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Vivek bihari Mishra
लफ़्ज़ तोड़े मरोड़े ग़ज़ल हो गई सर रदीफ़ों के फोड़े ग़ज़ल हो गई लीद करके अदीबों की महफि़ल में कल हिनहिनाए जो घोड़े ग़ज़ल हो गई ले के माइक
read moreहिंदीवाले
कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरियाणा के यारों ने कभी न हमको डाली घास हास्य-व्यंग्य के कवियों में लासानी समझे जाते हैं हरियाणवी पूत हैं- राजस्थानी समझे जाते हैं ~अल्हड़ बीकानेरी ©हिंदीवाले कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरि
कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरि #कविता
read moreहिंदीवाले
डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है मेरी मजबूरी पे पसीजिए दारोग़ा जी ज्यादा माल-मत्ता मेरी जेब में नहीं है अभी पाँच का पड़ा है नोट लीजिए दारोग़ा जी पौन बोतल तो मेरे पेट में उतर गई पौवा ही बचा है इसे पीजिए दारोग़ा जी ~अल्हड़ बीकानेरी ©हिंदीवाले डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है मेरी मजबूरी पे पसीजिए दा
डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है मेरी मजबूरी पे पसीजिए दा #कविता
read moreअजनबी
यहाँ लिखा जाता तो हम कुछ और लिखते अगर तुम ना आते तो हम और दिखते ©Lalchand Goyal बीकानेरी #alone
Balwant Mehta
स्वाद ऐसा जो बार बार खाने को सबका जी ललचाए राज है यह बीकानेरी नमकीन का अच्छे अच्छे भी नही जान पाए ©Balwant Mehta #बीकानेरी #नमकीन
Rumaisa
बारिश का मौसम_ टीप टीपाती बूंदे हवाओं का झोंका_ इक लंबी खुमारी सदियों का जीना, है तुमसे सीखा थोड़ी अल्हड _थोड़ा अलहदा ©Rumaisa #अल्हड़ #life
#अल्हड़ life
read moreRishi Kumar
उसने कहा था* , उसे समझता हूँ मैं.. उसने कहा है* , गलत समझता हूँ मैं.. #Rishi_kumar #अल्हड़
शिवानन्द
प्रेम में अल्हड़ बन लुटता रहा। रिश्तों की कतारों को देखता रहा। सब देकर भी इश्क में लुटता रहा। मैं मलंग सा प्रीत में बस झुमता रहा। बड़ी शिद्दत से नज़रों में ठगता रहा। ज़ख्म, अपने ही हाथों मैं सिलता रहा। ~~शिवानन्द #अल्हड़ #प्रेम