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बोलों ज़ुबां केसरी कभी चिलचिलाती धूप में पसीना बह

बोलों ज़ुबां केसरी

कभी चिलचिलाती धूप में पसीना बहाते, कभी बरसात में तर-बतर तो कभी ठंड में ठीठुरते हुए, बड़ी मेहनत से, एक सफाई कर्मी हमारे आस-पास के वातावरण को साफ-सुथरा रखता है।

मगर अचानक जिंस और टी शर्ट पहने, लहराकर चलते हुए, एक बंदा अपनी जिंस की जेब से, एक पुड़िया को ख़ूबसूरत अंदाज़ में फाड़ता है, उस पुड़िया में स्थित वस्तु को बड़े मन से, अपने मुंह में उड़ेलता है, उस कागज़ को बड़ी लापरवाही से सड़क पर फेंकता है और सड़क को केसरी रंग में रंगता लहराता चल जाता है, क्योंकि ज़ुबां केसरी होने के गुण को समाज के त्रिमूर्ति नायक, अजय जी, शाहरुख जी और अक्षय जी, ज़ुबां केसरी होने के गुण एवं मंत्र का प्रचार करते है।

मगर उस सफ़ाई कर्मी के मेहनत पर कैसे इस केसरी ज़ुबां ने पानी फेर दिया, इस और कोई ध्यान नही देता, और नाही यह ध्यान देता है की इस ज़ुबां केसरी से युवा पीढ़ी कैंसर की ज़ुबां बोलने पर मजबूर हैं।

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