपनी एक महफिल सजा रखीं है। 🙏 ✍mukesh kumar #शर्त#mahfil#लकड़बघे#lase#होंठ #jhil#thanks
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