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Badal
जरा धीरे-धीरे बर्बाद कर मुझे ए जिन्दगी...बड़ी मशक़्क़त से पाला है, मुझे मेरी माँ ने...!! ☢ जरा धीरे-धीरे बर्बाद कर...!!
जरा धीरे-धीरे बर्बाद कर...!!
read moreGudvin Barche
Travel सफर में तेज चलने से नजारे छूट जाते हैं जिंदगी में तेज चलने से अपने रूठ जाते हैं धीरे चलने का भी हुनर लोगों मैं होना चाहिए सूरज भी आसमा को धीरे-धीरे छूता है शाम ढलते ही धीरे-धीरे जमीन को चूमता है आब- ए -चश्म (आशु) भी अब्सार ( आंख) से धीरे धीरे ही टपकते हैं तेज चलने से अक्सर लोग जिंदगी में फिसल जाते हैं धीरे धीरे चलते हैं जो लोग वह मंजिल तक सलामत पहुंचते हैं Gudvin.barche@g धीरे धीरे चलो सलामत रहो
धीरे धीरे चलो सलामत रहो
read morePriti yadav
#DearZindagi ज़िंदगी! जरा धीरे चलो कि संभलकर,, चलने का हुनर याद करना होता है।। ज़िंदगी धीरे चलो।।
ज़िंदगी धीरे चलो।। #DearZindagi #poem
read moreSaurabh Roy Mahakal Bhakt
जब भी अपने चेहरे पर जुल्फ को बिखेरा, हसरतों की दुनिया में दूर तक अंधेरा है ,दिन तो गुजर जाता है; रात कैसे गुजरेगी, मुझे आज शाम से ही तो उनकी यादों ने गिरा है, यह शक्ल सूरत है ,कौन किसे पहचाने आदमी मुसाफिर है आदमी लूटेरा ,धीरे-धीरे लेकर चलो अब मेरे जनाजे को धीरे धीरे लेकर चलो अब मेरे जनाजे को दिलरुबा की गलियों में आखरी यह फेरा है!!!! धीरे-धीरे लेकर चलो मेरे जनाजे को...
धीरे-धीरे लेकर चलो मेरे जनाजे को...
read moreRj005Ravi
फ़िज़ा में ज़हर भरा है जरा संभल कर चलो, मुखालिफ आज हवा है जरा संभल कर चलो, कोई देखे न देखे बुराइयां अपनी, खुदा तो देख रहा है जरा संभल कर चलो। ©Ravi shrivas जरा संभल कर चलो....!
जरा संभल कर चलो....! #विचार
read more#M_S
फ़िज़ा में ज़हर भरा है जरा संभल कर चलो, मुखालिफ आज हवा है जरा संभल कर चलो, कोई देखे न देखे बुराइयां अपनी, खुदा तो देख रहा है जरा संभल कर चलो। ©MAHEBUB #जरा संभल कर चलो।
#जरा संभल कर चलो।
read moreSanjay Ni_ra_la
ज़रा संभलकर चलो वक्त की दरकार है जरा सम्भल कर चलो इंसानियत है लहूलुहान, जरा सम्भल कर चलो बिक गया ईमान, जिस पर था सबको अभिमान चौकीदार, चोरों का है सरदार, जरा सम्भल कर चलो एक ही थी अवाज, बुलंदी पर थी जिसकी धार घात में बैठा था खरीदार, जरा सम्भल कर चलो शराब बंदी का है माहौल, विलायती की है बोल जनता मरने को परेशान?, ज़रा सम्भल कर चलो ना चलो फुट पाथ पर, ना जाने कब मौत गले पड़ जाए सफेदपोशों में गुनाह करने की है ललकार, जरा सम्भल कर चलो अच्छे दिन की चाहत में, आज का दिन भी गंवा बैठे तुम नोट, वोट, इलेक्शन की है भरमार, ज़रा सम्भल कर चलो सिलीन्डर का ना रहा अरमान, फांसी चढ़े किसान विकट समस्या किए है परेशान, जरा सम्भल कर चलो निराला वक़्त फिर लौटेगा, अपने विवेक को ज़रा खोलो रक्षक आज बन बैठा है भक्षक, जरा सम्भल कर चलो ©Sanjay Ni_ra_la #जरा सम्भल कर चलो