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Aakansha shukla
पल भर के लिए कल्पना कीजिए, फोन, दूरदर्शन, अन्य सभी, बिजली चलित उपकरणों, को खुद से दूर कर दीजिए। कितना भयावह दृश्य वो होगा, कितना शांत वातावरण होगा। उस शांति में भी एक भय होगा, मन में बस एक सवाल होगा। कैसे अब दिन में गुजारा होगा, कैसे अब किसी से बात होगा। कैसे गर्मियों में पानी ठंडा होगा, कैसे ठंड में हीटर चालू होगा। इन सवालों के बाद हमारे, पास बस एक रास्ता होगा। संस्कृति से अपनी जुड़ने का, सिर्फ एक ही वास्ता होगा। फोन के बगैर किताबों, पर हम सब ध्यान देंगे। फ्रिज के बगैर गगरे, का ठंडा पानी पियेंगे। त्योहार मनाने के लिए, सभी से मिलने जायेंगे। खेल-कूद कर अपनी, स्फूर्ति और उम्र बढ़ाएंगे। एक बार फिर दादी-नानी, अपनी कहानियां सुनाएंगी। पुरानी परंपराओं से हम, अपने रिश्ते सुलझाएंगे। बिन यंत्रों के अपने जीवन, को हम खुशाहाल बनायेंगे। बिन यंत्रों के भी जीवन में, सुख-शांति हम पाएंगे। ©Aakansha shukla कविता कोश
कविता कोश
read moreSarita Kumari Ravidas
आधी अधूरी जैसी भी हूं सबसे पहले इंसान हूं मैं नासमझ नादान जो भी हूं आंखों में आसूं लिए इक आस हूं मैं माना हूं भरोसे में..... मैं कुछ से धोखे खाईं राहों में मुश्किले तो सभी की आनी है पर किससे कहूं? सबसे पहले इंसान हूं मैं।। ©Sarita Kumari Ravidas #Parchhai कविताएं कविता कोश कविता कविताएं कविता कोश
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read moreकवि प्रभात
मेरे सँग आप रहो शिवजी, भले जग सँग ये न दे आप के दम से ये सेवक,, जुझेगा हर खतरे से भले जग करता है वैसा तेरी भक्ति नहीं भाती 2 तब भी साथ तुम मेरा, नही तजना शिव शंभू हे! ©कवि प्रभात कविता कोश
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read morealka mishra
White कांधे से कांधा मिला कर चलने की सोच थी खुद को साबित करने की दिल में लगी भूख थी मंजिल के प्रकाश में जोश जुनून का सहरा था। मालूम न था राहों में अदृश्य दीवार का पहरा था। जिसके नुकीले सरिये ने घाव दिया गहरा था। जिसने हमारे तन मन को अंदर तक घायल किया हमारे हर अरमानों का बेरहमी से क़तल किया। ©अलका मिश्रा ©alka mishra #अदृश्य_दीवारें कविता कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कोश
#अदृश्य_दीवारें कविता कविता कोश प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता कोश
read moreDeepika
White कविता - भिक्षुक वह आता-- दो टूक कलेजे को करता, पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता — दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए, बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते, और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए। भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते? घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए ! ठहरो ! अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा। ~~ निराला ~~ ©Deepika #poem #हिन्दी कविताएं कविता कोश हिंदी कविता Hinduism कविताएं