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जाम-ए-जिंदगी से , जिदंगी, कतरा-कतरा छलक रही है हम

जाम-ए-जिंदगी से , जिदंगी,
 कतरा-कतरा छलक रही है हमारी , 

एक तुम हो जिसे फर्क नहीं पड़ता, 
इक ये उम्र तेरे इंतजार में, गुज़र रही है हमारी। 

मिला था एक दोस्त पुराना, कल भरे बाजार में, 
देखते ही बोला, "शमी", दाढ़ी अब सफ़ेद हो रही है तुम्हारी।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
  #सफेदी