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s....ishu
एक ही तो जिंदगी मिली है क्यों ना इसमें गम के आगे भी मुस्कुरा दू हर राह पर काटे है क्यों ना इन्हे फूलों से सजा दू इश्क़ में आशिक़ के पीछे भागने की बजाय क्यों ना मां के पांव दबा दू तेरे कॉल या चैट का इंतज़ार करने की बजाय क्यों ना मां से बात कर उनका अकेला पन दूर भगा दू मैं तो पागल झल्ली सी लड़की हूं मां के लिए तू क्या हस्ते हस्ते अपनी हस्ती भी मिटा दू #love u maaaaaaaaaa😘😘😘😘🤗🤗🤗
#Love u maaaaaaaaaa😘😘😘😘🤗🤗🤗
read moreVicky Khatri
ये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ। आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है। महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहींये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ। आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है। महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहीं चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता! आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है । नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं। यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है। चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता! आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है । नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं। यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है।
TARUN KUMAR VIMAL
लेख बड़ा जरूर है लेकिन कुछ समजनें को मिलता है।............... दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। – न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल। भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले है (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले) भारत मे भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार मे बिलकुल असहज नही होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यो होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराये देखिये। भारत मे धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद मे कि वो बदले मे दूसरे के तुलना मे इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग मे बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है। जून 2009 मे द हिंदू ने कर्नाटक मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबो की सम्पत्ति मंदिरो मे व्यर्थ पडी है। जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं। भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने मे कुछ कुछ गलत नही है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं। भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि 1 नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नही आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता मे आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो मे सोच भी नही सकते । 2 भारतीयो की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास मे स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियो को रक्षको को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत मे है भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप मे बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना मे कितने कम युद्ध लडे। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत मे तो युद्ध की जरूरत ही नही थी, घूस देना ही ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना मे लाखो सैनिक हो, हटा सकता था। प्लासी के युद्ध मे भी भारतीय सैनिको ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 मे सिमट गई। भारतीय किलो को जीतने मे हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 मे पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलो ने मराठो और राजपूतो को मूलतः रिश्वत से जीता श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बडे पैमाने पर गद्दारी की। सवाल है कि भारतीयो मे सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यो है जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो मे ये सौदेबाजी का कल्चर नही है 3- भारतीय इस सिद्धांत मे विश्वास नही करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नही देता। उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नही मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मो मे भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन बुद्ध, और कई लोग इसाई और इस्लाम अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नही करते। भारत मे कोई भारतीय नही है, वो हिंदू ईसाई मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज मे परिणित हुई, जिसमे हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास मे खुद रिश्वतखोर है लेखक-ब्रायन, गाडजोन न्यूजीलैंड ( समाज की बंद आँखों को खोलने के लिए इस मैसेज को जितने लोगो तक भेज #tarun_kumar_vimal सकते हैं भेजने का कष्ट करें ।) #indian #politics #tarun_kumar_vimal
#Indian #Politics #tarun_kumar_vimal
read moreMohammad Arif (WordsOfArif)
मेरे मुल्क में ये कैसी नफ़रत की हवाये चल रही हैं जो कभी मुहब्बत की तरह थी अब नफ़रत की दीवार चल रही हैं क्या पता कब क्या हो जाए इतने जालिम है लोग यहां अब तो संसद में भी मुहब्बत के बजाय नफ़रत की बात चल रही हैं जो कभी हमारे दुःख में शामिल हुआ करते थे क्या हो गया जो देखने के बजाय हमारी अच्छी बात को झूठी बात लोगों में चल रही हैं कितने खुदगर्ज हैं लोग यहां पर कुछ कह नहीं सकता हमारे प्यार को अब लोगों में नफ़रत की आग की तरह लग रही हैं क्यूं इतनी जल्दी हैं मरने की जरा पता तो करो अब जो लोग यहां सबसे मुहब्बत करते थे उनकी हर बात की साज़िश चल रही हैं मेरे मुल्क में ये कैसी नफ़रत की हवाये चल रही हैं जो कभी मुहब्बत की तरह थी अब नफ़रत की दीवार चल रही हैं क्या पता कब क्या हो जाए इतने जालिम है लोग यहां अब तो संसद में भी मुहब्बत के बजाय नफ़रत की बात चल रही हैं जो कभी हमारे दुःख में शामिल हुआ करते थे क्या हो गया जो देखने के बजाय हमारी अच्छी बात को झूठी बात लोगों में चल रही हैं
मेरे मुल्क में ये कैसी नफ़रत की हवाये चल रही हैं जो कभी मुहब्बत की तरह थी अब नफ़रत की दीवार चल रही हैं क्या पता कब क्या हो जाए इतने जालिम है लोग यहां अब तो संसद में भी मुहब्बत के बजाय नफ़रत की बात चल रही हैं जो कभी हमारे दुःख में शामिल हुआ करते थे क्या हो गया जो देखने के बजाय हमारी अच्छी बात को झूठी बात लोगों में चल रही हैं
read moreMartin Alejandro Rangel Gonzalez
ऐसा कहा जाता है कि जब एक बेहतर जीवन के लिए सब कुछ खत्म हो जाता है और जल्द ही वे सब भूल जाते हैं कि कौन पार्टी करना चाहता है लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है क्योंकि यह भी कहा जाता है कि जो कोई एक बाली छोड़ता है वह बिल्कुल भी नहीं जाता है कि हमारी कहानी डॉन कार्लोस और आदमी से कैसे शुरू होती है उसने हमेशा अपने बच्चों को इस तरह से शिक्षित किया था जो उनकी उम्र के लिए उचित नहीं था क्योंकि वे सब कुछ चाहते थे जो बिना किसी समस्या के दिया गया था लेकिन उनकी बेटियों के लिए यह विपरीत था क्योंकि वह सोच रही थी कि महिला मुझे कुछ भी ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वे हमेशा घर में थे इसलिए बच्चे बड़े हो गए थे और जैसा कि उनके पास हमेशा था कि उनके पास अपनी बेटियों के विपरीत कोई भी व्यापार कभी नहीं सीखा क्योंकि उन्होंने डॉन कार्लोस के मरने पर घर लेने के तरीके के बारे में सब कुछ जान लिया था। बच्चों को अपने पिता के दफन के बारे में चिंता करने के बजाय वे इससे अधिक चिंतित थे कि वे जीवित रहेंगे और उनके वंशानुगत पिता ने उन्हें छोड़ दिया बजाय बेटियों ने उस रास्ते की तलाश की, हालांकि उनके पिता कभी नहीं थे उनके लिए एक प्यार जो वे हमेशा से चाहते थे क्योंकि यह उनके पिता थे जो आखिर में डॉन कार्लोस को अपने अंतिम विश्राम स्थल में ले जा सकते थे लेकिन डॉन कार्लोस को अपने जीवन के अंतिम क्षण में क्या पता नहीं था और जब उन्होंने देखा कि उनके बच्चे कुछ भी नहीं करते हैं लाभ ने उनकी बेटियों को उत्तराधिकारी के रूप में बदल दिया था और उनके बच्चों के लिए काफी राशि और निष्पादक थे जो उनके पास पहुंचाएंगे, जब वे दिखाएंगे कि वे जानते थे कि खुद को कैसे डॉन करना है कार्लोस ने समझा कि जो हमेशा उनके लिए थे उनकी बेटियां स्वास्थ्य में थीं और बीमारी में और उनके दफन होने तक वे हमेशा उसके साथ थे जब घर लौटने पर सबकुछ खत्म हो गया तो उन्हें मोमबत्ती मिली जिसे जला दिया गया था जब उन्हें फेंक दिया गया था और मोम फर्श पर गिरा दिया गया था लेकिन अजीब बात थी जिस मोम के साथ उन्होंने ऐसा कहा, बेटियों को क्षमा करने के लिए कि मैं कौन था। मार्टीन एलेजांद्रो रंगेल गोंजालेज लेखक #love #poetry #historia
Martin Alejandro Rangel Gonzalez
ऐसा कहा जाता है कि जब एक बेहतर जीवन के लिए सब कुछ खत्म हो जाता है और जल्द ही वे सब भूल जाते हैं कि कौन पार्टी करना चाहता है लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है क्योंकि यह भी कहा जाता है कि जो कोई एक बाली छोड़ता है वह बिल्कुल भी नहीं जाता है कि हमारी कहानी डॉन कार्लोस और आदमी से कैसे शुरू होती है उसने हमेशा अपने बच्चों को इस तरह से शिक्षित किया था जो उनकी उम्र के लिए उचित नहीं था क्योंकि वे सब कुछ चाहते थे जो बिना किसी समस्या के दिया गया था लेकिन उनकी बेटियों के लिए यह विपरीत था क्योंकि वह सोच रही थी कि महिला मुझे कुछ भी ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वे हमेशा घर में थे इसलिए बच्चे बड़े हो गए थे और जैसा कि उनके पास हमेशा था कि उनके पास अपनी बेटियों के विपरीत कोई भी व्यापार कभी नहीं सीखा क्योंकि उन्होंने डॉन कार्लोस के मरने पर घर लेने के तरीके के बारे में सब कुछ जान लिया था। बच्चों को अपने पिता के दफन के बारे में चिंता करने के बजाय वे इससे अधिक चिंतित थे कि वे जीवित रहेंगे और उनके वंशानुगत पिता ने उन्हें छोड़ दिया बजाय बेटियों ने उस रास्ते की तलाश की, हालांकि उनके पिता कभी नहीं थे उनके लिए एक प्यार जो वे हमेशा से चाहते थे क्योंकि यह उनके पिता थे जो आखिर में डॉन कार्लोस को अपने अंतिम विश्राम स्थल में ले जा सकते थे लेकिन डॉन कार्लोस को अपने जीवन के अंतिम क्षण में क्या पता नहीं था और जब उन्होंने देखा कि उनके बच्चे कुछ भी नहीं करते हैं लाभ ने उनकी बेटियों को उत्तराधिकारी के रूप में बदल दिया था और उनके बच्चों के लिए काफी राशि और निष्पादक थे जो उनके पास पहुंचाएंगे, जब वे दिखाएंगे कि वे जानते थे कि खुद को कैसे डॉन करना है कार्लोस ने समझा कि जो हमेशा उनके लिए थे उनकी बेटियां स्वास्थ्य में थीं और बीमारी में और उनके दफन होने तक वे हमेशा उसके साथ थे जब घर लौटने पर सबकुछ खत्म हो गया तो उन्हें मोमबत्ती मिली जिसे जला दिया गया था जब उन्हें फेंक दिया गया था और मोम फर्श पर गिरा दिया गया था लेकिन अजीब बात थी जिस मोम के साथ उन्होंने ऐसा कहा, बेटियों को क्षमा करने के लिए कि मैं कौन था। मार्टीन एलेजांद्रो रंगेल गोंजालेज लेखक #historia #love #poetry
Shekhar kumar
" योगी " होने के बजाय " उपयोगी " होना ज्यादा अच्छा हैे, "प्रभाव " अच्छा होने के बजाय "स्वभाव " अच्छा होना ज्यादा जरूरी है...। " #सलाह
सौरभ सिंह गिर्दाब
#मेरा_दर्द #एक_खत_मेरे_साथियों_के_नाम मुझे पता है मेरी बेबाकी को लोग सराहने के बजाय उसकी निंदा करेंगे, मुझे उस दल का समर्थक बताएंगे जो विपक्ष मे हो, लेकिन इस बात से मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि मै जानता हूँ मै निष्पक्ष रूप से, निस्वार्थ भाव से और निष्ठा के साथ हर वक्त अपने आप को कलम के माध्यम से इस देश के भले के लिए प्रतिबद्ध रखूँगा, और ये उम्मीद भी नही छोड़ूंगा कि किसी ना किसी दिन मेरे भाई, मेरे दोस्त मुझको समझें, उस दिन के आने से पहले कि जब हमरी मौजूदगी के बजाय हमारी यादें उन सबके जहन मे जिंदा रहेगी ठीक भगत सिंह की तरह, क्योंकि उनको समझने मे इतनी देर की गई कि वो बेशकीमती हीरा हमारे बीच नही रहा, मेरा कहने का ये कतई मतलब नही है कि मै अपनी तुलना उस कोहिनूर से कर रहा हूँ, मुझे ये कहने मे जरा भी संकोच नही होगा कि मै उनके पैर की धूल भी बन जाऊँ तो खुद को बहुत खुशनसीब समझूंगा, मुझे मशहूर होने की तनिक भी लालसा नही है, मै व्यथित हूँ हर उस व्यवहार से जो मुझे समझने के बजाय मुझमे खामिया खोजता है, मै इतना बड़ा नही हूँ कि खुद को सबसे ज्यादा समझदार कह सकूँ, पर ये भी सत्य है कि मुझे अच्छे-बुरे की थोड़ी-बहुत समझ तो है जो मुझे बेबाकी से बोलने मे सहायक है ! मेरे शब्दो से यदि किसी को कष्ट होता हो तो मुझे माँफ करें, किंतु मै ऐसा ही रहूँगा, क्योंकि बहुत मुश्किल हुई मुझे खुद को ऐसा बनाने मे, #गिर्दाब #NojotoQuote #गिर्दाब
प्रियदर्शन कुमार
पुनर्नवजागरण =========== मेरे द्वारा दिए गए पुनर्नवजागरण शीर्षक पर पाठकों को आपत्ति हो सकती है कि ये क्या नया शब्द गढ़ लिया, वो भी 21वीं सदी में, जबकि यह काल ज्ञान-विज्ञान के उत्कर्ष का काल है। मानव सभ्यता के उत्कर्ष का काल है। तो इसका कारण यह है कि जिस आस्था को तर्क से, ईश्वर केन्द्रित चिंतन को मानव केन्द्रित चिंतन से तथा भावुकता को बौद्धिकता से प्रतिसंतुलित करते हुए भारतीय नवजागरण आंदोलन की शुरुआत होती है तथा मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच एक लकीर खींची जाती है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह लकीर ध
पुनर्नवजागरण =========== मेरे द्वारा दिए गए पुनर्नवजागरण शीर्षक पर पाठकों को आपत्ति हो सकती है कि ये क्या नया शब्द गढ़ लिया, वो भी 21वीं सदी में, जबकि यह काल ज्ञान-विज्ञान के उत्कर्ष का काल है। मानव सभ्यता के उत्कर्ष का काल है। तो इसका कारण यह है कि जिस आस्था को तर्क से, ईश्वर केन्द्रित चिंतन को मानव केन्द्रित चिंतन से तथा भावुकता को बौद्धिकता से प्रतिसंतुलित करते हुए भारतीय नवजागरण आंदोलन की शुरुआत होती है तथा मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच एक लकीर खींची जाती है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह लकीर ध
read moreMahendra Sharma
😡😡 एक लड़की केदारनाथ दर्शन करने जाती है, वहां मुस्लिम कुली से उसको प्यार हो जाता है, लड़की का बाप कहता है 'ये रिश्ता हुआ तो प्रलय आ जायेगा' । लड़की कहती है 'फिर तो मैं प्रार्थना करती हूं कि प्रलय आये' । बादल फट जाता है, पूरा केदारनाथ डूब जाता है और वो मुस्लिम कुली दूसरे किसी मदद करने की बजाय सिर्फ हीरोइन को बचाता है और लड़की के बाप को दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है कि प्रेम में जाती धर्म नहीं होता और हमारा देश गंगा जमुनी तहजीब वाला देश है (जैसे दिल्ली के अंकित सक्सेना को ज्ञान प्राप्त हुआ था) । वो अपनी लड़की का निकाह उस कुली से करवा देता है । ये कहानी है फ़िल्म केदारनाथ की । 😡 फ़िल्म से एक सीख और मिलती है कि हिन्दुओ ने अपनी लड़की का निकाह मुसलमानो से नहीं कराया तो प्रलय आएगा । बॉलीवुड वाले भांड क्या गुल खिला सकते हैं, समझ से बाहर है. केदारनाथ त्रासदी में करीब एक लाख लोग मारे गए, कइयों के तो शव भी नहीं मिले आज तक, पूरा देश खून के आंसू रोया था, जैसे अपना कोई सगा वाला मरा हो । इतनी भयानक घटना पर फ़िल्म भी बनाई तो उसमें भी लव जिहाद का जहर घोल दिया । केदारनाथ पर फ़िल्म ही बनानी थी तो सेना ने अपनी जान पर खेलकर कैसे लोगों की जान बचाई ये बताते । सेना का पराक्रम बताने की बजाय एक मुस्लिम कुली को महान बता दिया। ये वो फिल्मकार है जो पैसों की खातिर अपनी बहन बीवी बेटी भी सुला देंगे किसी के भी साथ। क्या फिल्म का नाम केदारनाथ रखकर भी ऐसी घटिया फिल्म बनायीं जा सकती है? 😡😡😡 केदारनाथ रिव्यू Havaruni Dueby Balakrishna Deepa Rajput Deepika Dubey Nidhi Dehru
केदारनाथ रिव्यू Havaruni Dueby Balakrishna Deepa Rajput Deepika Dubey Nidhi Dehru
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