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Stories related to समांतर माध्य

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PRAMOD SAMARTH

Manisha keshav

##जीवन में,समांतर पथ पर #Kathakaar #कविता

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JALAJ KUMAR RATHOUR

तुम्हारी मांग की सिंदूर रेखा और मेरी भाग्य रेखा शायद समांतर हैं।जो कभी एक दूसरे को नहीं काटेगी।अब शायद हम फिर कभी मिलें अनंत में किसी बिंदु #जलज

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तुम्हारी मांग की सिंदूर रेखा और मेरी भाग्य रेखा  समांतर हैं।जो कभी एक दूसरे को नहीं काटेगी।अब शायद हम फिर कभी मिलें अनंत में किसी बिंदु पर।
...#जलज कुमार

©JALAJ KUMAR RATHOUR तुम्हारी मांग की सिंदूर रेखा और मेरी भाग्य रेखा शायद समांतर हैं।जो कभी एक दूसरे को नहीं काटेगी।अब शायद हम फिर कभी मिलें अनंत में किसी बिंदु

Funny Singh🐼

Someone say ..... nothing is impossible .....But how it possible?? 👉 Parallel line- समांतर रेखा #yqbaba #yqdidi #yqtales yqbesthindiquo #Funny #Collab #YourQuoteAndMine #yqhindi #yqbesthindiquotes

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आप राहुल गांधी सी मूर्ख प्रिये;
मैं मोदी जैसा स्मार्ट प्रिये;
 असंभव है अपना मेल प्रिये!!
😝😝😝😝😜😜😜😝😝 Someone say .....
nothing is impossible
 .....But how it possible??

👉 Parallel line- समांतर रेखा
 #yqbaba #yqdidi #yqtales  #yqbesthindiquo

Nik Katara

खुशियाँ अनगिनत है इस दुनिया में, उनसे दूर भागता कौन है, दुःख भी चलते सुख के समांतर, मगर उसे चाहता कौन है, समंदर की लहरे दिखती खूबसूरत, चिर उ #yqdidi #yqhindi #yqquotes #yqlove #yqthoughts #yq_gudiya

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खुशियाँ अनगिनत है इस दुनिया में,
उनसे दूर भागता कौन है,
दुःख भी चलते सुख के समांतर,
मगर उसे चाहता कौन है,
समंदर की लहरे दिखती खूबसूरत,
चिर उन्हें गहराई में तैरता कौन है,
ऊपर देखो आसमान नीला,
ओर उसके ऊंची उड़ाने भरता कौन है,
कई सवाल इस दुनिया में,
जवाब उनका ढूंढता कौन है,
आनाजाना लगा रहता है इस जिंदगी में साहब,
यहां पांव टिकाए ठहरता कौन है! खुशियाँ अनगिनत है इस दुनिया में,
उनसे दूर भागता कौन है,
दुःख भी चलते सुख के समांतर,
मगर उसे चाहता कौन है,
समंदर की लहरे दिखती खूबसूरत,
चिर उ

सुसि ग़ाफ़िल

सैकड़ों रेखाएं, अजीबोगरीब आकृतियां, त्रिभुज, वृत्ताकार, गोलाकार, समांतर चलती हुई ट्रेन की पटरी, षट्भुज, अजीबोगरीब सुनसान रास्ते, फूलों से स

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सैकड़ों रेखाएं, 
अजीबोगरीब आकृतियां, त्रिभुज, वृत्ताकार, गोलाकार, समांतर चलती हुई ट्रेन की पटरी, षट्भुज, अजीबोगरीब सुनसान रास्ते, फूलों से सटे कमरे, कीचड़ से निकलते हवा के बुलबुले, खाली पड़े डब्बे, लाल आंखें, सुजा हुआ चेहरा, दीमक के घर, टेडी मेडी टहनियां, हृदय के बीच से गुजरती तरंगे, लाल कपड़ा, चमकती हुई बिजलियां इन सब को छोड़कर अटक जाता है मेरा मन एक बिंदु पर वह बिंदु मेरे माथे पर ठुकी कील के बिल्कुल नीचे है! 

मुझे महसूस होता है यहां पर जख्म का जन्म हुआ है | सैकड़ों रेखाएं, 
अजीबोगरीब आकृतियां, त्रिभुज, वृत्ताकार, गोलाकार, समांतर चलती हुई ट्रेन की पटरी, षट्भुज, अजीबोगरीब सुनसान रास्ते, फूलों से स

अशेष_शून्य

समय के साथ होते बदलावों से मुझे कोई शिकायत नहीं। चाहे वो मेरे भीतर हो या तुम्हारे। क्योंकि मैं जानती हूं ना ही तुम्हें समय #yqdidi #yqquotes #yqhindipoetry #अशेष_शून्य

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......... समय के साथ होते 
बदलावों से 
मुझे कोई शिकायत नहीं।
चाहे वो मेरे भीतर हो
या तुम्हारे।

क्योंकि मैं जानती हूं
ना ही तुम्हें समय

सुसि ग़ाफ़िल

होली की हार्दिक शुभकामनाएं सभी को,, रंग वही लगाए तुमको जिसने हक दिया है रंग में रंगने का हर दिन मेरे लिए एक त्यौहार है हर त्यौहार मेरे लिए

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हर दिन मेरे लिए एक त्यौहार है हर त्यौहार मेरे लिए एक दिन है मेरी जिंदगी के हर्षोल्लास रेल की पटरियों की तरह समांतर है जिस तरह रेल की पटरिया कभी नहीं मिलती ना किसी घंटे में ना किसी दिन में ना रात में ना साल में ना दशक में ना शताब्दी में ना ही ~~~~.

क्योंकि इसी तर्ज पर मेरे लिए सब दिन बराबर है मुझे कोई शौक नहीं है त्यौहार मनाने का इसलिए हर त्योहार पर मैं अकेला होता हूं बिल्कुल अकेला आज की तरह | होली की हार्दिक शुभकामनाएं सभी को,, 
रंग वही लगाए तुमको जिसने हक दिया है रंग में रंगने का

हर दिन मेरे लिए एक त्यौहार है हर त्यौहार मेरे लिए

अशेष_शून्य

सागर में सरिता का मिलना किसी आत्मिक संयोग (रिश्ते) का उच्चतम सोपान हो सकता है; पर अंतिम नहीं !! जैसे समांतर रेखाओं का

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सागर में सरिता का 
मिलना किसी
"आत्मिक संयोग" का 
उच्चतम सोपान हो 
सकता है;
पर अंतिम नहीं !!
— % & सागर में सरिता का 
मिलना किसी
आत्मिक संयोग (रिश्ते) का 
उच्चतम सोपान हो 
सकता है;
पर अंतिम नहीं !!

जैसे समांतर रेखाओं का

Sunita D Prasad

# अंतिम कुछ नहीं हुआ.. तुम्हारे सानिध्य में अधरों पर उभरी स्मित रेखा के समांतर ही पीठ पर खिंच आईं संख्यातीत स्मृतियों की

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# अंतिम कुछ नहीं हुआ..

तुम्हारे सानिध्य में 
अधरों पर उभरी
स्मित रेखा के समांतर ही 
पीठ पर खिंच आईं
संख्यातीत स्मृतियों की 
अश्रंखल लकीरें।


समग्र अनुभूतियों के केंद्र में 
जब केवल तुम और मैं थे 
तब अपने अस्तित्व के नकारे जाने से 
रुष्ट-विद्रोहिणी स्मृतियाँ
कई बार हमारे मध्य आ खड़ी हुईं
और अनेक वृत्तचित्र द्रुतगति से 
मेरे नेत्रों से होकर गुजर गए।


तुम्हारे स्पर्श के मृदु-आतप से
वे वाष्प बन उठीं तो 
पर एक गाढ़ी उमस से 
सकल परिवेश बोझिल हो चला।
अविरल वायु 
मेरी देह पर चिपकती गई।


ऐसे में मैंने 
तुम्हारी आँखों में 
तुम्हें निवस्त्र हो
काया पर अपनी
धारण करते पाया
केवल 
और केवल 'प्रेम'।


अनायास एक खिड़की खुली
और छँटने लगी सघन उमस।।
--सुनीता डी प्रसाद💐💐
 
# अंतिम कुछ नहीं हुआ..

तुम्हारे सानिध्य में 
अधरों पर उभरी
स्मित रेखा के समांतर ही 
पीठ पर खिंच आईं
संख्यातीत स्मृतियों की
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