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Aurangzeb Khan

एक मैं ही नहीं जो तन्हा सफर करता हूं ऐ औरंगज़ेब 
मैंने उसे पपीहे को भी खुश देखा है जिसका कोई हमसफ़र ही नहीं

©Aurangzeb Khan #तन्हाई#मेरी

mehar

मेरी तन्हाई

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FAKIR SAAB(ek fakir)

#Couple तन्हाई

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तन्हाई है वीराना है
खामोशी है सन्नाटा है
ये बस्ती उजड़ चुकी है
अब यहां 
कौन आता जाता है

©FAKIR SAAB(ek fakir) #Couple तन्हाई

Brsolanki

White दरमियान तो हरदम रहे करीब रहे ना सके।
सैलाब था दिल में लब्ज़ कुछ कहे ना सके।
आज भी रूहमें मौजूदगी चांद सी रोशन है,
 हासिल रहे हर लम्हा,तुम हमे ढूंढ ना सके ।
अंदर ही अंदर जलाती रही तन्हाई की आग,
 आए गए बारिशोंके कई मौसम बुज ना सके।

©Brsolanki #तन्हाई

s गोल्डी

शाम भी सुहागन होना चाहती हैं दिवाकर के इश्क में खोना चाहती हैं दिन भर वो भी जलता रहता जुदाई में फिर मौका देख मांग भर देता चुपके से तन्हा

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शाम भी सुहागन होना चाहती हैं 
दिवाकर के इश्क में खोना चाहती हैं
दिन भर वो भी जलता रहता जुदाई में 
फिर मौका देख मांग भर देता
 चुपके से तन्हाई में 
डूबते डूबते दे जाता है 
ऐसा खामोश प्यार
जिसका शाम , सुबह से ही 
करने लगती है इंतजार

©s गोल्डी शाम भी सुहागन होना चाहती हैं 
दिवाकर के इश्क में खोना चाहती हैं 
दिन भर वो भी जलता रहता जुदाई में 
फिर मौका देख मांग भर देता 
चुपके से तन्हा

Poet Kuldeep Singh Ruhela

#Sad_Status कोशिश बहुत की तुझको भूल जाऊ में कोशिश बहुत की तुझको गम सुनाऊं में तन्हाई में जीता था में लेकिन मेरे दोस्त कैसे तुझको अपनी परे

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White कोशिश बहुत  की तुझको भूल जाऊ में 
कोशिश बहुत की तुझको गम सुनाऊं में 
तन्हाई में जीता था में लेकिन मेरे दोस्त
कैसे तुझको अपनी परेशानी बताऊ मैं

©Poet Kuldeep Singh Ruhela #Sad_Status कोशिश बहुत  की तुझको भूल जाऊ में 
कोशिश बहुत की तुझको गम सुनाऊं में 
तन्हाई में जीता था में लेकिन मेरे दोस्त
कैसे तुझको अपनी परे

Rudradeep

Anjali Singhal

"तन्हाई में जब यादों का जमघट लग जाता है, कई यादें कहाँ खो गईं पता नहीं चल पाता है! बिछड़ी राहों से जब कभी गुज़रा जाता है, उन खोई हुई यादों

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बदनाम

मैं तेरे नशे की तन्हाई

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Shashi Bhushan Mishra

#मिली अकेली तन्हाई#

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White महफ़िल में भी मिली अकेली तन्हाई, 
गम  के  पन्ने  पलट  रही थी  रुस्वाई, 

गिरा ताड़ से अटका किसी खजूरे पर, 
बेचारे   ने   कैसी  है   किस्मत   पाई, 

बैठ  गया  खालीपन  उसके  जाने से, 
कभी नहीं हो सकती जिसकी भरपाई, 

बिन बरसे ही सावन घर को लौट गया, 
मन के अंदर  ख़्वाहिश लेती  अंगड़ाई, 

दिन ढ़लने को आतुर  मेरे आंगन का, 
लगी   छुड़ाने  पीछा  अपनी  परछाई,

आम  आदमी की  थाली से  गायब है, 
कोर-कसर  पूरा   कर   देती  महंगाई,

पैसों से तक़दीर की टोपी मिल जाती,
दूर  सिसकती  बैठी  मिलती तरुणाई,

दिल की बात सुनाऊँ मैं किससे गुंजन,
आहत करती  मन  को  यादें  दुखदाई,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
            समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra #मिली अकेली तन्हाई#
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