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अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "

बचपन की सोचों और संस्कारों का पतन 
नयी रहन-सहन जीवन-शैली की देन है ।
जिसे हम प्रतिस्पर्धाओं के कारण मृगतृष्णा में
अपने बच्चों को जन्म से ही धकेलने लगे हैं ।
-प्रमोद मिश्रा #शिक्षाप्रद

SURESH KAPDI

शिक्षाप्रद उपदेश #जानकारी

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Parasram Arora

लघु कविता #RajasthanDiwas

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#RajasthanDiwas इसकदरक्यों खोया खोया  सा रहता है  वो शख्स इन दिनों
ढूंढ़ता रहता है  नजाने  क्या ज़ो उसे  यहां मिलता नहीं

प्लानिंग कर  रहा  है  वो चाँद  तारों पर जाकर  बसने की
शायद  मिल जाएगा  उसका  हमसफर  वही  कहीं 


खुददारो की  इस  नगरी मे  तुम ये  क्या  बांटने  जा  रहे  हो
लेकिन इस  नगरी मे  कोई भी  कभीहाथ  पैसारता  नहीं

©Parasram Arora लघु  कविता

Parasram Arora

# लघु कविताये......

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खिजां से   दोस्ती  का  दम  भरते हो 
और  कोशिश चमन लाने  की  करते  हो 
ये तो   वैसा ही है जैसे 
सहरा  मे तुम  दरिया का ख्वाब  देखते हो 

............. 
ओकात  अपनी भूल कर  मिज़ाज़  पर. काबू 
पाने  की   बात  करते हो 
और  माना क़ि  तरक्की  करके  तुम  शिखर 
तक भी  पहुंच     गए  हो 
पर  हंसने  का  रिवाज़  भी तो  तुम  भूल 
गए  हो #
लघु  कविताये......

Parasram Arora

#लघु विजय.....

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उम्र  अंधेरों  मे  भटक  रही है 
और  रौशनी  का घेरा  भी  दूर होता हुआ 
दिख रहा  है 
तभी तो  मृत्यु का देवता  मुझे  
ढूंढ   पाने  मे  असमर्थ  हुआ है 
और  मेरा  एकदिन  और  जीवित  हो 
जाता है l
इसे   कहा  जा  सकता  है  जीवन की 
 मृत्यु पर  विजय  पाने  वाला  
एक  दिन  
यधपि  ये  एक  लघु  विजय  है 
लेकिन  फिर  भी  विजय   तो  है ही #लघु  विजय.....

Arora PR

लघु जीवन #कविता

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Parasram Arora

लघु कविता.....

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प्रायः  देखा गया है
लघु कविताओं का  जीवन लम्बा
होता  है
क्योंकि उसे समझने के लिये.
लम्बे समय तक सिर खुजाना
पड़ता है
और ज़ब कोई उसका अर्थ समझ भी
लेता है तो  उसे अपनी
निरर्थकता का अहसास भी होने लगता है

©Parasram Arora लघु कविता.....

Parasram Arora

लघु कविता

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जो दूध से जला  था  वो
छाछ को फूक क़र पी रहा  है
जो  कल ही  अपमानित हुआ था
आज वो भी मुँह उठाकर थूक रहाहै 
किसको  इसका  भेद  मिला है
मुँह क्या बोल रहा  दिल क्या बोल रहा है
जो कुछ  गुजर गया थे बीते दिनों  मे
उसे अब वो  आने वाले दिनों क़े लिए खींच रहा
न चैन दिन को  न शब को  नींद है
न जाने  वो किस अजनबी  क़े साथ  रह रहा है

©Parasram Arora लघु  कविता

Pranav Parashar

#लघु कथा

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लघु कथा 

सुधीर - 
रमेश वो देख घनश्याम के यहाँ आग लगी है

रमेश - 
अरे, उधर देख राजेश के यहाँ भी लग गई 

देख इसके घर भी आग पहुँच गई, 
देख उसके घर भी आग लग गई 
देख कैसे दौड़ रहे हैं लोग आग बुझाने के लिए
घंटों तमाशा देखने के बाद जब उन्होंने अपने घरों की ओर देखा तो पाया दोनों के घर जल चुके थे

                                         ~ प्रणव पाराशर #लघु कथा

Parasram Arora

लघु कविता

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कर न सका  साबित कोई
फिर भी मैं सच्चाई  हूँ


जिस्म नहीं कोई  मेरा
मैं कैसी परछाई हूँ

जिसको  मां ने  खर्च किया
मैं  वो  कमाई हूँ

©Parasram Arora लघु  कविता
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