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अदनासा-

अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C1XPgzDs20N/?igsh=cnZvaTlyOHMxbG03 #प्रकृति #अदृश्य #अदभुत #जीव #जंतु #छद्म #आवरण #Instagram #Facebook #अदनासा प्रकृति हमारे आसपास ऐसे जीव-जंतुओं का भी निर्माण करती है, जिन्हें हम कभी अपनी साधारण आंखों से नही देख पाते, और यदि कभी वह हमें बहुत ध्यान से दिखाई भी दे, तो हमें वह अपना एक और रूप दिखाती है, इसलिए कहते है आंखों देखी हर बात सच्ची नही होती।💐💐🌹🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳

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Ghumnam Gautam

लगाकर अच्छे का लेबल बुरा हर काम कर देंगे
वतन के छद्म रखवाले वतन नीलाम कर देंगे

कि जिनका चूमते हो माथा उनसे फ़ासला रक्खो
वगरना सर तुम्हारे ये कोई इल्ज़ाम कर देंगे

©Ghumnam Gautam #Titliyaan #अच्छा #बुरा #फ़ासला 
#वतन #छद्म #ghumnamgautam

Ajay Amitabh Suman

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©Ajay Amitabh Suman #मृगतृष्णा #संसार #मिथ्या  #भ्रम #छद्म #World #Illusion #Maya #Truth #Mirage

Ajay Amitabh Suman

#सपना #मिथ्या #छद्म #Micro_Poetry #short_poetry #Laghu_Kavita डेमोक्रेटिक बग प्रजातांत्रिक व्यवस्था में पूंजीपति आम जनता के कीमती वोट का शिकार बड़ी आसानी से कर लेते हैं। पैसों के दम पर वोट खरीद लेना बड़ी साधारण सी बात है। आखिर किस बात का प्रजातंत्र है ये?

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितं मन्य७मानाः।
जङ्घन्यमानाः परियन्ति मूढा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः ॥

'अविद्या' के अन्दर बन्द रहने वाले ये लोग जो स्वयं को विद्वान् मानकर सोचते हैː ''हम भी विद्वान् तथा पण्डित हैं'', वस्तुतः मूढ हैं, तथा वे उसी प्रकार चोटें तथा ठोकरें खाते हुए भटकते हैं जैसे अन्धे के द्वारा ले जाया गया अन्धा।

They who dwell shut within the Ignorance and they hold themselves for learned men thinking “We, even we are the wise and the sages”-fools are they and they wander around beaten and stumbling like blind men led by the blind.

( मुण्डकोपनिषद् १.२.८ ) #मुण्डकोपनिषद् #मूर्ख #पाखंडी #छद्म #पंडित #पंडे #अवैदिक #दुष्ट

_जागृति@**शर्मा..."अजनबी"

#छद्म प्रेम

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हृदय था मेरा जब बेचैन, मस्तिष्क डूबा चिंतन में
घुट रहा दम मेरा, कुरीतियों के इस सामाजिक क्रंदन में
अहिंसा का था पुजारी, लड़ सकता नहीं हथियार से
फिर सोचा तनिक मैंने ,और उठाई कलम बड़े प्यार से
कलम तो मैंने पकड़ ली,फिर हृदय में आया ये ख्याल
क्या लिखूं और लिखूं कैसे, मस्तिष्क में थे ढेरों सवाल
हो क्या विषय मेरा,जिस पर करूं मैं नित लेखन
बस यही विचार से चल दिया मैं चौराह पर देखन
सोचा यूं तो पहेली बहुत है, पर लिखूं मैं जिस पर कौन सी वो प्रमुख है
है कौन सी समस्या, जिसके समाधान से समाज आज भी विमुख है 
देख हृदय मेरा सुन्न रह गया,देखा जब मैंने उस समस्या को
जनाब हिल गए कदम मेरे, मैं भूल ना पाया उस दृश्य को
देखा मैंने हर गली में, फैला प्रेम का बुखार है
और हर दूसरा बन्दा, बना घूम रहा शिकार है
मिले जनाब मुझे, लोग भांति भांति प्रकार के
ग्रसित थे अधिकांशतः, सभी जन इसी विकार से
हर दूसरे घर में दिखा, मुझे प्यार का आशिक
बिगड़ चुकी थी अब तक, जिसकी हालत मानसिक
और जिनकी हालत सुधरी थी, वो भी जनाब कमाल दिखे
या यूं कहूं मैं की, मानवता के लिए मुझे वो सवाल दिखे
सोशल मीडिया पर भी, दिखा निरंतर मुझे यही हाल
जिसने कर रखा था भ्रष्ट बुद्धी को, बच्चे भी  इससे थे बेहाल
जनाब  मस्तिष्क को तो मेरे, तब लगा झटका
जब वो कक्षा छठवीं का बच्चा, देखा मैंने राह से भटका
कहता है मेरा हृदय ही जानता है, मुझ पर क्या गुजरी
जब देकर धोखा वो बेहया, मेरे ही गली से गुजरी
कहता है मैं ही जानता हूं, कैसे मैंने अपना दर्द छुपाया है
सुनकर गाना मेरा इंतकाम देखेगी, जैसे तैसे मैंने खुद को समझाया है
मैंने कहा बेटा,पढ़ाई से ले रखा है क्या अवकाश
बोला क्या करते पढ़कर, अब तक तो वहीं बेवफ़ा थी खास
पढ़े-लिखे को नौकरी नहीं मिलती ,छोकरी मिलेगी कैसे
हम तो भैया  बिना पढ़ें लिखे ही, बहुत अच्छे हैं ऐसे
फिर मेरे सामने से निकले, बनठन करएक डिग्रीधारक
मैंने पूंछा जनाब, क्या तुम भी हो इस बीमारी के प्रचारक
वो बोले मियां इश्क कौन करता है,और जो कर भी ले तो निभाता है कौन
सुनकर उन जनाब के विचार, मेरे शब्द भी हो गए थे यकायक मौन
वो बोले हम तो मियां बस कुछ आंनद और समय बिताने को, खेल लेते है ये खेल
वो तो बस मेरा खिलौना है जनाब, वरना उसका और हमारा क्या मेल
नजर घुमाओ मियां,यहां एक छोड़ो दूसरी मिलती है
आंनद की इस बगिया में, हर दिन नयी कली खिलती है
खिलौनों से मियां इस जमाने में,कौन रिश्ता निभाता है
वो तो बस स्टेटस बढ़ाने के लिए, दोस्तों को दिखाया जाता हैं
फिर कुछ दूर चलकर मिले जनाब, एक महाशय पीएचडी वाले
हमने उनसे पूछने को हुए ही,वो बोले हम खा चुके ये निवाले
हम दिल से सच्चे थे इसलिए,जज़्बात हमारे मारे गए
ना बन पाए कामीने,वजह यही थी कि इश्क में हम हारे गए
अब हम, जीवन और भविष्य के प्रति गतिशील है
और लगा हृदय को कुण्डी, मस्तिष्क से विचारशील है
हर ओर देखा मैंने, दिखा बस मुझे छद्म प्रेम का निवास
सच्चा था कोई,तो कुछ ने बना रखा था बस टाइमपास
सच्चा रिश्ता प्रेम का, देखा मैंने आज कैसे कलंकित हुआ
प्रेम के नाम पर,भावनाओं को छलने का रिवाज आज प्रचलित हुआ
वास्तविक प्रेम का, किसी को भी आभास नहीं
कुंठित है समाज के विचार,कितने ये अहसास नहीं
सोचा मैंने तभी,इससे विकट समस्या समाज में व्यापत नहीं
सब भूल लिखने को, लगा मुझे विषय पर्याप्त हैं यही

_जागृति@***शर्मा..."अजनबी" #छद्म प्रेम


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