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Nidhi Jarwal

दर्शनशास्त्र। #philosophy #Truth #brahm #wo_hai

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जब मुझ में वो खालीपन होगा,
 खालीपन अर्थात् कोई रूप, भावना, ख्याल, चेतना न होगी,
 ना होगी कोई ज्ञान इन्द्रियां और ना ही छती इंद्री होगी,
 वस्तु भी न कोई होगी, कुछ देखना, सुनना, कहना नहीं होगा,
 ना महक ना आवाज़ ना ही कोई लालसा बाकी होगी,
 न शरीर का होना होगा,  ना, मस्तिष्क भी नहीं होगा,
       तब मुझमें सिर्फ खालीपन होगा
       मेरा अपना स्वभाव भी ना होगा
        इस खालीपन में तू अर्थात्
         तब मुझमें बस तू होगा।।
 मेरा खालीपन तुझी से भरा होगा।। दर्शनशास्त्र।
#philosophy #truth #brahm #wo_hai

ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)

गण पति बप्पा मोरियाँ,,,,,,भगवान कृष्ण के अलावा "गणपति के मुकुट मे """मोर का पँखी"लगी होती है---- गणपति और कृष्ण दोनो की कामदेव जयी है,,,, अर्थात् प्रेम की पराकाष्ठा गणपति के आलय मे निवासित हो सकती है,,, जब महाभारत लिखना था उस वक्त यह शर्त थी कि,,,,,,,ऐसा व्यक्ति या देवता चाहिये जो """बिना रुके लिख सके

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 गण पति बप्पा मोरियाँ,,,,,,भगवान कृष्ण के अलावा "गणपति के मुकुट मे """मोर का पँखी"लगी होती है----

गणपति और कृष्ण दोनो की कामदेव जयी है,,,,

अर्थात् प्रेम की पराकाष्ठा गणपति के आलय मे निवासित हो सकती है,,,

जब महाभारत लिखना था उस वक्त यह शर्त थी कि,,,,,,,ऐसा व्यक्ति या देवता चाहिये जो """बिना रुके लिख सके

ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)

शिक्षक==== शि= शिल्पी क्ष=क्षमा शील क=कर्तव्यनिष्ठ अर्थात् ऐसा कारीगर जो कर्तव्यनिष्ठ व क्षमा शील हो "शिक्षक"कहलाता है बुलंदियों की राहे शिक्षक के चरणो से हो कर गुजरती है

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 शिक्षक====
 शि= शिल्पी
 क्ष=क्षमा शील
 क=कर्तव्यनिष्ठ
अर्थात् ऐसा कारीगर जो कर्तव्यनिष्ठ व क्षमा शील हो "शिक्षक"कहलाता है

बुलंदियों की राहे शिक्षक के चरणो से हो कर गुजरती है

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सदा भवानी वाहिनी गौरी पुत्र गणेश, साथ देव रक्षा करें ब्रह्मा,विष्णु ,महेश...💓 . मंगलाचरण का प्रारम्भ तुलसीदास जी ने दोहा/सोरठा रूप में ऐसे किया है... जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।। (बालकाण्ड)

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प्रथमेश..💓🙏 सदा भवानी वाहिनी गौरी पुत्र गणेश,
साथ देव रक्षा करें ब्रह्मा,विष्णु ,महेश...💓
.
मंगलाचरण का प्रारम्भ तुलसीदास जी ने दोहा/सोरठा रूप में ऐसे किया है...

जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन। 
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
(बालकाण्ड)

आयुष पंचोली

क्या हैं- धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष...!! हमारा आध्यात्मिक इतिहास बहुत बड़ा रहा हैं। ना जाने कितनी ही सभ्यताये आई और चली गई, मगर हमारे अस्तित्व को कभी डिगा नही पाई। कितने ही लोगो ने हमारे धार्मिक ग्रंथो से छेड़खानी करकर, कितने ही तथ्यों को बदल दिया। यहां तक की कुछ ऐसी दकियानुसी बातें भी हमारे आराध्य देवताओ के बारे मे फैलायी गई जो किसी भी रूप मे सत्य कभी हो ही नही सकती। खैर जो भी हो जहाँ, आस्था होती हैं, वहाँ तर्क का कोई काम नही रहता । और अगर कोई आपको गलत मानकर ही बैठ जायें कुछ सुनना ही ना चाहे तो

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क्या हैं- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष क्या हैं- धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष...!!

हमारा आध्यात्मिक इतिहास बहुत बड़ा रहा हैं। ना जाने कितनी ही सभ्यताये आई और चली गई, मगर हमारे अस्तित्व को कभी डिगा नही पाई। कितने ही लोगो ने हमारे धार्मिक ग्रंथो से छेड़खानी करकर, कितने ही तथ्यों को बदल दिया। यहां तक की कुछ ऐसी दकियानुसी बातें भी हमारे आराध्य देवताओ के बारे मे फैलायी गई जो किसी भी रूप मे सत्य कभी हो ही नही सकती। खैर जो भी हो जहाँ, आस्था होती हैं, वहाँ तर्क का कोई काम नही रहता । और अगर कोई आपको गलत मानकर ही बैठ जायें कुछ सुनना ही ना चाहे तो

आयुष पंचोली

क्या इस सकल ब्रह्माण्ड मे ऐसा बजी कुछ हैं जो नश्वर नही हैं ? यह प्रश्न भी उतना ही जटिल हैं, जितना यह जानना की शाश्वत आखिर हैं क्या? अगर बात करें इस विषय पर तो एक ही बात कँह सकते हैं, जिसका अन्त कभी ना हो वही शाश्वत हैं। मगर ऐसा तो कुछ हैं ही नही जिसका अन्त कभी नही होगा। सिर्फ विचार और शून्य के, क्योकी विचार कभी अन्त नही हो सकते, सबकुछ विचारों के ही तो अधीन हैं, और विचार विलिन होते हैं शून्य मे। अर्थात् शाश्वत सिर्फ और सिर्फ शून्य हैं। यही शाश्वत सत्य हैं। क्योकी अगर देखा जाये तो वह सभी चीजें जो

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क्या सबकुछ नश्वर हैं, तो फिर शाश्वत क्या हैं ...!!!! क्या इस सकल ब्रह्माण्ड मे ऐसा बजी कुछ हैं जो नश्वर नही हैं ?

यह प्रश्न भी उतना ही जटिल हैं, जितना यह जानना की शाश्वत आखिर हैं क्या? अगर बात करें इस विषय पर तो एक ही बात कँह सकते हैं, जिसका अन्त कभी ना हो वही शाश्वत हैं। मगर ऐसा तो कुछ हैं ही नही जिसका अन्त कभी नही होगा। सिर्फ विचार और शून्य के, क्योकी विचार कभी अन्त नही हो सकते, सबकुछ विचारों के ही तो अधीन हैं, और विचार विलिन होते हैं शून्य मे। अर्थात् शाश्वत सिर्फ और सिर्फ शून्य हैं। यही शाश्वत सत्य हैं।
क्योकी अगर देखा जाये तो वह सभी चीजें जो

आयुष पंचोली

क्या हमारे सारे सवालों के जवाब हमारे खुद के अस्तित्व मे खुद ही के भीतर कहीं छुपे हैं। और अगर ऐसा हैं तो उनका जवाब प्राप्त कैसे किया जायें? हाँ यह बिल्कुल सत्य हैं, की हमारे सारे सवालों के जवाब, सभी समस्याओं का हल कहीं ना कहीं, हमारे ही अस्तित्व की उन गहराईयौं मे छूपा हैं, जहां हम पहुच नही सकते या यूँ कहें पहुचना नही चाहते। क्योकी हमारे जीवन मे अर्थात् आपके जन्म लेने के बाद से,कितनी ही घटनाए ऐसी घटित होती हैं, जो हमारे मन और मस्तिष्क पर बहुत गहरी छाप छोड़ती हैं। उनमे से कुछ घटनायें हम भुला देते

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क्या हमारे सारे सवालों के जवाब हमारे खुद के अस्तित्व मे खुद ही के भीतर कहीं छुपे हैं। और अगर ऐसा हैं तो उनका जवाब प्राप्त कैसे किया जायें?
आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayuspiritual क्या हमारे सारे सवालों के जवाब हमारे खुद के अस्तित्व मे खुद ही के भीतर कहीं छुपे हैं। और अगर ऐसा हैं तो उनका जवाब प्राप्त कैसे किया जायें?

हाँ यह बिल्कुल सत्य हैं, की हमारे सारे सवालों के जवाब, सभी समस्याओं का हल कहीं ना कहीं, हमारे ही अस्तित्व की उन गहराईयौं मे छूपा हैं, जहां हम  पहुच नही सकते या यूँ कहें पहुचना नही चाहते। क्योकी हमारे जीवन मे अर्थात् आपके जन्म लेने के बाद से,कितनी ही घटनाए ऐसी घटित होती हैं, जो हमारे मन और मस्तिष्क पर बहुत गहरी छाप छोड़ती हैं। उनमे से कुछ घटनायें हम भुला देते

आयुष पंचोली

प्रेम क्या हैं..? क्या वर्तमान मे जो चल रहा हैं, उसे प्रेम कह सकते हैं? प्रेम क्या हैं, यह शायद लोगो की समझ से भी परे होगा। अगर बात की जायें तो प्रेम पूर्णतया भक्ति का ही एक रूप हैं। जिस तरह भक्ति, मे कोई तर्क नही होता, कोई समझ नही होती, सिर्फ अपने ईष्ट के प्रति समर्पण का भाव होता हैं। चाहे जिस भी रूप मे हो, वह पाक पवित्र ही होती हैं। निस्छलता से परिपूर्ण। अपूर्ण होकर भी पुर्ण। ठीक ऐसा ही प्रेम भी हैं, जो हर प्रकार के दोषो से दूर हैं, अपूर्ण होकर भी वह सम्पुर्ण हैं। कोई दिखावा नही हैं, कोई भेद

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प्रेम क्या हैं...!! प्रेम क्या हैं..? क्या वर्तमान मे जो चल रहा हैं, उसे प्रेम कह सकते हैं?

प्रेम क्या हैं, यह शायद लोगो की समझ से भी परे होगा। अगर बात की जायें तो प्रेम पूर्णतया भक्ति का ही एक रूप हैं।
जिस तरह भक्ति, मे कोई तर्क नही होता, कोई समझ नही होती, सिर्फ अपने ईष्ट के प्रति समर्पण का भाव होता हैं। चाहे जिस भी रूप मे हो, वह पाक पवित्र ही होती हैं। निस्छलता से परिपूर्ण। अपूर्ण होकर भी पुर्ण। 
ठीक ऐसा ही प्रेम भी हैं, जो हर प्रकार के दोषो से दूर हैं, अपूर्ण होकर भी वह सम्पुर्ण हैं। कोई दिखावा नही हैं, कोई भेद

आयुष पंचोली

ब्रम्ह क्या हैं, क्या ब्रम्ह का मतलब ब्रह्मा से हैं या ब्रम्ह ब्राह्मण को सम्बोधित करता हैं। और अगर ऐसा नही हैं, तो फिर ब्रम्ह का अर्थ क्या हैं....? ब्रम्ह जैसा की उस नाम से ही स्पष्ट हो जाता हैं, ब्रम्ह अर्थात् रचियता। और इसी से एक चीज और निकल कर आती हैं, ब्रह्माण्ड अर्थात् "ब्रम्ह का अंड" यानी वो पिंड जिससे जीवन की, विकास की, अस्तित्व की और सृष्टि की शुरुवात हुई। तो फ़िर असल मे ब्रम्ह हैं कौन, यही प्रश्न सबके मन मे उठता हैं। सृष्टि के रचियता ब्रम्हा हैं, तो बहुत से लोग उन्हे ही ब्रम्ह जानते है

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✍बृम्ह क्या हैं....! ब्रम्ह क्या हैं, क्या ब्रम्ह का मतलब ब्रह्मा से हैं या ब्रम्ह ब्राह्मण को सम्बोधित करता हैं। और अगर ऐसा नही हैं, तो फिर ब्रम्ह का अर्थ क्या हैं....?

ब्रम्ह जैसा की उस नाम से ही स्पष्ट हो जाता हैं, ब्रम्ह अर्थात् रचियता। और इसी से एक चीज और निकल कर आती हैं, ब्रह्माण्ड अर्थात् "ब्रम्ह का अंड" यानी वो पिंड जिससे जीवन की, विकास की, अस्तित्व की और सृष्टि की शुरुवात हुई। तो फ़िर असल मे ब्रम्ह हैं कौन, यही प्रश्न सबके मन मे उठता हैं। सृष्टि के रचियता ब्रम्हा हैं, तो बहुत से लोग उन्हे ही ब्रम्ह जानते है


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