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Author Munesh sharma 'Nirjhara'
अब कहाँ ऋतु ऋतु-सी आती हैं मन को पहले-सा भाव-विभोर करती हैं कब आया वसंत और चला गया किसी को कहाँ पता चलता है गुलशन हृदय को कब महकाता है अब तो बस कैलेण्डर ही 'चैत्र' से मिलवाता है...! आती है ग्रीष्म भी;लेकिन बूँद पसीने की कहाँ दिखती बन्द कमरों की ठंडक में गर्मी भी ठंडी हो जाती...! वर्षा ऋतु आती है पर पहले-सी नहीं तन और मन भीगता था वो बारिश अब नहीं कहीं बूँद-बूँद तो कहीं बाढ़-तूफान मन को प्रफुल्लित अब करती नहीं...! शरद् का चाँद अब कहाँ चाँदनी बिखराता है धूल-धुएँ के गुबार में कहीं खो-सा जाता है प्रेमी हृदयों की कविताओं में ही अब नज़र आता है...! हेमंत की वो कंप-कंपी अब कहाँ उतना कंपकंपाती है हाथ-पैरों का सुन्न हो जाना तो पुरानी बात लगती है जमती थी पौधों पर ओस 'बर्फ-सी' नहीं वो हेमंत अब हिम-सी...! शिशिर ऋतु अब फागुन में कहाँ फाग बन आती है नौजवानों की टोली तो कहीं नहीं अब दिखती है प्रेम-प्यार का राग-रंग अब फागुन की कहाँ पहचान रहा...! ऋतु आती और जाती हैं पर ... परिवर्तन कहाँ अब दिखता है घर की दीवार पर टंगा पंचाग ही ऋतु-परिवर्तन की सूचना देता है उसी में हमारे ज्ञान-चक्षु खुल जाते हैं ऋतु अब कहाँ आती और जाती हैं कुछ नहीं पता चलता है...! #ऋतुएँ #yqdidi #yqpoetry
Ghumnam Gautam
दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं ©Ghumnam Gautam #ऋतुएँ #अंश #हर #भिन्न #ghumnamgautam
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read moreParasram Arora
हृदय की मरुभूमि मे. कुछ बूँदे आसुओं की आ गिरी है उम्मीद है अब नमी पाकर इस रेतीले खेत की फसल लहल्हाएगी ©Parasram Arora फसल
फसल #कविता
read moreनितेश सिंह यादव
मौसम तो गरमी का था कहाँ से हो गई बरसात दिन तो फसल काटने का था कहाँ तो फसल हो गई बरबाद फसल
फसल
read moreविनीत
ये जो खेतों में हरियाली है। आने वालीं फ़सल की तैयारी है। ©विनीत #फसल #खेती
KAKE KA RADIO
आज का ज्ञान स्वादानुसार जाति और धरम छिड़किए, चुनावी फसल तैयार है अब इसे गरमा गरम चखिए । #NojotoQuote चुनावी फसल
चुनावी फसल
read moreVinod Thakur @vinodthakur8498
मेहनत किसान की बनके पसीना, जब मिट्टी में मिल जाती है। तभी कहीं जाकर भरने को पेट हमारा, फसल खेतों में लहराती है।। ©Vinod Thakur #किसान#फसल