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हमारी प्यार की कहनी
करवा चौथ व्रत का दीन सभी लड़की को ध्यान से खाना खिलाऐ , काहे की सर दर्द का बहाना बना कर करवा चौथ का व्रत रखती हैं, ©हमारी प्यार की कहनी करवा चौथ व्रत कथा #Moon
Shailendra Anand
रचना दिनांक २४,,९,,२०२३ वार रविवार समय शाम सात बजे ्््शीर्षक ्् ्््भावचित्र ्् ््सुगंध दशमी एवं तेजा दशमी पावन पर्व पर नागदाह है देवास का नागदा क्षैत्र में ्् ्््भावचित्र ्् यह सुगंध दशमी एवं तेजादशमी का पावन पर्व पर अगर ऐतिहासिक महत्व की झलक मिलती है जो शास्त्र सम्मत श्रीमद्भागवत पुराण कथा के दृष्टांत में व्दापर युग में राजा परीक्षित के श्रापित होने के पश्चात राजा जनमेजय ने नाग यज्ञ ऊंतक ऋषि आचार्यत्व में यज्ञ हुआ था। यही यज्ञ स्थली है जो मंत्रोपचार से आमन्त्रित कर नागो आवाहित किया गया था।।इस तपोस्थली पर आयुर्वेदाचार्य धनवन्तरी और अनेक श्रृषि मुनि महर्षियों वेदज्ञ महात्मा पधारे थे।।जिसका नाम महत्व इस देवास की शान है जो गौरवान्वित महसूस करते हुए यह संकलित आख्यान को पढ़कर आनंद लीजिए संकलन कर्ता कवि शैलेंद्र आनंद २४सितम्बर२०२३ ©Shailendra Anand #Wochaand सुगंध दशमी एवं तेजा दशमी के पावन पर्व पर नागदाह है देवास का नागदा क्षैत्र है ्््
#Wochaand सुगंध दशमी एवं तेजा दशमी के पावन पर्व पर नागदाह है देवास का नागदा क्षैत्र है ््् #पौराणिककथा
read more@nil J@in R@J
#जय मां शैलपुत्री🚩 मां शैलपुत्री - पहले नवरात्र की व्रत कथा एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।' शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था #NojotoQuote जय माता दी मां शैलपुत्री प्रथम व्रत की कथा
जय माता दी मां शैलपुत्री प्रथम व्रत की कथा
read moreCK JOHNY
किस बुराई पर जीत तुमने पाई है फख्त रावण के पुतले में ही आग लगाई है। जिसने नवरात्रि में इन्द्रियों के नौ द्वार शुद्ध कर लिए ओर दसवें अपने मन पर जीत पाई है। क्या काम वासना क्रोध लोभ मोह अहंकार मद मस्त क्रुरता स्वार्थ परनिंदा समस्त विकार घट भीतर दिये हैं जार और अतंर्मन में शील क्षमा संतोष प्रेम विनम्रता का कर लिया संचार। केवल ऐसे विरले पुरुष को ही प्यारे विजय दशमी की बधाई है। बाकियों ने इन्द्रिय विषय विकारों पे नहीं फख्त रावण के पुतले में ही आग लगाई है। सोचना अंतरमन में बैठकर किस बुराई पर जीत तुमने पाई है। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 25.10.2020 विजय दशमी
विजय दशमी
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