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BANDHETIYA OFFICIAL
राजनीति में मत पड़ो..... राजनीति करते हो..... ताना/दिव्य ज्ञान स्थानीय स्वशासन के नाम पर होने वाले मुखिया,वार्ड आदि चुनाव में कुछ ज्यादा ही उछाल मारता है। फलतः आपसी वैमनस्य बढ़ने की प्रबल संभावना बन जाती है। ©BANDHETIYA OFFICIAL स्थानीय स्वशासन! #leaf
Gautam Bisht
एकदा। "सांगुडे की गेंद" भगवान भुवन भाष्कर अपनी तय निश्चित 12 राशियों का चक्कर लगा कर धनु राशि की यात्रा की थकान के बाद ज्यो ही मकर की संधि स्थल पर पहुँचे। तो पूरा ब्रह्मांड एक नई ऊर्जा में संगठित होने लगा। अजनाभखण्ड के नाम से प्रसिद्ध भूमध्य रेखीय भारतवर्ष में जैसे उत्सव और खुशियों की बाढ़ सी आ गई। 14 जनवरी को उस साल भी जब ये खगोलीय घटना पौराणिक सुखद संयोगों से मेल बना रही थी। गाँव के बच्चों के मन मे सांगुडे की गेंद की नई नई कथायें पनप रही थी। क्या पता है, इस बार सांगुड़ा मे किसकी धाक जमेंगी, लंगूर पट्टी और मनियारस्यू पट्टी के इस हार जीत में सारी न्यारघाटी का माहौल गर्म सा प्रतीत होने लगता। क्या बूढ़े क्या बच्चे क्या जवान, सब अपने अपने महकमे चर्चा का यही बिषय रखते। जानें क्यो, सीमा पर डटे फौजियों भुजाएं भी फड़कने लगती, लहू नसों में गर्म सीसा बन बहने लगता पहली बार की हार जीत याद करके मन के मंसूबे पुर जोर गाँव की तरफ खिंचने लगते। कि काश इस बार साल की पहली कि छुटियाँ मिल पाती तो अपनी मनियारस्यू में गाजे बाजे के साथ जरूर गेंद जीत कर लाता, फिर हाट, घाट, बाट, चौराहे पर उनकी ही तूती बोलती। नन्ही नन्ही बच्चियां अपनी सहेलियों के साथ मेले में खीलोंनो की खरीदारी की चर्चा करने लगी थी। बूढ़े अपने दिन याद करके तास की महफ़िल में हार जीत का गणित बैठाने लगे थे। बच्चों में अलग ही जिरह चालू थी। पहली बार मेरे पापा ओर चाचा ने अकेले गिन्दी जीत ली थी। रजोगुण के प्रबल मनुष्य जलेबी की दुकान लगाने के लिये अपना हाथख़र्च आजमाने लगे थे। यूँ समझो चरखी से लेकर अनगिनित खिलौने की ठेलिया, पेठा, मूंगफली, पकोड़ी,जलेबी , मावा, समोसे, ओर एक पतली सी तार पर फिसलता प्लास्टिक का बंदर, हवा के उड़ते गुबारे, कहते है। इनमें भगवान अपनी पवित्र हवा भरते है। जरा हाथ से छोड़कर देखो बच्चू सीधे भगवान के घर चले जाते है। बालुसाई, बूढ़े की अंगुलिया, बुढ़िया के बाल , जाने क्या क्या मै तो कई बार जा चुका हुँ। पाँच साल का बूढ़ा स्याना, बच्चो के बीच शेखी बघार रहा था, दूसरा जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, एक हाथ से ही गिदी को इतनी दूर फेंक दूँगा की किसी को दिखाई नही दे। दूसरा तो क्या बाकी लोग देखते रहेंगे। अरे छोड़ यार,,, वहाँ तो बड़े बड़े पहलवान भी आते है। सब जोर लगाते है। जीतना बहुत मुश्किल है। अरे सुन भई मै अभी छोटा दिख रहा हूँ। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मेरे हाथ पांव बड़े नही होंगे। तू तो समझता ही नही। तू भी चलना मेरे साथ मैं तेरे पास भी फेंकूँगा। तू फिर मेरे पास , मैं भाग कर सड़क तक पहुँचा दूँगा। बस जीत गए। और बच्चों ने तो उठते ही डिगी के पीछे ही सांगुडे कि गेंद जीत ली थी। इस पावन दिन सूर्य के मकर राशि के प्रवेश से ही देवताओं का दिन उत्तरायण शुरू हो जाता है। और जहाँ ये योगमाया का मनुष्यों का बाजार सजने वाला है। वो पौड़ी जनपद के आदि माँ भुवनेश्वरी माता का एक पौराणिक मंदिर स्थल है। जहाँ की खेती के कोतवाल भैरवगढ़ी के महाकाल के भैरव कहलाते है । कहते है। वे ही पहले के किसानों के खेती के नियम और समय का निर्धारण करते थे। एक बार एक किसान ने दोपहरी को भी बैल अपनी जोत से नही खोले, तो पहले भैरव बाबा ने नाम लेकर आवाज लगाई तो किसान ने अनसुना कर दिया , तब बाबा ने एक गेंद जैसे पत्थर को फेंका। जो हल के आगे फल में अटक गया, फिर बैल पूरे जोर लगा कर टस से मस नही हुये। किसान ने बहुत जोर लगाया पर उसे हिला न सका, उंसके बाद ग्रामीणों लोगो ने भी सबने जोर आजमाया पर वे उसे निकाल न सके थे। ये पावन भूमि सतपुली देवप्रयाग रोड पर, सतपुली से लगभग सात आठ किलोमीटर की दूरी पर बांघाट से आगे देषण बिलखेत गाव की संधि स्थल पर है। अब यहॉं माँ भवनेश्वरी का पावन धाम अपने बृहद रूप में स्थित है। यहाँ नव ग्रह मंदिर ,पुराने पीपल के तले आकर्षण का केंद्र है। अंदर शिला लेख के जरिये सारी जुड़ी कहानियां उदृत करवाई गई है। कभी हार जीत के लिये जी जान लगा देने वाले गढ़वाली भड़ ( बीरों ) का ये शक्ति प्रदर्शन का मेला था। उस समय जवानों के रग पटो में बीरता बहती थी। अब सब मोबाइल की भेंट चढ़ गया। 200 मीटर दौड़ने के बाद बच्चे हांफने लगते है। आज भी स्मरण है। गाँव से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर नदी में जब किसी धमाके की आवाज होती तो , घर से दौड़कर मच्छी मारने वालो से पहले गाँव के बच्चे नदी की तलहटी से मच्छी निकाल लाते थे। उंसके शारीरिक संरचना और बल का इसी से अनुमान लगाया जा सकता, फिर क्या कहाँ कैसे हवा, आकाश, जल के पावन देवता इन धरती पुत्रों का अनहित कर सकता था। आजकल मोबाइल गेम खेलते जरा बाहर आंगन में निकल गया तो कहते हवा लग गई। किधर से किधर तक कि दौड़ में हमारे नोनिहाल अब दौड़ रहे है। चलने के लिये बाइक, खाने के लिये पिज्जा, क्वे के से घोसले जैसे बाल बनाये, आजकल का युवा फेसबुक पर कई नई आई डी बनाकर किस मुग़लफते में जीवन गुजार रहा है। राम कृष्ण के पद चिन्ह छोड़, गाय बैलो से दूर कुत्ते की जंजीर पकड़ कर, टोनी मोनी बन गया। ऐसा भविष्य तो हमने नही देखा था। कुछ दिन बाद ये सांगुडे की गिन्दी छीनने की बात तो दूर उस को उठाने के काबिल न रह पाएंगे। आज की भाषा मे कहे ये भविष्य अब डिलीट होने की कगार पर है। चेत मुसाफिर भोर भई , जग जागत है। तू सोवत है। जो जागत है। वो पावत है। जो सोवत है। वो। खो,,,व,,,त है।,,,. ,,,,,, इति गौतम बिष्ट। ©Gautam Bisht उत्तराखंड की स्थानीय कहानी
उत्तराखंड की स्थानीय कहानी #समाज
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शहरों की दिशा सुधारने का समय शीर्षक से प्रकाशित तरुण गुप्ता के आलेख समाधान इंदौर के सबसे विकराल समस्या में से एक को रेखांकित करता है लेखक महोदय का यह कहना उचित है कि अपने मशहूर शहर में शिक्षा स्वस्थ एवं रोजगार के प्राप्त अफसरों का अभाव ही लोगों को बड़े शहरों में पलायन के लिए विवश करता है प्लेन का यह आता है जो सिलसिला पहले से ही दबदबे से जूझ रहे भीम काय शहरों के बुनियादी ढांचे पर दबाव को और बढ़ा देता है फिर चाहे आर्थिक राजनीतिक मुंबई में मानसून के दौरान विचलित करने वाले तस्वीर हो या भारतीय साइबर सिटी बेंगलुरु में भेजा यातायात व्यवस्था या फिर राष्ट्रीय राजनीति क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या से भी दर्शाती है हमारे शहर एक स्तर के बाद पड़ने वाले दबाव का बोझ उठाने में सक्षम नहीं है ऐसे में यह इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि शासन व्यवस्था के तीसरी की आधारभूत स्थानीय निकाय की क्षमता को बढ़ाया क्योंकि मूलभूत सुविधाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने में यह संस्थाएं सार्वजनिक योगदान दे सकती हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र और राज्य के तमाम योजनाओं को जमीनी पर उन्हें नहीं उतारना होता है ऐसे में कोई योजना कितनी भी बढ़िया क्यों ना हो यदि उसे सही ढंग से अमल नहीं हुआ तो वह सिद्ध होंगी इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर कोई ऐसी पहल करनी चाहिए जो स्थानीय नेताओं को अधिक सक्षम एवं जवाबदेही बना सकें ©Ek villain #सक्षम बनी स्थानीय विकास #Hope
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हमारे देश से होने वाला व्यापक निर्यात में रोजगार सर्जन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम में भारत सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत देश में विभिन्न उत्पादों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है परंतु यह निर्माता और एमएसएमई सक्षम लघु और मध्यम उद्योगों के साथ आवश्यक अपने फायदे के लिए कैसे लाभ उठा सकते हैं भारत में कारोबारी अपने माल को निर्यात करने के तरीके तलाश रहा होता है वह संबोधित बाजारों के बारे में सूचना के लिए पर निर्भर है बाजार तलाशने का काम चल जाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा करना होता है और यात्रा करने में असमर्थ रहते हैं और इसी प्रकार की आवश्यकता आदि शामिल है पहुंचने में हो सकती है लेकिन आया तो कर लेते हैं और उनकी जानकारी एक नन्ही परी क्या हो सकती है जिसमें सफल की संभावना कम होती है और इससे स्थानीय निर्माताओं के लिए बांदा ए आती है ऐसे में एक रमेश निर्माता एम एस एस आई को दुनिया भर में मार्ग पैटर्न निवेदन रुझान और मूल्य निर्धारण की प्राथमिकता को समझने के लिए सूचना और बाजारों की जानकारी तक पहुंच प्रदान करते हैं साथ ही उत्पादकों की गुणवत्ता में सुधार करना और नए उत्पादों को सफल होने की संभावना मदद करते हैं यह दुनिया भर के लोगों को सीधे बनाने में सक्षम बनाता है यह बाजार में व्यापार करने के लिए और व्यापक प्रदान करता है इससे बिचौलियों पर निर्भरता कम हो जाती है ©Ek villain #वैश्विक ब्रांड बने स्थानीय व्यवसाय #selfhate
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रोका नहीं जा सकता श्रमिकों के पलायन शीर्षक से लेख आलेख में भरत झुनझुनवाला ने यह दर्द ही लिखा है कि पलायन आर्थिक मार्च से जुड़ी एक वास्तविकता है उनका यह कहना भी उचित है कि जिन क्षेत्रों में प्लेन होता है जिन क्षेत्रों में पलायन होता है उन दोनों को ही इससे सबसे ज्यादा लाभ होता है यह बात घरेलू से लेकर वैश्विक स्तर पर पूरी तरह से खरी उतरी है हालांकि इस प्लान के कुछ नकारात्मक पहलू भी है अंतरराष्ट्रीय प्लेन से जहां देश के बेहतरीन प्रतिभाओं का प्लेन हो जाता है और देश के अन्य योजनाओं से वंचित रहता है वहीं घरेलू पलायन से उन शहरों के ढांचे पर दबाव पड़ता है जहां भारी संख्या में पलायन होता है इतना ही नहीं वहां कुछ वस्तुओं और सेवाओं के दाम भी अनावश्यक रूप से बढ़ते हैं दूसरी और अनेक मूल्य प्रदेश में बाजार की मांग की प्रभावित होती है यानी कुल राज्यों का दौरा नुकसान होता है ऐसे में पलायन का स्थाई समाधान खोजना नहीं है बल्कि अच्छी बात है कि सरकार द्वारा इस देश में प्रयास किया जा रहा है देश में मुंबई बेंगलुरु हैदराबाद हुआ करते थे किंतु जाते हैं दिल्ली सरकार के पीछे छोड़ दिया है इस रुझान को आधार मानें तो अब भारत के युवाओं को दक्षिण या पश्चिम भारत का रुख नहीं करना होगा इस रुझान को अभी माइक्रोम लेवल पर ले जाना होगा साथ ही रोजगार के ऐसे अवसर सृजित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा जीने work-from-home के माध्यम से आजमाया जा सके ©Ek villain #स्थानीय स्तर पर बढ़ते रोजगार #doubleface
#स्थानीय स्तर पर बढ़ते रोजगार #doubleface #Society
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हमने दक्षिण पश्चिम मानसून के दौर चरम पर था वाली घटनाओं को तो महसूस किया है दक्षिण भारत के किस राज्य में बगैर मौसम के बरसात की साबित कर दिया जलवायु परिवर्तन का सरकार तक होने लगा है इतना ही नहीं जनवरी में हमने रिकॉर्ड बार इसको भी देखा है जलवायु परिवर्तन की वजह से का कारण बन नहीं रही बल्कि इसका दुष्प्रभाव स्थाई स्तर पर भी देखने को लगता है अगर भारत की बात करें तो पिछले कुछ वर्ष के दौरान चरम मौसम घटनाएं जलवायु परिवर्तन की वजह से ही सामने आ रही है दिल्ली में विस्तार मानसून के दौरान सर्वाधिक बारिश का भीषण गर्मी इन सभी का कारण जलवायु परिवर्तन ही रहा है दरअसल में ग्लोबल वार्निंग के कारण हवाओं का तापमान बढ़ जाता है और उसके भाव की दिशा बदल जाती है जिससे उसके असर मौसम की चरम घटनाओं के रूप में सामने आता है तो उत्तरी ध्रुव में जो बेहद ठंडे होते हैं वह भी बढ़ते तापमान का असर दिखाई दे रहे हैं वह सभी गरम हो रहे हैं जिसकी वजह से तूफान और मौसमी घटनाओं में ख्वाजा हो रहा है मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश में जी का और डेंगू बढ़ने की वजह से तापमान 1 डिग्री बढ़ोतरी हुई है मच्छरों के प्रसार के अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण मानवीय गतिविधियों के द्वारा इन सभी कारणों से अधिक गर्म हो चुकी है किए गए हैं ©Ek villain #स्थानीय स्तर तक बढ़ता प्रभाव #VantinesDay
#स्थानीय स्तर तक बढ़ता प्रभाव #VantinesDay #Society
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अंतिम परीक्षा की तारीख नजदीक है प्रदेश में 18 विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होना है इस फरवरी वार शास्त्र चरणों में मतदान संपन्न हुआ कोविड-19 टो काल के तहत आप चल रही चुनाव प्रक्रिया में प्रत्याशी राजनीतिक दलों को सीधा मतदाताओं के बीच पहुंचकर अपनी बात रखने का मौका मिला है वर्चुअल रैली और प्रेस कॉन्फ्रेंस के सहारे अब तक जो हर मतदाता के कानों तक पहुंचाया बेजुबा भी ज्यादा है चुनाव से जनता के असल मुद्दे या फिर कहें कि स्थानीय मुद्दे गायब है इसका एक कारण तो यह है कि प्रयास ही सीधे मतदाता तक पहुंच नहीं पा रहे तो इससे किसी स्थानीय दुखड़े रोए दूसरे स्थानीय मुद्दों की अनदेखी की करुणा की दाल मिल जाने से भी यह फलक तक नहीं पहुंच पा रहे हैं 10 फरवरी 11058 विधानसभा सीटों के मतदाता परिचय दें यही है कि अभी पहले चरण का मतदाता हुआ भी नहीं है और दूसरे चरण का मतदाता व्हेल क्षेत्रों में भी बड़े नेताओं के फिर बढ़ गए हैं पहले चरण के चुनाव वाले क्षेत्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने से लेकर अभी पार्टियों के बड़े नेताओं ने पूरी तरह मत डाला है यह कर्म जारी है लेकिन मतदाताओं के सामने सोचने वाली बात यह है कि आखिर किस आधार पर तय करेंगे कि पार्टी के प्रत्याशी को वोट देने है चुनाव से स्थानीय मुद्दे गायब हो तो वह वाली जानी है पहला चरण में चुनाव वाले जिला शामिल मुजफ्फरनगर मेरठ बागपत गाजियाबाद हापुड़ गौतम नगर बुलंदशहर अलीगढ़ मथुरा आगरा शामिल है हर जिले की अपनी कोई ना कोई स्थानीय समस्या है जिसके निदान का प्राथमिक दायित्व क्षेत्रीय विधायक का ही होता है ©Ek villain #विधानसभा चुनाव से स्थानीय मुद्दे गायक #proposeday
#विधानसभा चुनाव से स्थानीय मुद्दे गायक #proposeday #Society
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दरअसल पिछले कुछ महीने से स्थानीय नीति नियोजन नीति में भाषाओं को हटाना जोड़ने को लेकर गठबंधन सरकार के निर्णय में सहयोगी पार्टी कांग्रेस विधायक खुद को काफी असहज महसूस कर रहे हैं मुख्यमंत्री उन्हें कोई तवज्जो नहीं दे रहे कांग्रेसी अपनी हिस्पीड़ा से एक राष्ट्रीय नेताओं को कई बार अवगत करा चुकी है यह तक सरकार के शामिल कांग्रेस कोर्ट के स्वास्थ्य मंत्री बिना गुप्ता में खुलेआम ऐलान कर रखा है कि अगर मृत भाषा पर कोई आंच आएगी तो वह अपनी कुर्सी कुर्बान करने से भी पीछे नहीं हटे गा पांच राज्यों में चुनाव बाद कांग्रेसी विधायकों में बेचैनी बढ़ी उन्हें लग रहा है कि अगर जो मुंह 1920 की ख्याति के आधार पर आगे बढ़ता है तो शहरी वोट का बड़ा नुकसान होगा जब जब इस मुद्दे को किसी ने छुआ है वैसा है यह राज्य में प्रथम मुख्यमंत्री ने इस आधार पर स्थानीय को पहचान करने की नीति लागू की थी तब राज्य में बवाल हुआ और भारतीय जनता पार्टी को रघुवीर दास सरकार ने 1985 का कटऑफ डाटा मानकर स्थानीय नियोजन नीति बनाई इस समय उसका काफी विरोध हुआ और आदिवासियों मूलवासी यह फैल गया कि राज्य नौकरी पर भारी का बीज हो जाएगा हेमंत सोरेन के सरकार के पिछले कुछ महीने में अनुसार बनाई गई लोगों को नौकरी में आरक्षण की प्रदान किए गए हैं इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में राज्य सरकार को सुझाव दिया और स्थानीय नीति को परिभाषित किया जहां नहीं तो राज्य निकली जा रही थी सभी भारतीय कानून पिछड़े में फस जाएगी ©Ek villain #स्थानीय नीति आगे कुआं पीछे खाई #Hope
Baba Dial
विधानसभा चुनाव का मतलब स्थानीय मुद्दा ना की हिंदू -मुस्लिम चाइना- पाकिस्तान
विधानसभा चुनाव का मतलब स्थानीय मुद्दा ना की हिंदू -मुस्लिम चाइना- पाकिस्तान #nojotophoto #विचार
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