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Stories related to रेलिंग

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SATISH THINK

डिजाइनर रेलिंग #जानकारी

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SATISH THINK

स्टील की सुंदर रेलिंग #जानकारी

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Rooh

ढ़लते सूरज को देख कर यूँ लग रहा है जैसे मेरी जिन्दगी में रंगों का अकाल पड़ गया है। बालकनी की रेलिंग को थामे दो हाथ, दो छोड़ दिये गये हाथ जिन #yqbaba #yqdidi #yqhindi #dairy #yqquotes #aaina_rooh

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कच्चा रंग

कैप्शन पढ़े — % & ढ़लते सूरज को देख कर यूँ लग रहा है जैसे मेरी जिन्दगी में रंगों का अकाल पड़ गया है। बालकनी की रेलिंग को थामे दो हाथ, दो छोड़ दिये गये हाथ जिन

Rajan Girdhar

**मजे में हूँ ( बुढ़ापा )** घुटने बोलते हैं लड़खड़ाता हूँ छत पर रेलिंग पकड़कर जाता हूँ दाँत कुछ ढीले हो चले रोटी डुबा कर खाता हूँ #nojotophoto

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 **मजे में हूँ ( बुढ़ापा )**

घुटने बोलते हैं
लड़खड़ाता हूँ
छत पर
रेलिंग पकड़कर जाता हूँ
दाँत कुछ ढीले हो चले
रोटी डुबा कर खाता हूँ

Drg

प्रतिदिन सवेरे ६.३०-७.०० के आस पास, अलार्म से झूझकर, मैं अक्सर पलट कर बालकनी की ओर मुँह फेर कर, लेटी रहती हूँ। सर्दियों में तो कंबल के बाह #yqbaba #yqdidi #यादें #drg_diaries

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  नियमानुसार आज भी वो आया था; और जोड़ गया मेरा मन कई सवालों के साथ। कल्पना के सागर में गोते लगाते लगाते, सवालों के उत्तर ढूँढते ढूँढते, मैं अन्य सवालों के जंजाल में झूझ गई। अंततः यादों ने अपना पिटारा खोल दिया!

  हमारे जीवन में, कई यादें, बस उस कबूतर जैसी हैं। अनूठी नहीं, पर नियम सी हैं। प्रतिदिन दस्तक देती हैं।मन को विचलित कर, उड़ जाती हैं। कुछ जानती हैं, समझती हैं, कुछ इशारा करती हैं.. कोई एहसास नहीं जगाती, बस छोड़ जाती हैं कुछ अधूरी उलझाती पहेलियाँ..

(अनुशीर्षक में पढ़े)   प्रतिदिन सवेरे ६.३०-७.०० के आस पास, अलार्म से झूझकर, मैं अक्सर पलट कर बालकनी की ओर मुँह फेर कर, लेटी रहती हूँ। सर्दियों में तो कंबल के बाह

Drg

प्रतिदिन सवेरे ६.३०-७.०० के आस पास, अलार्म से झूझकर, मैं अक्सर पलट कर बालकनी की ओर मुँह फेर कर, लेटी रहती हूँ। सर्दियों में तो कंबल के बाह #yqbaba #yqdidi #यादें #drg_diaries

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  नियमानुसार आज भी वो आया था; और जोड़ गया मेरा मन कई सवालों के साथ। कल्पना के सागर में गोते लगाते लगाते, सवालों के उत्तर ढूँढते ढूँढते, मैं अन्य सवालों के जंजाल में झूझ गई। अंततः यादों ने अपना पिटारा खोल दिया!

  हमारे जीवन में, कई यादें, बस उस कबूतर जैसी हैं। अनूठी नहीं, पर नियम सी हैं। प्रतिदिन दस्तक देती हैं।मन को विचलित कर, उड़ जाती हैं। कुछ जानती हैं, समझती हैं, कुछ इशारा करती हैं.. कोई एहसास नहीं जगाती, बस छोड़ जाती हैं कुछ अधूरी उलझाती पहेलियाँ..

(अनुशीर्षक में पढ़े)   प्रतिदिन सवेरे ६.३०-७.०० के आस पास, अलार्म से झूझकर, मैं अक्सर पलट कर बालकनी की ओर मुँह फेर कर, लेटी रहती हूँ। सर्दियों में तो कंबल के बाह

Hrishabh Trivedi

तुझे कितनी बार कहा है जब उसे तुझसे बात नहीं करनी होती तो क्यों बात करता है उससे। अमर ने जरा तेज आवाज में श्रेय कहा। तेरा रोज का हो गया है, य #SocialMedia #yourquote #yqtales #hr_story

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Self-respect vs Care
(अनुशीर्षक में पढ़े) तुझे कितनी बार कहा है जब उसे तुझसे बात नहीं करनी होती तो क्यों बात करता है उससे। अमर ने जरा तेज आवाज में श्रेय कहा। तेरा रोज का हो गया है, य
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