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Priyanka Bhagat
कोण म्हणतंय संपला आहेस तू उधाणलेल्या समुद्रातील भरकटलेल्या जहाजाला किनाऱ्यावर पोहचविणारा 'तारण कर्ता' आहेस तू यष्टीमागे विद्यूलतेसारखी सावज
कोण म्हणतंय संपला आहेस तू उधाणलेल्या समुद्रातील भरकटलेल्या जहाजाला किनाऱ्यावर पोहचविणारा 'तारण कर्ता' आहेस तू यष्टीमागे विद्यूलतेसारखी सावज
read moreKrishna ka kavya
आसमान से कुहासा की घनी घटा, कुछ , इस अंदाज में हटी । मानो जैसे , दुआ कबूल हुई हो । वर्षों की उलझन पल भर में मिटी , जीवन में आशा की नई किरण छिटी । ©Krishna ka kavya कुहासा छाती #Prayers
कुहासा छाती #Prayers
read moreNaveen Mahajan
'मज़बूत छाती' दिये में कैसी बाती है नदारद रौशनी इसकी पिये बस तेल जाती है दिये को गालियां देती दिये से ही वो खाती है दिया न हो के थाली हो किये बस छेद जाती है कोई इल्ज़ाम न धर दे तो बाती यों बताती है तालिबे दीन है वो तो फ़ख़त वो एक जमाती है दिया मन में ही घुटता है बड़ी मज़बूत छाती है। #NaveenMahajan मज़बूत छाती #NaveenMahajan
मज़बूत छाती #NaveenMahajan
read moreBabu Suwalka
#OpenPoetry 💓💓💓💓TUMHE DEKHA TOH KHAYAL AYA H....ISHQ KE DARBAR ME NAYA PAIGAM AYA H....💓💓💓💓 #OpenPoetry ishq छाती कुटा
#OpenPoetry ishq छाती कुटा
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी जलियाँ वाला हत्याकांड गोरो के अत्याचारो का स्मारक है खूनी खेल खेलना ही हुकूमतों की ताकत है जब जब बैशाखी आती है छाती भारतीयों की धधक जाती है राजगुरु अशफाक भगत सिंह की ललकार जलियाँ बाग हत्याकांड की बगावत थी गोरो को विदा किया लेकिन उसके मानस पुत्र आज भी गुलामी बोते है उनके ही कानूनो से जुल्मो की फसल बोते है चौगुनी लगानो से किसान गरीबी ढोते है इतने वर्षों की आजादी मगर हक नही मिल पाता है धरतीपुत्र सड़को पर संग्राम करे तब तब कुचला जाता है जाति धर्म भाषा मे देश बाँटा जाता है दंगो की विसात बिछाकर कौमो को डराया जाता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" छाती भारतीय धधक जाती है
छाती भारतीय धधक जाती है
read moreBhagwan singh Nirankari hodal
रिश्ते मिटा दे अपनी हस्ती को मिटा दे अपनी छाती को
मिटा दे अपनी छाती को
read moreHP
अरब देश अच्छे घोड़ों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ नबोर नामक व्यक्ति के पास बहुत बढ़िया घोड़ा था, ऐसा घोड़ा उस समय दूर दूर तक दिखाई न पड़ता था। नबोर के नगर में उसका एक दूसरा प्रतिद्वन्द्वी दहेर नामक अमीर रहता था। उसकी बड़ी इच्छा थी कि किसी प्रकार नबोर का घोड़ा मेरे हाथ लग जाये। दहेर ने उस घोड़े की काफी कीमत लगा दी और नबोर को कई लालच दिये तथा धमकाया भी पर नबोर किसी प्रकार अपना घोड़ा देने के लिए रजामन्द न हुआ। जब सारे उपाय निष्फल हो गये तो दहेर ने एक चाल चली। वह बीमार परदेशी का रूप बनाकर उस रास्ते के किनारे पड़ रहा जहाँ से अक्सर मुँह अन्धेरे नबोर निकला करता था। दहेर ने सोचा नबोर अत्यन्त दयालु है उसे इसी प्रकार छला जा सकता है। नित्य की भाँति नबोर मुँह अन्धेरे जब उस रास्ते से निकला तो दहेर ने बीमार का जैसा बड़ा दर्द मन्द स्वर बनाकर पुकारा- “भाई घुड़सवार, मेहरबानी करके मुझे शहर तक पहुँचा दो, मैं परदेशी हूँ, बीमार हूँ, कमजोरी के मारे मुझसे उठा भी नहीं जाता, तुम मेरी मदद न करोगे तो यही पड़ा पड़ा मर जाऊँगा।” नबोर का दयालु हृदय पिघल गया। वह घोड़े से उतरा और बीमार को उठाकर अपने घोड़े पर बिठा दिया और खुद पैदल चलने लगा। कुछ ही कदम चले थे कि उस छल वेशधारी दहेर ने घोड़े को एड लगाई और लगाम को झटका देकर आगे बढ़ा दिया। अब नबोर की आँखें खुलीं। उसने देखा कि दहेर ने मुझे धोखा दिया और इस प्रकार जाल बनाकर मेरा घोड़ा छीन लिया। दहेर घोड़े को बढ़ाने लगा। नबोर ने कहा- दहेर, तुम घोड़ा ले चुके, अब इसे छीन सकना मेरे लिए कठिन है। पर जरा ठहरो, मेरी एक बात सुनते जाओ। दहेर ने कुछ दूर पर घोड़ा खड़ा कर लिया और कहा - जो कहना है जल्दी कहो। नबोर ने कहा- “देखो, किसी से इस बात का जिक्र न करना कि तुमने किस छल से मेरा घोड़ा लिया। क्योंकि यदि कोई आदमी सचमुच बीमार या पीड़ित हुआ तो लोग उसे धोखेबाज समझकर उसकी सहायता न करेंगे। इससे बेचारे दर्दमन्दों का हक छिन जायेगा और उन्हें बहुत दुख उठाना पड़ा करेगा।” दहेर की अन्तरात्मा रो पड़ी। उसने कहा- गरीबों का हक छीनकर घोड़ा लेना मुझे मंजूर नहीं है। वह जीन पर से उतर पड़ा और घोड़े की लगाम नबोर के हाथ में देते हुये कहा- भाई आज से आपको गुरु मानता हूँ, आपने मेरी आँखें खोल दी, मैं समझ गया कि दूसरे की वस्तु लेना बुरा है, पर गरीबों के हक की छाती पर खड़ा होकर कुछ लेना और भी बुरा है मैं भविष्य में ऐसा न करूंगा। नबोर ने दहेर को छाती से लगा लिया और अपना घोड़ा उसे पुरस्कार में दे दिया। गरीबों के हक की छाती पर
गरीबों के हक की छाती पर
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी देखो फिर चुनाव आ गया है वायदों की फसलें उगायी जा रही है मसीहा बनकर,फौजे गली मोहल्लों में उतारी जा रही है वेशर्मी की हद तो देखो पुराने वायदे भूलकर, नये वादों से जनता फुसलाही जा रही है छाती पर चढ़ी महँगाई बेरोजगारी विज्ञापनो में विकास की दुहाई दी जा रही है लोकतंत्र में जनता कैसे भरमाई जा रही है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #binod छाती पर चढ़ी महँगाई बेरोजगारी
#binod छाती पर चढ़ी महँगाई बेरोजगारी
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