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White 122 122 122 122 कहाँ है ऐसा वो नगर ढू

White 122  122  122  122
कहाँ  है  ऐसा वो  नगर  ढूँढता  हूँ
वफ़ा  से भरा  हमसफ़र  ढूँढता हूँ

रहा ज़िन्दगीका सफर मुश्किलो में
सुकूँ जो  दे वो इक सहर ढूँढता हूँ

जुबाँनी  न आँखों के समझे इशारे
वही वो  रूहानी  नज़र  ढूँढता  हूँ

सताते है जो गम मुहब्बत के हमको
ख़ुशी हो जहाँ वो  डगर  ढूँढता हूँ

मना ही लेता गर रूठे होते तुम तो
पशेमाँ  में  अपनी  नज़र ढूँढता हूँ

भटकते  रहे  तपते रेगिस्तां में हम
ठंडी छाँव का इक शजर ढूँढता हूँ

ये नफ़रत हमें मार ही डालेगी अब
दुआ  का  तिरी  में असर ढूँढता हूँ

बनी ज़िन्दगी जो  ये जहन्नुम मेरी
कज़ा को में अपनी ज़हर ढूँढता हूँ
       ( लक्ष्मण दावानी )
2/11/2016

©laxman dawani
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