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Ravi Tiwari
जलता हूँ मैं वो राख नही होती बड़ी बेहाया है जिंदगी ख़ाक नहीं होती...✍🏼 #किश्तों_की_ज़िंदगी
BS NEGI
खो गए हैं जो वक़्त की धुंध मे कहीं, वो धुंधले अक्स जेहन में उभर जाती हैं... मशगूल है वो अपनी नई दुनिया मे इस कदर, सदाएँ मेरी उस संगदिल तक आ के लौट जाती हैं... न जाने कैसे हुई ऊसर ये प्यार की धरती, अब तो यहाँ बस नफरतें ही बोई जाती हैं... मिल भी जाओ तुम अब ऐ जिन्दगी तो भी कुछ हासिल नही, किनारे मिलते नही उन कश्तियों को अक्सर जो भवंर मे डूब जाती हैं... ©BS NEGI किश्तियाँ
किश्तियाँ #शायरी
read moreHitesh Gupta
किश्तीयां किनारे कर दी है साहिल ने आज, चलो अब सैलाबो का खेल देखते हैं l #Rok_nahi_paye #किश्तीयां #Firstpost
#Rok_nahi_paye #किश्तीयां #firstpost #शायरी
read moreAbhiraj kumar
हवाओं की तलाश में मौसम की कोई किश्त होती, तो क्या गर्मी सर्दी बारिश और ठंड अपने अपने सपने संजोती, या फिर वो भी करती इंतजार अपने वक्त के आने का, जब वो भी किसी की बाहों में सिर रख के सोती। ©Abhiraj Kumar किश्तें।।
किश्तें।। #ज़िन्दगी
read moreZeeshaan Ansari
हम तो समझे थे कि अब अश्कों की किश्तें चुक गईं, रात इक तस्वीर ने फिर से तक़ाज़ा कर दिया.. अश्को की किश्ते
अश्को की किश्ते
read moreManmohan Dheer
वो कर्ज़ से अब भी चढ़े हुए हैं जेहन में कभी ख़ुद को रख आया था मैं रेहन में चुक रहा है इश्क़ किश्त किश्त . किश्त
किश्त
read moreJay Trivedi
"किश्त" कुछ किश्ते भरी हैं मैंने, अभी थोड़ी बहोत बाकी हैं! दर्दे महोब्बत में अभी भी, बिछड़ने की किश्त बाकी हैं! जमा हैं युं तो कई गम ये मेरे, पर किश्त-ए-खुशहाली अभी बाकी हैं! महज़ रह जायेंगी यादें सिर्फ उनकी, दर्दे महोब्बत में अभी भी, कुछ अधूरे ख्वाब अभी भी बाकी हैं! ले डूबेंगे उनकी यादें अब हमतो, समंदर की उन गहराइयो में! ये नामुकम्मल इश्क़ की बस अब, किश्त-ए-तन्हाई अभी बाकी हैं! - जय त्रिवेदी ('रुद्र') #किश्त
paritosh@run
हम समझते थे कि अब उनकी यादों की किश्तें चुका दी हमने... रात उनकी यादों ने आकर फिर से तकाज़ा कर दिया... ©paritosh@run किश्तें... #WallPot
किश्तें... #WallPot
read moreriver_of_thoughts
लफ्ज़ कुछ पिछले पन्नों से... जो अक्सरहां टकरा जाते हैं दिन, महीने, साल में.... बीते कल में... या शायद...आज.... हाँ, आज के दिन.... किश्तों का हिसाब !! किश्त-दर-किश्त गुजरता वक्त यह ढल नहीं जाता एकबारगी क्यों? कि किश्तों में ही क्यों बनती-सँवरती और बिगड़ती जिन्दगी! क्या,किश्तों के दायरे से बाहर नहीं है आदमी...? 'किश्तों का हिसाब' है, जमाने का रिवाज! @manas_pratyay #किश्तों_का_हिसाब © Ratan Kumar
#किश्तों_का_हिसाब © Ratan Kumar #कविता
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