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अज्ञात
कद न अंगुष्ट सा मन बैरी दुष्ट सा नैनों से नीर ले पैरों को पीर दे चर्म चर्म चीर के.. आप में संतुष्ट सा अंग अंग रुष्ट सा... मन बैरी दुष्ट सा... करता मनमानी है आफत में प्राणी है.. इसकी ना मानी तो काया को हानी है रोग लगे कुष्ट सा.. मन बैरी दुष्ट सा.. अवलम्बित देह का स्वारथ के नेह का प्रेरक प्रमेह का सत्य में संदेह सा छिन छिन में पुष्ट सा.. मन बैरी दुष्ट सा.. संगी एकांत का प्यासा देहांत का मृत्यु तक छोड़े ना.. दामन भी तोड़े ना.. उददंड अतुष्ट सा... मन बैरी दुष्ट सा.. ©अज्ञात #मन
Kamlesh Kandpal
मन का दीपक जला लो,बस एक बार , फिर कोई भी अन्धेरा, तुम्हें डरा नहीं पायेगा जीत जाओगे जिस दिन खुद को खुद से , फिर कोई तुम्हें ,हरा नहीं पायेगा ©Kamlesh Kandpal मन
मन
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी जुनून में है जिंदगी आपाधापी मची हुयी है दौड़ बराबरी की तय करने के लिये मन की मस्ती खोयी हुयी है तन हो गया बीमारियों का घर धन उसमे जा रहा है प्रतिष्ठित होने के लिये आज पैदा होते ही कोमल किशोरों को धन की जंग लड़ने के लिये उतारा जा रहा है हावी होता भोगवाद मकड़ी की तरह मानव उसमे फँसता जा रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #love_shayari तन हो गया बीमारियों का घर #nojotohindipoetry
#love_shayari तन हो गया बीमारियों का घर #nojotohindipoetry
read moreEkta Singh
White तेरी बात जब आए मेरा मन मुस्कुराए मेरी आँखों में चेहरा तेरे स्वप्न दिखाए ©Ekta Singh मन
मन
read moreRameshkumar Mehra Mehra
White आनंद बहां नही................ जहां धन मिलता है..! आनंद बहां है...!! जहां मन मिलते है...!!! और परमानंद बहां है....!!!! जहां तन मिलते है... ©Rameshkumar Mehra Mehra # आनंद बहां नही,जहां धन मिलते है,आनंद बहां है,जहां मन मिलते है,और परमानन्द बहां है,जहां तन मिलते है....
# आनंद बहां नही,जहां धन मिलते है,आनंद बहां है,जहां मन मिलते है,और परमानन्द बहां है,जहां तन मिलते है....
read moreAnjali Singhal
"महक जाता है तन-मन मेरा! ज़िक्र होता है जब-जब तेरा!!" #AnjaliSinghal #Shayari love #loveshayari nojoto
read moreseema patidar
White मेरा मन हमेशा अंतर्द्वंध से लड़ता रहता है कभी ख्वाबों के पुलिंदे सजाता है तो कभी मायूसी को गले लगाता है कभी भविष्य की संभावनाओं को निहारता है तो कभी अतीत के जख्मों को टटोलता है कभी समझदार बनकर जिम्मेदारियों से डरता है तो कभी सारे बंधन तोड़ आजाद होने को करता है कभी मान सम्मान के दायरे तय करता है तो कभी कल्पनाओं के साकार होने की दुआ करता है कभी स्वार्थ में खुद के लिए प्रेम ढूंढता है तो कभी निस्वार्थ बन अपने हिस्से का प्रेम भी ओरो के लिए उड़ेल देता है कभी जो हासिल हुआ उसी में सब्र कर लेता है तो कभी जो पाना रह गया उसकी शिकायते करता रहता है मेरा मन हमेशा अंतर्द्वध से लड़ता है क्या तुम्हारा भी मन कभी अंतर्द्वंध से लड़ता है। ©seema patidar मेरा मन
मेरा मन
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