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White 212 212 212 212 ज़िन्दगी ढल गई अजनबी के ल

White 212  212  212  212
ज़िन्दगी  ढल गई अजनबी के लिये
उम्र भर हम जिये बस उसी के लिये

मयकदा  ही  मेरा बस ठिकाना बना
आते  है हम यहाँ ख़ुदकुशी के लिये

मयकदा  साकी  तेरा  सलामत  रहे
और क्या  चाहिये मयकशी के लिये

ठुकराया  हमें  सब  ने धोखा दे कर
हम  तरसते  रहे  हर किसी के लिये

प्यासे  थे प्यासे ही रह गये हम यहाँ
अश्क ही मझे मिले तिश्नगी के लिये

प्यार  दौलत  पे  भारी न हुआ कभी
खा म खाँ मरते  रहे सादगी के लिये

सर झुका ही रहा सजदे में उनके ही
इम्तहाँ  था   मेरा   बन्दगी  के  लिये
( एल,डी, )

©laxman dawani
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laxman dawani

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