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dilip khan anpadh
भूत का इंटरव्यू (हास्य-कथा)-Part-1 अहो भाग्य आप लोग मेरे इस“आपबीती कथा संबोधन” सभा में पता पाते ही पधारे | इस सभा के आयोजन का कारण ये है कि “नयी-बला” न्यूज़ पेपर के मालिक ने शरीर से आत्मा के त्याग के समय ( मेरे न्यूज़ का स्क्रिप्ट पढ़ते ही सलट गए ) मुझे इस अखबार के कर्ता-धर्ता का भार सौंप दिया है | वैसे तो मैं बचपन से बड़ा काबिल हूँ अलग बात है इस चीज का घमंड मुझे कभी नहीं हुआ,फिर भी इस काम को करने में मेरे पैर कांपते रहते हैं| खुद से अपेक्षा करता हूँ ताजे,यथार्थ और टनाटन न्यूज़ से मैं इस पदभार का निर्वहन अच्छे से करूँगा | आप लोग मूक-बधिर हैं फिर भी आज मेरी ब्यथा कथा सुनने श्रवण दीर्घा में बैठे है, जानकर ख़ुशी हुई | मैंने वो श्राद्ध जैसा निमंत्रण पत्र इसीलिए ही तो छपवाया था कि कान वाले लोग ज्यादा सुनते है और ज्यादा प्रतिक्रिया देते है |आपकी प्रतिक्रिया मिलेगी नहीं क्यूंकि जो सुनने वाले है,वो बोल नहीं पाते और जो बोलने वाले वो,बिना सुने बोलेंगे नहीं और तो और जो लोग सुनने और बोलने दोनों से गए हुए हैं उनकी प्रतिक्रिया निराकार रूप में मिलेगी | अक्सर महफ़िलों और सभाओं में आप, ऐसे लोगों को देख सकते हैं जिन्हें भगवान ने चंगा मुँह-कान दिया है,उनके पाले कुछ पड़े न पड़े पर शुभ्र वस्त्र वाले ये लोग अक्सर महफ़िलों में गर्दन हिलाते नजर आते है,जैसे उनसे बड़ा और कोई ज्ञाता ही न हो | संसद से मोहल्ले तक ऐसे गणमान्यों की तादाद काफी है | संसद में कुर्सियां फेंक और मोहल्लो में खच-पच कर इनकी शान बनी रहती है| खैर उनकी खोपड़ी में पड़े लीद से मुझे क्या लेना |बहुत जद्दो-जहद और धक्कम-पेल के बाद अपनी जिंदगी को नाले के समान प्रवाह दे पाया हूँ,सोचा सबों को स्नान करा दूँ| आप सभी लोग बड़े घराने से है,पापी तो हो ही नहीं सकते, ऊपर से मुँह में पान और इत्र की महक,भ्रम जाल बुनने को काफी है | धन्य हुआ आप उपस्थित हुए और बिना सुने भी तालियाँ बजा मेरा उत्साहवर्धन की करेंगे | जो बोल नहीं पाते उनका विशेष आभार क्यूंकि प्रतिक्रिया अगर शब्दों में नकद होता है तो झमेला ज्यादा होता है| **************************************************** आइये आपको अपना जीवनवृत सुनाता हूँ| सुनकर अगर मर्म समझ ले तो मोक्ष सा अनुभूति होगा| मेरी तो सरकार से आग्रह है मेरे जीवनवृत को विद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में शामिल करें, आज के धत्ते टाइप विद्यार्थियों को अमोघ लाभ मिलेगा और आगे चलकर देश का नाम रौशन करेंगे| खैर उनकी मंशा वो जाने | अपना गुणगान खुद करता हूँ तो पेट में उमेठी होने लगती है, जाने भी दीजिये | हाँ तो मेरा नाम “””पिलपड़े”” है | पिताश्री ने प्यार से रखा था क्यूँकी उन्हें प्यार करने कि आदत थी | घर तो घर बाहर भी सबको प्रेम देते थे | नत्थू चा के बीबी को दिया,तबसे चिता सजने तक बिकलांग रहे| एक बार 55 कि उम्र में मुजरा सुनते वक्त प्यार उफना तो लोगो के लात घूस्से में दाहिने आँख से दिव्य बन बैठे| छोड़िये बहुत नामचीन थे वो | बिना प्यार के तो उनकी बात ही न बनती थी | बच्चे भी प्यारे लाल बुलाते थे | उनके प्यार कि पहली और एकलौता निशानी मैं हुआ | उसके बाद सुनने में आया दूसरे बच्चे कि चाह में डॉक्टरों और मंदिरों के चौखट चूमा करते थे | डॉक्टर ने नकार दिया और भगवान् ने संतुष्टि कि घुट्टी पिला, सपोर्ट से इनकार कर दिया| माँ सदमे में आई और चुपके से प्रातः बेला में कूच कर गई | आजन्म ताश और सबाब में डूबे रहे इसलिए जरुरत भर समान इकठ्ठा कर पाए | संत और सात्विक बिचारो से प्रेरित थे, कभी भी आज के लोगों कि तरह ज्यादा संपत्ति कि इच्छा न की| मुखिया और पुलिस की मुखबिरी से घर का खर्च चलता था, इतने से रोटी की जुगाड़ हो जाती थी यही बहुत था | अपने पद और कर्म के प्रति निष्ठाबान थे लालच कभी उनको छुआ तक नहीं, क्यूंकि ऐसा मौका उनके हाथ कभी लगा ही नहीं| जंहा से जो मिल जाए पेट थपथपा हासिल कर लेते थे | हाँ कभी-कभी दूसरों के खेतों से मूली या गोभी उखाड़ने के एवज में सरे आम बेइज्जती भी मिलती रहती थी | पिछले साल ललन बाबू के बगीचे से आम तोड़ते पकडे गए तो उनके बेशर्म पहलवान बेटे ने किडनी के पास घूंसा मारा था सो रह-रह के रात में उठक-बैठक करते रहते थे | जब घर में खाने को कुछ न होता था तो मुट्ठी भर भूंजा के साथ चार मूली भकोस जाते थे और सड़क पे डकारते फिरते थे | जब कभी घर से बहार खाली पेट जाना पड़ता था तो दोस्तों के बीच बैठ, अजीब सा डकार मार दोस्तों को कहते थे ““””अरे ये औरते भी न .... “चिकेन में कंही इतना मिर्च दिया जाता है? कुछ कह दो तो बिदक जाती है,कम खाओ तो आँखे दिखाती है| अब आज के खाने का क्या कहे?तीन किलो चिकन का मिर्च डाल सत्यानाश कर दी,ऊपर से आग्रह कर-कर के आधा किलो ठुसवा दी |अब तो तरीके से बैठा भी नहीं जाता |चलो पत्ती मिलाओ| इस तरह उनके दोस्तों के बीच उनकी गजब की धौंस थी |वो तो पेट का भूख से गुरगुराना चहरे पर थोड़ी शर्म की लाली खींच देती थी, वरना ये हाथ किसी के न आते थे, भले पीठ पीछे दोस्त उनके दो पुस्त को गाली दे ले| किसी के घर शादी-ब्याह, पूजन श्राद्ध का आयोजन होता था तो चीफ गेस्ट के रूप में चार दिन उधर ही डटे रहते थे जब तक बचा हुआ माल-सबाब बटोर न ले | मैं तो बस इतना कहना चाहता हूँ जी कि सामाजिकता और दूसरों के प्रति सम्मान तो कोई इनसे सीखते अलग बात है किसी भी तरह के सम्मान के लिए सरकार ने इन्हें कभी याद नहीं किया | रात ढलते ही जमीन से सटे खटिये पे पसर पूरी रात टर्राते रहते थे| देशी ठर्रे की गंध से दम घुट सा जाता था मेरा,पर मैं भी कम प्रतापी पुत्र नहीं था झेलते हुए उनके पित्रित्व का भार उतार रहा था | जाने भी दीजिये एक दिन घोर बारिस में सोते समय घर कि चौखट को सपोर्ट करने के लिए लगा बल्ला इनके सर पे आ गिरा,हड्डियों में फंसे आत्मा ने अंगराई ली और भारत में तत्काल चल रहे ट्रेंड “मुझे चाहिए आजादी” का नारा लगाते हुए आत्मा ने शारीर का परित्याग कर दिया| इस तरह उनका “”हरि ॐ तत्सत हो गया””| पिताजी का गाँव वालों पे किये उपकार (कर्ज) अनगिनत थे सो मैं उन्हें अग्नि के हवाले करने के जद्दोजहद में पड़ना उचित नहीं समझा (क्योंकि विश्वास था ये कर्म भी गाँव वाले उनसे निजात के एवज में कर ही देंगे) | मुझे भरोसा था यमराज उन्हें सीधा नर्क ले जाएँगे अलग बात है वंहा भी उनके साथ गुत्थम-गुत्थी ही होगी पर भरोसा था वंहा पहिले से मुखिया जी और बीडीओ साब पहुंचे हुए हैं इन्हें देखते ही तत्क्षण अपना लेंगे और वंहा भी नए-नए गुल खिलाने का दौड़ चलेगा | ******************************************************* उस समय मैं महज 8 साल का था | सुबह घर कि हालत देखी तो खुल के चीख भी न सका की कंही कर्ज देने वाले दबोच न ले| दबे पाँव गाँव से तत्क्षण सन्यास ले लिया |टिकट के पैसे थे नहीं तो ट्रेन में टीटी से पहली मुलाकात बड़ा सौहार्दपूर्ण रहा,बस दो तीन थप्पड़ो और लात से ठेले जाने पर ही निजात मिल गई |दरवाजे के पास अपना स्थान नियत कर, भक्क-भक्क सबका मुँह देखने लगे | बोगी में बैठे लोग “बसुधैब कुटुम्बकम” की लाज रखने के लिए नाम पता पूछने लग गए थे | एक बच्चे ने आत्मियता दिखाई और थुथरा हुआ समोसा मेरी और बढाया | कूटे जाने के बाद भूख की ललक ने झट उसे गले के नीचे उतार दिया | बच्चे ने दुबारा कोशिश की थी पर उसकी माँ ने ऐसे आँख तरेरा की पूरा बोगी जान गया कि बच्चा लंपटई कर रहा और अपने बाप की गाढ़ी घूस की कमाई समाज सेवा में ब्यर्थ कर रहा | खैर उस परिवार का भला हो, इतना अपनापन भी अब कौन दिखाता है, आज कल ? भगवान का दिया सब था उसके पास, बस ह्रदय में स्नेह और प्रेम का अभाव था, पर जितना था मैंने उसमे बृद्धि देने हेतु इश्वर से कामना की | कोलकाता के सड़कों ने पनाह दिया और एक पंचर वाले ने काम| जिंदगी कि गाडी आधे पेट खाने से चल पड़ी | भोजन और मेहनत का सेहत पे बेजोड़ असर पड़ा और लम्बाई के हिसाब से मांस-मज्जे न जुड़ पाए| व्यक्तित्व कुछ ऐसा निखरा की मुझे देख कब्र में लाश भी मुस्कुरा उठे | बचपन में तोहफे में चहरे पर माता (चेचक) के कुछ धब्बे मिले जो आजन्म साथ निभाने का कसम लिए है| पुष्ट भोजन के अभाव में शारीरिक विकास का समीकरण गड़बड़ा गया और धर से, पाँव कुछ ज्यादा लम्बा हो गया | किसी को गले न लगा सकने के दुःख में बांहों की लम्बाई थोड़ी ज्यादा हो गई | दांत जो एक बार बचपन में टुटा तो मसूढ़ों की क्यारियां छोड़ अपना रुख अख्तियार कर लिया | आँखों में दिब्य दोष के कारण फुल वोल्टेज का गोल चश्मा ( जो पंचर वाले ने दिलवाई ताकि उसका पंचर का स्टीकर जंहा तहा चिपका के बर्बाद न करू ) पिछले 12 सालो से सेवारत है | चलता फिरता हूँ तो शरीर का हर पुर्जा अपने हिसाब से सहयोग करता है| सही ताल मेल के अभाव में थोरा झूम-झूम के सामंजस्य अख्तियार करता हूँ | कई दर्जियों से संपर्क किया सबने बस एक ही जवाव दिया “अजी हड्डियों के ढांचे का नाप क्या लेना,बस कपडा दे जाओ शाम तक दोनाली (फुल पेंट) बना दूँगा”| इस करण आजतक सही नाप का कपडा तक नसीब नहीं हुआ | अब क्या-क्या बताऊँ कि इन कपड़ों ने कंहा- कंहा ना बेवक्त झटके दे इज्जत उछाला है ....बस स्मार्ट दीखता हूँ इंतना समझ लीजिये, और हमारी हंसी तो मत पूछिये झट किसी के चहरे पे ग्रहण लगाने में सक्षम है क्यूंकि आजतक ब्रश नसीब नहीं हुआ और टूथ-पेस्ट हमने देखी नहीं तो दांतों के बीच थोडा खाया पिया रह ही जाता है और ऊपर से सुवाषित मुँह,सोने पे सुहागा है| खैर ये तो अपना-अपना व्यक्तित्व है,मेरे निखार से अक्सर लोग इर्ष्या करते हैं | #भूत का इंटरव्यू भाग 1
#भूत का इंटरव्यू भाग 1
read moreAnjali Jain
Person's Hands Sun Love दूसरी बात, विवाह किसी भी तरह से हो, घर तो लड़की को ही छोड़ना पड़ता है ऐसे में लड़के के माता-पिता उसे स्वीकार ही न करे तो लड़के के प्रेम का भूत माता- पिता के दबाव के आगे भाग जाता है और लड़की को ही दुःखद परिणाम सहने पड़ते हैं। पुरुष प्रधान भारतीय समाज में पुरुष अक्सर निर्दोष समझा जाता है और स्त्रियाँ सदैव दोषी व कुसंस्कारी सिद्ध की जाती रही है 10-15%की बात छोड़ें तो, क्योंकि कभी-कभी यह स्थिति उलट भी होती है। अतः दोनों प्रेमियों को अपने हृदय टटोलने चाहिये और जो विश्वास, विवाह से पूर्व जताया व किया गया था उस पर क़ायम रहना चाहिए क्योंकि दोनों में से किसी एक का परिवार तो साथ होता ही है। सबसे बड़ी बात, पति पत्नी का साथ और विश्वास ही सबसे शक्तिशाली होता है अतः जो राह दोनों ने मिलकर चुनी है उस पर दोनों को हर हाल में चलना चाहिए। अगर हालात असह्य हो तो बग़ैर दुनिया की परवाह किए अलग हो जाना चाहिए। अलबत्ता जीवन से बढ़कर कुछ नहीं !! ©Anjali Jain #sunlove प्रेम -विवाह भाग 02
Anjali Jain
Person's Hands Sun Love प्रेम- विवाह की विफलता का कारण,विवाह के बाद प्रेम की कमी होना नहीं बल्कि प्रेम प्रदर्शन की कमी होना होता है, किंतु दोनों प्रेमियों को समझना चाहिए कि प्रेम, घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों की परतों के नीचे दब जाता है। प्रेम न कम होता है न खत्म होता है अपितु वह तो इतना गहरा हो चुका होता है इतनी आत्मीयता में बदल चुका होता है कि वह दिखाने की आवश्यकता ही नहीं रखता। घर- गृहस्थी ,बच्चे, परिवार के दायित्वों के निर्वहन में वह उस तरह नहीं दर्शाया जा सकता है जैसा विवाह पूर्व दर्शाया जाता था। ©Anjali Jain #sunlove प्रेम विवाह भाग 01 04.02.24
Raone
इन काली अंधेरी रात में याद जब हम आपको आयेंगे अमावस की उस भयानक रात में आप चाह कर भी हमसे मिल नहीं पाओगे साँय-साँय करती उस रात में ख़ुद की साँसों को भी महसूस नहीं कर पाओगे मेरे बन्द पड़े अल्फ़ाज़ों को खामोशी का नाम ख़ुद दे जाओगे याद करो जब रो-रोकर मैं, अपनी तड़प आपसे कहता था उस वक्त बहरे आप बन जाते थे, पर पीड़ा मेरा गहरा था अब इस धरती पर मेरा जिस्म नहीं, दफ़न कब्र में सोया हूँ अब कब्र पे आकर क्या रोना, जिन्दा रहते तेरे प्यार में कितना रोया हूँ जब तब ना समझे तो अब क्या समझोगे पर लिखकर मैं कुछ छोड़ गया हूँ, क्या इसको समझ पाओगे कुछ अल्फ़ाज़ मेरे तुम याद रखना राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-1) भाग-1
भाग-1 #कविता
read morePRATIK MATKAR
एक निराशा हाती आली अंधार सोहळे देऊन गेली बीजे मातीमध्ये रुजण्याआधी स्वप्न कोवळे घेऊन गेली एक निराशा मग मनात रुजली स्वप्न वेलीवर हळूच चढली भार मनीचे वाढू लागले सगळेच अनुभव कडू लागले चव आयुष्याची निघून गेली भयाण शांतता वाट्याला आली भाग 1
भाग 1
read morePràteek Siñgh
हर किसी का जीवन किनारे पर बैठे आनन्दित पर्यटकों जैसा नही होता, लोगों का जीवन मझधार में फँसे मांझी की तरह भी होता है ,जिन्हें किनारे तक जाने में कभी कभी कुछ समय लगता है तो कभी कभी पूरा जीवन, पर ये कोई दुःख या पीड़ा नही है , ये जीवन का मर्म है सत्य है, जिसे कर्मठता से वहन करना ही हमारा दायित्व है , थक कर हार जाने से हमें किनारा नही मिलेगा , और मझधार में डूबने वालों की गिनती बहुत ज्यादा है, तो रोज़ सुबह उठिए सूरज की भाँति और जीवन की लीलाओं का पूर्ण आनन्द लीजिए , गलतियों पर माफ करना सीखिए, और स्वयं को दूसरों के लिए सदैव तत्पर रखिये, क्योंकि खाली हाथ भले ही जाना है पर लोगों के हृदय में जीवित रहने का एक मात्र यही साधन है। ©Pràteek Siñgh जीवन का सफ़र..... भाग -1 #nojotohindi #Life
जीवन का सफ़र..... भाग -1 #nojotohindi Life #विचार
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