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vikas agrawal
शिवरात्रि विशेष।। हे ईश्वर, सोलह सोमवारी करने वाली छोरियों की, सुन ले ओ भोले। देदे इनको भी वैसा वर, जैसा यह बोले। जो जोरू का गुलाम हो। करता घर का सारा काम हो। जो कमाता भी हो। बीवी के नखरे उठाता भी हो। प्लीज सुन ले भोले मेरी बहनो की ।। ©vikash Agarwal फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है।।
फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है।।
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फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है...! ©someone special #rakshabandhan फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है...!
#rakshabandhan फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है...!
read moreMeenakshi Sharma
कितना सुन्दर है ना यह रात का नजारा, चांदनी ने भी फिर तारों को है सवारा, जगमग जगमग सा है लग रहा संसार सारा, तेरी मेरी कहानी का भी यही है नजारा। Meenakshi Sharma तारों का नजारा
तारों का नजारा
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बंजर भूमि का चमकता सितारा - 4 ******************************* डॉ सुनीता चाय पी रही थी और अपने पति रणवीर के बातों को सुन भी रही थी । पति के द्वारा बेटा अनुप के उज्ज्वल भविष्य के लिए नौकरी छोड़ने के लिए कहने पर सुनीता का हंसमुख चेहरा मुर्झा जाता है । रणबीर अपने पत्नी के चेहरे को ध्यान से देख रहा था , वह काफी बेचैन नज़र आ रही थी । यह सब देखकर रणबीर अपने बातों को बदलते हुए मजाकिया मूड में आ गया ........ और बोला ..... क्या बात है आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो ! तुम्हारे काले - काले जुल्फें और सितारों सा चमकता तुम्हारे दोनो नैन .......ठंढ़ हवा , बरसात का मौसम ..............यह सब सुन कर सुनीता खिलखिला कर हंस देती है । बारिश भी धीरे - धीरे कम हो रही थी , हवा भी शांत हो चुका था । इधर बेटा अनुप अपने मां से बोलता है.....मम्मी खाना खाएंगे....यह सुनकर सुनीता पति से बोलती है....सुनिए न ......आज कहीं बाहर किसी रेस्टोरेंट में खाना खा लेते हैं ,अनुप को भी भुख लगी है...समय भी ज्यादा हो चुका है। अब खाना बनाने का भी दिल नहीं कर रहा है । डाक्टर रणबीर कहता है ....कहां चलना है...सुनीता .........किसी अच्छे रेस्टोरेंट में चलो......भगवान इन्द्रदेव हम दोनों पर मेहरबान हैं.........यह कहते हुए पति पत्नी दोनों आसमान कि ओर देखते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं । फिर दोनों पति-पत्नी एक साथ बोल पड़ते हैं.....इन्द्र देव जी आज हम दोनों पति - पत्नी फुर्सत में हैं......इसके लिए आप को बहुत - बहुत धन्यवाद । इतना कहकर गैरेज से कार निकालता है और दोनों अपने बेटे अनुप के साथ कार में बैठ कर शहर कि ओर खाना खाने के लिए चला जाता हैं । ************************ प्रमोद मालाकार की कलम से *************************** कहानी लगातार पेज -5 ©pramod malakar #बंजर भूमि का चमकता सितारा - 4
#बंजर भूमि का चमकता सितारा - 4
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बंजर भूमि का चमकता सितारा - 1 *************************** एक मजदूर शाम के वक्त काम करके पैदल अपना घर लौट रहा था,अचानक एक व्यक्ति ने आवाज लगाते हुए कहा मंगरू घर जा रहे हो .... मंगरू ने जवाब देते हुए कहा ..... जी साहब । फिर उस व्यक्ति ने कहा .......मंगरू मेरे घर में छोटा मोटा काम है कल आकर कर देना और जो पैसा होगा मैडम से ले लेना ....... मंगरू बोला ... जी मालिक .... इतना बोल कर आगे बढ़ गया। आवाज देने वाला व्यक्ति गांव का हीं एक अमीर आदमी जो सरकारी अस्पताल में पति - पत्नी दोनों डाक्टर था । पति का नाम डॉ रणवीर और पत्नी का नाम डॉ सुनीता था । दोनों सभ्य और मेहनती थें। इन दोनों में सिर्फ एक कमी थी .......... ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना । इसी वजह से दोनों मोहतरमा अपने तीन वर्ष के बेटे को नौकरानी के भरोसे छोड़ कर रात दिन अस्पताल तथा प्राईवेट प्रेक्टिस में लगे रहते थें। लाखों रुपए महिने कि कमाई लेकिन खाने वाला सिर्फ तीन लोग। इधर मंगरू जैसे हीं अपना घर पहुंचता है ............... मंगरू का चार साल का बेटा विकास तुतलाते हुए बाबा - बाबा बोलते हुए अपने पिता मंगरु का दोनों पैर पकड़ कर लिपट जाता है ........ और कहता है ....... बाबा अमतो तिताब ला दो ....... इततूल दाएंगे ....... बेटे का बात सूनकर मंगरू बेटे को खुशी से गोद में उठा कर प्यार करने लगता है । विकास कि मां भी दुसरों के घर में साफ सफाई का काम करती थी , इस कारण अभी तक वापस अपने घर नहीं आई थी । ____________________ प्रमोद मालाकार की कलम से --------------------------------- कहानी लगातार पेज २ ©pramod malakar #बंजर भूमि का चमकता सितार-1
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बंजर धरती का चमकता सितारा - 5 **************************** अंधेरा हो चुका था । घर में पानी चूने के कारण मंगरु के घर में नास्ता और दोपहर का भोजन नहीं बन सका था। घर में पहले से रखा चूड़ा पानी में फूला कर गूंड़ के साथ बेटा विकास को खाने के लिए दे दिया। मंगरू और सुलेखा भी चूड़ा गूंड़ खा कर अपना पेट भर चुका था। मंगरु चुपचाप शांत बैठा अपने बेटे विकास के स्कूल में दाखिला के बारे में सोच रहा था । मंगरू पांचवी क्लास पास था लेकिन दुनिया दारी की जानकारी अच्छी खासी थी । मंगरु यह सोच रहा था की बेटा विकास को स्कूल में नाम लिखाने के लिए गांव के किन लोगों से जानकारी लेना चाहिए । मंगरू अपनी पत्नी से पूछता है..सुलेखा मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि विकास का नाम किस स्कूल में लिखाना है । सुलेखा बोली ...... मैं जहां काम करती हूं वो सभी पढ़े लिखे परिवार हैं .....मैं कल उनसे बात करती हूं । इतना सुनते हीं मंगरु बोला कल क्यों आज क्यों नहीं ....इतना कहकर मंगरु पत्नी के साथ बेटे को गोद में लेकर गौतम बाबू के घर कि ओर चल दिया। रात के लगभग नौ बजने वाले थे। दरवाजा पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया । घर के अंदर बैठे गौतम बाबू उम्र लगभग पचास वर्ष अपने बेटे अमृत को आवाज लगाते हुए कहा.......बेटा अमृत देखो बाहर कोई आया है .... कौन है देखो तो । अमृत आकर दरवाज़ा खोलता है और सुलेखा को देखते हीं बोलता है ...अरे दीदी इतना रात में आप......क्या बात है..?? सब ठीक है न । अमृत का आवाज सूनकर गौतम बाबू पूछते हैं बेटा कौन आया है यह कहते हुए वह भी आ जाते हैं और कहते हैं ........बाहर क्यों खड़ी हो अंदरआओ । सुलेखा पति और बेटे के साथ घर के अंदर प्रवेश करता है और सोफा के सामने जमीन पर बैठ जाता है । गौतम बाबू भी सामने रखा प्लास्टिक कि कुर्सी पर बैठ गएं । धिरे धिरे पुरा परिवार इकठ्ठा हो जाता है । गौतम बाबू सुलेखा से पुछते हैं..........बोलो बेटी इतनी रात में क्यों आई हो कोई परेशानी है क्या .? मंगरु बोला नहीं बाबू कोई परेशानी नहीं है । गोतम बाबू .... फिर इतनी रात में ....????..मंगरु बोला ......बाबू बेटा बड़ा हो गया है। किसी अच्छे स्कूल में इसका नाम लिखाना है ..........हमको इ सब जानकारी नहीं है साहब .... सुलेखा बोली जहां मैं काम करती हूं वो साहब पढ़े लिखे लोग है ...... इसलिए मुझसे रहा नहीं गया और आप के पास चला आया । सोचा आप हमें जरुर सहायता करेंगे। ******************************** प्रमोद मालाकार की कलम से *************************** कहानी लगातर - पेज - 6 ©pramod malakar #बंजर धरती का चमकता सितारा 5
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