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Sonal Panwar
शिशिर ऋतु के बाद बसंत का आगाज़ देता है प्रतिपल जीवन को एक नव संदेश, ऋतुएं तो आती है पर रुकता नहीं जीवन, विनाश के बाद निश्चय ही होता है 'सृजन'। ©Sonal Panwar बसंत ऋतु- विनाश के बाद सृजन👍💯💫🌼 #Basant #Spring #seasonspoetry #बसंत_ऋतु #Poetry #Shayari #Quotes #Nojoto
Mrinal Malviya
माटी की इस वसुंधरा पर कैसा यौवन छाया है हरियाली की चूनर ओढ़े पीले केशो का साया है कोयल की मीठी कूक से सारा चितवन हर्षाया है। रंग बिरंगे गहने पहनकर बसंत सुहाना आया है। ©Mrinal Malviya #बसंत_ऋतु
Anamika Nautiyal
ऐगे चैत यू बंसती बहार लीक फूल मां फूलार लीक फ्योलीं बुरांश खिलिगे बणो मां बच्चा-बच्चा खुश म्यार पहाड़ मां डेली-डेली फूल पडी गे आज फूलदेई कु त्योहार एगे अर्थात यह चैत्र बसंत की बहार लेकर आ गया है। फूलों में नई कोंपले आ गई है , वनों में खिलने वाली फ्योंली और बुरांस खिल गए हैं ।बच्चा-बच्चा आज पहाड़ों में खुश है। देहरी पर फूल पड़ चुके हैं आज फूलदेई का त्योहार है। ⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔ फूलदेई, छम्मा देई,फूल संक्रांति उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत चैत्र माह के संक्रांति के दिन होती है।इस दिन विशेष रूप से बच्चे जंगलों में जाकर रंग-बिरंगे फूलों को तोड़ते हैं और आसपास के सभी घरों की देहरी पर सजाते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं
अर्थात यह चैत्र बसंत की बहार लेकर आ गया है। फूलों में नई कोंपले आ गई है , वनों में खिलने वाली फ्योंली और बुरांस खिल गए हैं ।बच्चा-बच्चा आज पहाड़ों में खुश है। देहरी पर फूल पड़ चुके हैं आज फूलदेई का त्योहार है। ⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔⛔ फूलदेई, छम्मा देई,फूल संक्रांति उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक लोक पर्व है। इस पर्व की शुरुआत चैत्र माह के संक्रांति के दिन होती है।इस दिन विशेष रूप से बच्चे जंगलों में जाकर रंग-बिरंगे फूलों को तोड़ते हैं और आसपास के सभी घरों की देहरी पर सजाते हैं। यह पर्व कहीं-कहीं #अनाम #उत्तराखंडी #बसंत_ऋतु #गढ़वालीगर्ल #उत्तराखंडीसंस्कृति
read moreAshish Thakur Akela'
कविता: जश्न-ऐ-बहारा #MotivationalPoemonNature #प्रकृतिपरप्रेरणादायककविता #jashnebahara #जश्नेबहारा #Basant #vasant #बसंत #बसंत_ऋतु #Trending
read morePratik Singhal " Premi "
आओ मिल कर दीप जलाए देवी के चरणों में कलम सजाए विद्या की देवी सरस्वती का पूजन है आज चलो ज्ञान का इक नया हम अलख जगाए पीले वस्त्रों को धारण किए देखों ऋतुओं का राजा आया करके शीत ऋतु की विदाई देखों अपना मनचाहा मौसम आया बगियों में फूलों पर बहार अब आने लगी है खेतों में सरसों पर स्वर्ण चमक छाने लगी है जौ और गेहूँ की बालियाँ भी लगी है अब खिलखिलाने आमों के पेड़ों पर देखों मांजर भी गाने लगी है हर तरफ रंग बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगी है हर तरफ भर भर भँवरें भंवरानें लगे है बसंत के आते ही प्रकृति का कण कण खिल उठता है मानव तो क्या पशु पक्षी तक उल्लास से भर उठता है नयी उमंग से सूर्योदय अब हो रहा है नयी चेतना का आगमन भी हो रहा है चाहे कवि हो लेखक हो या हो कोई कलमकार बसंत पंचमी का इनके लिए महत्व रहा है "प्रेमी" के लिए भी इसका खास महत्व रहा है आज उसी बसंत ऋतु का पर्व है । हाँ आज हमारे बसंत का पर्व है। ©Pratik Singhal " Premi " #बसंत_पंचमी #बसंतोत्सव #बसंत_ऋतु #कविता #प्रेमी
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