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Sunita D Prasad
नहीं! अभी अंत नहीं होगा प्रेम और अनुग्रहों का भले ही देवालयों के प्रस्तर से टकराकर लौट ही क्यों न आएँ अनगिनत प्रार्थनाएँ! और छिटक कर सृष्टि में रूपांतरित हो जाएँ कभी पुष्पों में कभी जुगनुओं में तो कभी कवि की कविताओं में। हे देव! मेरी कविताएँ भी तुम्हारी चौखट से अनसुनी लौट आईं वही प्रार्थनाएँ हैं। आज भी तुम्हारे अनुग्रह की प्रतीक्षा में बाट जोहती। . . . स्वीकारो!! --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #अनुग्रह..... नहीं! अभी अंत नहीं होगा प्रेम और अनुग्रहों का भले ही देवालयों के प्रस्तर से
#अनुग्रह..... नहीं! अभी अंत नहीं होगा प्रेम और अनुग्रहों का भले ही देवालयों के प्रस्तर से
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प्रथमेश..💓🙏 सदा भवानी वाहिनी गौरी पुत्र गणेश, साथ देव रक्षा करें ब्रह्मा,विष्णु ,महेश...💓 . मंगलाचरण का प्रारम्भ तुलसीदास जी ने दोहा/सोरठा रूप में ऐसे किया है... जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।। (बालकाण्ड)
सदा भवानी वाहिनी गौरी पुत्र गणेश, साथ देव रक्षा करें ब्रह्मा,विष्णु ,महेश...💓 . मंगलाचरण का प्रारम्भ तुलसीदास जी ने दोहा/सोरठा रूप में ऐसे किया है... जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।। (बालकाण्ड)
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 1 - जिन्हें दोष नहीं दीखते 'आप निर्दोष हैं। आराध्य का आदेश पालन करने के अतिरिक्त आपके पास ओर कोई मार्ग नहीं था।' आचार्य शुक्र आ गये थे आज तलातल में। पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल , रसातल और पाताल। इनमें तीसरा लोक सूतल भगवान् वामन ने बलि को दे रखा है। उसके नीचे अधोलोंको का मध्य लोक तलातल मायावियों के परमाचार्य परम शैव असुर-विश्वकर्मा दानवेन्द्र मय का निवास है। सुतल में बलि की प्रतिकूलता का प्रयत्न करने वाले असुर
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 16 – भाग्य-भोग 'भगवन! इस जीव का भाग्य-विधान?' कभी-कभी जीवों के कर्मसंस्कार ऐसे जटिल होते हैं कि उनके भाग्य का निर्णय करना चित्रगुप्त के लिये भी कठिन हो जाता है। अब यही एक जीव मर्त्यलोक से आया है। इतने उलझन भरे इसके कर्म है - नरक में, स्वर्ग में अथवा किसी योनि-विशेष में कहाँ इसे भेजा जाय, समझ में नहीं आता। देहत्याग के समय की इसकी अन्तिम वासना भी (जो कि आगामी प्रारब्ध की मूल निर्णायिका होती है) कोई सहायता नहीं देती। वह वासना भी केवल देह की स्
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कुमार ने महर्षि भृगु की सेवा में रहकर। महाआथर्वण का वह शिष्य स्वभाव से वीतराग, अत्यन्त तितिक्षु था। उसे गार्हस्थ्य के प्रति अपने चित्त में कोई आकर्षण प्रतीत नहीं हुआ। 'वत्स! तुम स्वयं देखकर निर्णय करो!' आज का युग नहीं था। शिष्य गुरुदेव के समीप गया और उसके कान में एक मन्त्र पढ दिया गया। वह अपने गुरुदेव के सम्प्रदाय मे दीक्षित हो गया। यह कौन सोचे कि उस जीव का भ
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