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White 2122 1122 1122 22 फिर गज़ल दर्द भर

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फिर  गज़ल  दर्द भरी  बज्म में गाई जाए
चीख  गुम है  मेरे  अंदर वो  सुनाई  जाए

मैंने आँगन में सजा रख्खे है खुशरंग गुल
इनके खुशबुओं से  ये बज्म  सजाई जाए

दर्द सीने में सिमट आये  मुहब्बत के सब
दर्द  मिट  जाये  वही  नज्म  सुनाई  जाए

जख्म ताजे  है मुहब्बत के  जिगर  में मेरे
अब जहर हो  या दवा  कोई पिलाई जाए

कुबे  से  कोई  गुजरता  ही नही  मेरे अब
रह  गुजर  घर  मेरे  भी  कोई बनाई जाए

उठ रहा  है  मेरे  फिर  इर्द  गिर्द वो धुंआ
आग ये दिल की मेरे फिर से बुझाई जाए
         ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
12/7/2017

©laxman dawani
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