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Prakash
बदले की आग #JaiHind #JaiBharat #IndianSoldiers #Terror #AttackOnTerrorists #PrakashaPoetry #PrakashShayari #PrakashQuotes #PrakashHindiKavit
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read moreAarti Sirsat
इंसान जब पानी में डूबता है तो खुद को बचाने के लिए एक पेड़ का सहारा लेता। पेड़ की एक शाखा को पकड़कर रखता। जब तक कि वह शाखा टूटने पर न आ जाएं। और जब वह शाखा टूट जाती है तो वह इंसान पेड़ की दूसरी शाखा को पकड़ लेता.... इसी तरह जब सारी शाखाएं टूट जाती है तो वह इंसान पकड़कर रखता है उस पेड़ को। और फिर जब उसे एक कश्ती दिखाई देती है तो वह पुकार लगाता है उसे, और वह इंसान उस कश्ती में सवार हो जाता है। उस पेड़ को छोड़कर... वह सब भुलकर की उस पेड़ ने उस इंसान के लिए अपनी सारी हरी-भरी शाखाएं त्याग दी। वह इंसान भुल जाता है कि वह आज किस के कारण जीवित है तो। ©Aarti Sirsat #प्रकृति #प्रकृति_प्रेम #Nature
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read moreआरती राय
प्रकृति प्रकोप ************* अतृप्त धरा अति अकुलाई वर्षा रूठ नभ में खिसियाई फूलों की डाली मुरझाई पौधों ने भी शोक मनाई । क्यों रूठी हो धरा हमारी विकल भये सारे नर-नारी बादल क्रोधित नभ घनघोर बिजली चमक रही चहुँओर । आ जाओ अब वर्षारानी बुंद बुंद को तरसे प्राणी। बोली बरखा क्रोधित वाणी बंद करो अपनी मनमानी प्रकृति से मत करो खिलवाड़ वरना झेलो मेरा प्रहार ओ मानव जागो इकबार करो प्रकृति से अतिसय प्यार। लौट कर आऊँगी अगली बार तब तक झेलो सूखे की मार मत करो अब व्यर्थ प्रलाप करो धरा को नमस्कार। ******* आरती: प्रकृति प्रकोप
प्रकृति प्रकोप
read morePragya Amrit
मैं कहूँ या न कहूँ ये रूप मुझे तुमने जो दिया, खुद सदा ही मौज कर जीना मेरा मुश्किल किया, मैं व्यथित थी घुट रही प्रांगण में तेरे बन सजा, फिर भी रुख मोड़े रहे तुम ले भौतिकता का मजा । जब अतिक्रमण हुआ और चीत्कार मेरी फट पड़ी, उसमे से ही जन्म ले वो गूंज अदृश्य सट पड़ी। आज चुप तू और चुप तेरी कायनात लग रही, मैं कर अब मौज मानव तुझपे है मुश्किल वही। तू व्यथित सा घुट रहा प्रांगण मेरा उज्ज्वल हुआ, मैंने रुख मोड़ा नही पर कर्म तेरा प्रतिफल हुआ। अब तू सहमा जी रहा मैं प्राप्त करती छीना था जो, फल वही मिलता है प्राणी जो कभी बोया था वो।। #प्रकृति का प्रकोप कोरोना.. .
#प्रकृति का प्रकोप कोरोना.. .
read morePrakash
रास्ता #Prakashpoetry #prakashcomposition #prakashshayari #prakashquotes #hindiquotes #Prakash_Dil_Se #prakashhindiquotes #prakashwritings #
Sanchi Rawat
शोर-गुल में गुम थे; अब ये ख़ामोशी भली है, खौफ़ में ही सही; अपनों के संग सभी हैं, खुद से भी मशगूल थे; अब वक्त ही वक्त है, मरना भी दुश्वार था; वे भी कितने फारिग हैं, हालात बिगड़े ज़रूर हैं; मगर कुछ अच्छा हुआ है, जीने का सही सलीका तो अब सीखा है, मनुष्य तो मोहरा है; प्रकृति का खेल सारा है, तू रख हिम्मत बस; बुरी घड़ियां बदलती यहां हैं, हां, वक्त गुज़र जाएगा; एक-सा वक्त ठहरता कहां हैं! #प्रकृतिकीसीख
डॉ शिप्रा वर्मा Dr.Shipra Verma
एक अजीब सी शांति है इस धरा पर है गजब का पसरा सन्नाटा अब सुन सकती हूं मैं धुन चिड़ियों की जो कहीं खो सी गई थी इस कंक्रीट के जंगल में। अब मदमस्त लगने लगी है मुझे यह पवन मैं यूं ही नहीं होने लगी हूं मगन यह प्रकृति की शांति, यह पक्षियों का कलरव। अब मैं सुन सकती हूं, क्योंकि ना है शोर कहीं, ना ही है भागम भाग। मैं मस्त मगन सी आनंदित हो अब खूब सारी बातें करती हूं प्रकृति से। क्योंकि अब वह भी मेरी सुनने लगी है और मैं भी उसकी सुनने लगी हूं। 😊 #प्रकृतिकीमनमोहकशांति