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Author Harsh Ranjan
बस मौत नहीं मिली उस जूझते इंसान को, दैवयोग से, जिंदगी आगे जाएगी?! ऐसे कितने सवाल थे उसे पूछने कि उन विदीर्ण दीवारों में जन्मे कितने रोग थे जो जन्मों साथ जाते! हर मुर्दे का अधिकार है कि उसे मंजिल तक पहुंचाया जाए! क्या शमशान में भी भेद किये जाते हैं! उसने उस रोज जाना कि मर जाने को ही, क्यों सीधी समझ वाले हर बार अधिक आसान रास्ता पाते हैं! व्यवस्था ने अपनी एक टांग रखी उसकी चाबुक खाई पीठ पर, फिर दूसरी टांग भी डाली,वो भी युवक था ढीठ पर! फिर व्यवस्था ने अपना पाप भरा पेट और जहरीले स्तन उसपर लाध डाले, वो हड्डियां नहीं थी टूटने वालीं, भले ही बोझ उन्हें झुका डाले! आज उसकी मुस्कुराती तस्वीरें एक सरल सी बात बताती हैं! व्यवस्था से व्यवस्था बन ही जीतते हैं और हर ऐसा प्रतिद्वंदी किसी कुबड़े कछुए की पीठ पर मंदार सा होता है। बांकी, काजल की कोठरी में सबको पता है, अथाह कालिख होती है, तुम्हारी है तो, जीने की अपनी भी काजल ही वजह होती है! क्रांतिवीर 2
क्रांतिवीर 2
read moreAuthor Harsh Ranjan
एक लड़का था जिसने एक मंच पर कुछ क्षण पाने के लिए, बिताने के लिए अपनी समझ, अपनी आवाज, अपने विचार सुनाने के लिए, अपने घर-आँगन के हालात जताने के लिए, फांसी से कीमत अदा की। एक युवक था, जो असहमत था, जिसे लगा कि उसमें वो बात है, वो लड़ेगा सबकी लड़ाई, अपने हाथ कि बुरे हालात हैं, उसे सिर्फ उस पेड़ का साया मिला, जिसने उसपर आती कुछ गोलियां सहीं, पेड़ स्थिर था, इंसान चलंत, बस इतनी ही युवक की कहानी रही। आगे कुछ लोगों ने पन्नों पे लिखा, 'ये अपराधी थे।' कुछ सालों बाद फिर पन्नों पे उनका नाम और मुकाम उभरा, अब वो 'असहमत' कहलाये। फिर सालों बाद किसी ने गीत गाये उनके नाम के, अब वो 'क्रांतिकारी' कहाए। लोग क्रूरता भूले, क्रांति भूले, लोग दमन भूले, लोग भ्रांति भूले, आज़ाद देश में कुम्हाले वाले फूल खिले बस यही उनकी तस्वीरों को मिले! क्रांतिवीर 1
क्रांतिवीर 1
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बस मौत नहीं मिली उस जूझते इंसान को, दैवयोग से, जिंदगी आगे जाएगी?! ऐसे कितने सवाल थे उसे पूछने कि उन विदीर्ण दीवारों में जन्मे कितने रोग थे जो जन्मों साथ जाते! हर मुर्दे का अधिकार है कि उसे मंजिल तक पहुंचाया जाए! क्या शमशान में भी भेद किये जाते हैं! उसने उस रोज जाना कि मर जाने को ही, क्यों सीधी समझ वाले हर बार अधिक आसान रास्ता पाते हैं! व्यवस्था ने अपनी एक टांग रखी उसकी चाबुक खाई पीठ पर, फिर दूसरी टांग भी डाली,वो भी युवक था ढीठ पर! फिर व्यवस्था ने अपना पाप भरा पेट और जहरीले स्तन उसपर लाध डाले, वो हड्डियां नहीं थी टूटने वालीं, भले ही बोझ उन्हें झुका डाले! आज उसकी मुस्कुराती तस्वीरें एक सरल सी बात बताती हैं! व्यवस्था से व्यवस्था बन ही जीतते हैं और हर ऐसा प्रतिद्वंदी किसी कुबड़े कछुए की पीठ पर मंदार सा होता है। बांकी, काजल की कोठरी में सबको पता है, अथाह कालिख होती है, तुम्हारी है तो, जीने की अपनी भी काजल ही वजह होती है! क्रांतिवीर 2
क्रांतिवीर 2
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एक लड़का था जिसने एक मंच पर कुछ क्षण पाने के लिए, बिताने के लिए अपनी समझ, अपनी आवाज, अपने विचार सुनाने के लिए, अपने घर-आँगन के हालात जताने के लिए, फांसी से कीमत अदा की। एक युवक था, जो असहमत था, जिसे लगा कि उसमें वो बात है, वो लड़ेगा सबकी लड़ाई, अपने हाथ कि बुरे हालात हैं, उसे सिर्फ उस पेड़ का साया मिला, जिसने उसपर आती कुछ गोलियां सहीं, पेड़ स्थिर था, इंसान चलंत, बस इतनी ही युवक की कहानी रही। आगे कुछ लोगों ने पन्नों पे लिखा, 'ये अपराधी थे।' कुछ सालों बाद फिर पन्नों पे उनका नाम और मुकाम उभरा, अब वो 'असहमत' कहलाये। फिर सालों बाद किसी ने गीत गाये उनके नाम के, अब वो 'क्रांतिकारी' कहाए। लोग क्रूरता भूले, क्रांति भूले, लोग दमन भूले, लोग भ्रांति भूले, आज़ाद देश में कुम्हाले वाले फूल खिले बस यही उनकी तस्वीरों को मिले! क्रांतिवीर 1
क्रांतिवीर 1
read moreAsheesh Pandey
" श्वेत क्रांति 'से गांव-गांव बदल रही किसानों की तकदीर, खुशहाल किसान इस लक्ष्य से प्रतिबद्ध हर श्वेत क्रांतिवीर, श्वेत क्रांति वीरों ने हर मौसम हर कठिनाई को अपने फौलादी इरादों से सुगम बनाया है, दुर्गम राहों धुंध की चादर में भी खुद को संकल्पित बनाया है! तेज बौछारों बाढ़ की त्रासदी ने भी इनके हौसलों को बढ़ाया है! कोरोना महामारी में प्रकृति ने सब को आजमाया है, तब कोरोना वेरियरस बन सबने करतब दिखलाया है! सीमा पर जवानों ने जिम्मेदारी उठाई, तो पीड़ित जनसेवा की दवाई, डॉक्टर वैरीयरस ने घर-घर पहुंचाई। जब महामारी ने बंद किए कल कारखाने, महानगर छोड़ गांव बन रहे थे अब सब के ठिकाने! असहाय परिवारों पर पड़ रही थी आर्थिक मार ऐसे में श्वेत क्रांति बनी किसान जन सेवा आधार अब बारी थी श्वेत क्रांति वीरों की डेयरी के इन सजग कर्म वीरों की इन्होंने अपनी सेवा का लोहा मनवाया उन्नत पशुपालन स्वच्छ दुग्ध उत्पादन से किसान की आजीविका पालन करवाया! ऐसा प्रेम और समर्पण कहां मिलेगा जहां पशुओं को भी गंगा' गौरी' जमुना 'के नाम से बुलाते हैं, यह परिणाम है श्वेत क्रांति वीरों की क्रांति का, ये जहां पर जाते हैं कुछ अपनापन लिए हुए नए रिश्ते बनाते हैं। चाचा, दादी, दादा, माता, बहनें, यह सब से 'आशीष' पाते हैं। डॉक्टर साहब, रूट ऑफिसर, इंचार्ज साहब कई नामों से लोग इन्हें बुलाते हैं। जोश जज्बा जुनून सेवा इन्हें 'श्वेत क्रांतिवीर' बनाते हैं!! आप सभी स्वस्थ और सुरक्षित रहें। 'आशीष कुमार पाण्डेय' ©Asheesh Pandey श्वेत क्रांतिवीर
श्वेत क्रांतिवीर #कविता
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