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Stories related to उबड़ खाबड़

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Rishi Tiwari Samajsevi

राह उबड़-खाबड़ #Travel #विचार

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अगर आगे बढ़ना चाहते हैं तो
उबड़-खाबड़ राहों में भी
चलना होगा ।

©Rishi Tiwari Samajsevi राह उबड़-खाबड़

#Travel

सुसि ग़ाफ़िल

प्रेम के रास्ते सुगम नहीं होते उबड़ खाबड़ होते हैं खुरदुरे होते हैं

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प्रेम के रास्ते 
सुगम नहीं होते  ..... 

उबड़ खाबड़ होते हैं , 
खुरदुरे होते हैं | प्रेम के रास्ते सुगम नहीं होते उबड़ खाबड़ होते हैं खुरदुरे होते हैं

SURAJ आफताबी

याद करने हेतु शुक्रिया आप सभी का 🙏🙏 खलिश- चुभन पिछौरी- ओढ़ने की चादर महार्घ- महंगा बीहड़ी - उबड़-खाबड़ #yqdidi #yqhindi #Zindagi #lifequotes #yqlife #surajaaftabi

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जब आकांक्षी मन की आकांक्षाओं को टटोला
जब पैबंद उधेड़ कुछ वेदनाओं का मुख खोला
जब हृदय की ख़लिश से मलहम की पिछौरी उघड़ने लगी
जब धड़कनों के कम्पन्नों से सुरीली-दर्दीली आह जुड़ने लगी 
तब मन के आँसुओं ने जाना इस खार का बहना कितना ज़रूरी है
स्वाद चख खट्टे-खट्टे दर्दों का आंखों ने जाना आंसुओं का रहना कितना ज़रूरी है !

वो बंद पलकों में होश भरा मयखाना
वो  गजलों - नज्मों  से  भरी  इबादत 
वो इक सूरत मुकम्मिल इबादतखाना
जब विचार बिन कलम गूढ़ पैग़ाम लिखने लगे थे
जब महार्घ आफताबी बड़े सस्ते में बिकने लगे थे
तब जाना स्वयं का स्वयं से पूर्ण संवाद उस अपूर्ण ख्वाब से कितना ज़रूरी था
बीहड़ी  आँखों  ने  खारे  मोती  चख   जाना  ये तृप्त  स्वाद कितना  जरूरी था! याद करने हेतु शुक्रिया आप सभी का 🙏🙏

खलिश- चुभन
पिछौरी- ओढ़ने की चादर
महार्घ- महंगा
बीहड़ी - उबड़-खाबड़
#yqdidi 
#yqhindi

Anjali Singhal

"ज़िन्दगी एक पहेली है, सुख-दुःख की सहेली है, उबड़-खाबड़ हैं रास्ते इसके, चलते-चलते गिरते-संभलते, ऊँचाईयों तक वो ही पहुँचे, हौंसले जिसके हों #Quotes #AnjaliSinghal

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मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

बड़ा कठिन होता है कविताओं को उनके अंत तक पहुंचाना कितना आसान होता है कविताओं को शुरू करना उतना ही मुश्किल होता है कविताओं का अंत करना चलते #poem #कविताएं

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बड़ा कठिन होता है कविताओं को
उनके अंत तक पहुंचाना
कितना आसान होता है 
कविताओं को शुरू करना
उतना ही मुश्किल होता है 
कविताओं का अंत करना
चलते-चलते बीच में लड़खड़ा जाती है
सही को भूलती हुईं बीच में झूलती हुईं
अपने ही ताने बाने से परेशान
जो लिखा-जो कहा ज़रूरी नहीं था
जो ज़रूरी था न लिखा-न कहा.
अपने शब्दों का लेखा जोखा
भावनाओं का जमा घटाव
भावों का उबड़ खाबड़ ना हो तो
कविताएं सपाट सी लगती है
कविताएं होती ही है बड़ी ढीठ
लिखे गए भाव से न पढ़ी गई हो
तो कर ही डालती है अर्थ का अनर्थ,
अक्सर जिया है मैंने 
अपनी ही अधूरी कवितावों को
जो मंजिल तक पहुंचते-पहुंचते 
दम तोड़ देती है
आत्मा भटकती है इनकी 
अपना अंत पाने के लिए
मैं जानता हूँ कोई नहीं पढे़गा 
मेरी अधूरी कविताओं को
मेरी तरह ही शापित
जन्म लेते ही मार दी जाएगी
मेरे साथ मेरी अधूरी कविताएं
कभी-कभी लगता है मेरी कविताएं
मेरी टीस मेरी बेचैनी मेरी बौखलाहट
का  विद्रोह मात्र है  ।।।

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) बड़ा कठिन होता है कविताओं को
उनके अंत तक पहुंचाना
कितना आसान होता है 
कविताओं को शुरू करना
उतना ही मुश्किल होता है 
कविताओं का अंत करना
चलते

Pnkj Dixit

वह खूब हँसती है । वह मुस्कान नहीं है । दिन के तीसरे पहर के बाद निकल पड़ती है ; अपनी ही धुन में । वह सूखे पेड़ों को निहारती है । कभी रंग-ब

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वह खूब हँसती है ।
वह मुस्कान नहीं है ।
दिन के तीसरे पहर के बाद 
निकल पड़ती है ; 
अपनी ही धुन में ।
वह सूखे पेड़ों को निहारती है । 
कभी रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों में 
सुगंध को चुराकर खुश होती है ।
वह हवा के पंखों पर बैठ कर ;
समतल मैदानों से होते हुए
उबड़-खाबड़ पथरीली पगडंडियों
और गहरी घाटियों से होती हुई
नदी के तन पर अठखेलियाँ करती हुई
सागर की लहरों पर मचलती खिलखिलाती
सूरज के बढ़ते ताप और 
घटती उष्णता के अहसास को लिए 
समंदर की ठंडी-ठंडी रेत पर 
दिनभर की थकान मिटाने को बैठ जाती है ।
वह आवाज लगाती है ; 
सुदूर सागर की गोद में 
नन्हें बच्चे की तरह छुपते हुए सूरज को ।
मायूस होकर मुरझा जाती है । 
वह कोई फूल नहीं है ।
उसका मासूम उदास आंखें 
रजनी को पुकारती है।
डरी सहमी सी वह रजनी रुपी माँ के आँचल में 
दुबक जाती है ।
उसके हिस्से में खुशियों के पल नहीं है ।
फिर भी वह  जिंदगी को 
हंसकर बिताना चाहती है ।
हाँ ! वह "शाम" है ।
१२/१०/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क'i वह खूब हँसती है ।
वह मुस्कान नहीं है ।
दिन के तीसरे पहर के बाद 
निकल पड़ती है ; 
अपनी ही धुन में ।
वह सूखे पेड़ों को निहारती है । 
कभी रंग-ब

Pnkj Dixit

वह खूब हँसती है । वह मुस्कान नहीं है । दिन के तीसरे पहर के बाद निकल पड़ती है ; अपनी ही धुन में । वह सूखे पेड़ों को निहारती है । कभी रंग-ब

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वह खूब हँसती है ।
वह मुस्कान नहीं है ।
दिन के तीसरे पहर के बाद 
निकल पड़ती है ; 
अपनी ही धुन में ।
वह सूखे पेड़ों को निहारती है । 
कभी रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियों में 
सुगंध को चुराकर खुश होती है ।
वह हवा के पंखों पर बैठ कर ;
समतल मैदानों से होते हुए
उबड़-खाबड़ पथरीली पगडंडियों
और गहरी घाटियों से होती हुई
नदी के तन पर अठखेलियाँ करती हुई
सागर की लहरों पर मचलती खिलखिलाती
सूरज के बढ़ते ताप और 
घटती उष्णता के अहसास को लिए 
समंदर की ठंडी-ठंडी रेत पर 
दिनभर की थकान मिटाने को बैठ जाती है ।
वह आवाज लगाती है ; 
सुदूर सागर की गोद में 
नन्हें बच्चे की तरह छुपते हुए सूरज को ।
मायूस होकर मुरझा जाती है । 
वह कोई फूल नहीं है ।
उसका मासूम उदास आंखें 
रजनी को पुकारती है।
डरी सहमी सी वह रजनी रुपी माँ के आँचल में 
दुबक जाती है ।
उसके हिस्से में खुशियों के पल नहीं है ।
फिर भी वह  जिंदगी को 
हंसकर बिताना चाहती है ।
हाँ ! वह "शाम" है ।
१२/१०/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' वह खूब हँसती है ।
वह मुस्कान नहीं है ।
दिन के तीसरे पहर के बाद 
निकल पड़ती है ; 
अपनी ही धुन में ।
वह सूखे पेड़ों को निहारती है । 
कभी रंग-ब

Meera

बहुत भारी होते हैं शब्दों के बोझ शब्दों उंगलियों बराबर के शब्दों में इतनी संवेदना होती है कि यां तो वो किसी का जीवन जाड़ कर सकते हैं यां जीव #Thoughts #writeaway #nojotowriters #standAlone

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उबड़ खाबड़ परिस्थितियों में कभी कभी मनुष्य जीवित मृत होना चाहता है

©Meera Bawri बहुत भारी होते हैं शब्दों के बोझ शब्दों उंगलियों बराबर के शब्दों में इतनी संवेदना होती है कि यां तो वो किसी का जीवन जाड़ कर सकते हैं यां जीव

Mahfuz nisar

मैं बेवकूफ़ हूँ। उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, उसमें अलग हुए कंकड़ो के खालीपन दिखे, जहाँ से अक्सर गुज़रते हुए क़दम लड़खड़ा जाते हैं, ना जाने कि #poem

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मैं बेवकूफ़ हूँ। 
उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, 
उसमें अलग हुए कंकड़ो के खालीपन दिखे, 
जहाँ से अक्सर गुज़रते हुए क़दम लड़खड़ा जाते हैं,
ना जाने कितनी दफा मैं और हाँ आपभी गिरते- गिरते बचे हैं। 
सब कुछ ही तो नज़र है,पर नज़रंदाज़ करने की आदत हो गई है, 
कहते हैं, किसको कहें,कहाँ रोएँ-कहाँ गायें,किधर ख़ुद को ले जायें,
लगता है जैसे कोई अंधेरी सीढी चढ़ रहे हों,
जहाँ सामने कौन है,पता नहीं, 
अचानक से आकर कोई भी ठोकर मारता है, 
हर तकलीफ़ से झूझना पड़ता है,
कहना पड़ता है, ईटस ओके,
कैसे कब हो जाओगे तुम विद्रोही,
समझे हो क्या,अब तक, 
हर दिन की अपनी परेशानी है, 
क्या है इसके पीछे वजह कहाँ किसी को जानने की तलब आई है।
बचपन,भूख से बिलख रही, 
जवानी,बेरोज़गारी से झुलस रही, 
बुढ़ापा,बेसहारा मर रही है,
लाश मिलती है,तो वारिस नहीं,
कहाँ मुकदमा चलेगा,बताओ? 
किसको खोजोगे,किससे माँग करोगे? 
कौन ठीक करेगा? 
वो जिसे तुमने ठिका दिया है सब कुछ का, 
चलो कम से कम ख़ुद पर खूब हँस लो अब, 
तुम आज भी अंधे हो,
युग चांद पर चमकना चाहता है,
लेकिन तुम अभी भी धरती में अपनी लकीर खींचने में लगे हो। 
खैर,तुमने देखे ही कहाँ हैं, 
अलग हुए कंकड़ो के खालीपन।
वो तो मैंने देखा तो मेरा मसला था।
कैसे हो?  
सब अच्छा। 
                          ✍ mahfuz मैं बेवकूफ़ हूँ। 
उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, 
उसमें अलग हुए कंकड़ो के खालीपन दिखे, 
जहाँ से अक्सर गुज़रते हुए क़दम लड़खड़ा जाते हैं,
ना जाने कि

Mayank Sharma

पूरी रचना यहाँ पढ़ें 👇 एक रास्ता है टेढ़ा मेढ़ा सा पत्थरों से भरा कांटों से सजा उबड़ खाबड़ सी बंजर सी जमीन लिये #yourquote #yqbaba #Collab #YourQuoteAndMine #मलंग #एकरास्ता #aestheticthoughts #atएकरास्ताहै

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एक रास्ता है
टेढ़ा मेढ़ा सा
पत्थरों से भरा
कांटों से सजा 
उबड़ खाबड़ सी 
बंजर सी जमीन लिये
जिस पर कोई इंसान 
चलना नहीं चाहता! 

पर मुझे चलना है
नुकीले पत्थरों पर 
बिना जूतों के
बगैर चप्पल के 
नंगे पैर
पत्थरों की चुभन को 
महसूस करते हुये 
हाँ, पता है
मुश्किल है
पर चलना है मुझे! पूरी रचना यहाँ पढ़ें 👇

एक रास्ता है
टेढ़ा मेढ़ा सा
पत्थरों से भरा
कांटों से सजा 
उबड़ खाबड़ सी 
बंजर सी जमीन लिये
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