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mukul pal

एक नई सुबह का गवाह बना
एक नया सूरज मन मैं उगा

सुनकर पंछियों की चहचहाट
मेरा दिल मुझे लें उड़ा

एक नए खुले गगन का विचरण
एक नई तस्वीर का विमोचन

करिश्में नए कुछ प्रकृति के
कुछ मीलों दूर,कुछ यहीं के

उड़ते हुए सरहदें लांघ गया
बेफिक्री में हदें लांघ गया

कितने कुछ करने को हैं
मन मेरा जल्द नहीं भरने को हैं

हर पल एक कीमती सौगात है
जो बीत गया वो सिर्फ याद हैं

ये सुबह कुछ जादू कर गई
वयस्क काया में बचपन भर गई

मुकुल पाल #dawn #seher #सुबह #newday #optimism #शुरुआत

sushma Nayyar

अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही

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अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही

आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही

मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही

जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही

चंद शब्दों और अल्फाजों में मैं सारा जीवन बांच रही

सांसों के नैन कटोरे में, मै तिनका तिनका डाल रही

जीवट है जिजीविषा जहां, मै वहीं से रास्ता लांघ रही

काजल टीका नैनो से ले, मैं नजर दोष को बांध रही

न नदी समंदर ताल जहां, है मुझको जल की आस वहीं

बिन पिए ही जो बुझ जाए ,इतनी हल्की मेरी प्यास नहीं 

हैं अंतर्द्वंद तो रहने दो,मेरे मन के भीतर आस बड़ी

जीवट है मन जीवट है तन ,मैं हार जीत के पार खड़ी

अंतर्द्वंद ही अंतर्द्वंद मैं उनके भीतर आन खड़ी

मैं अंतर द्वंद्व आे की गठरी में अपने मन को बांध रही ।।

        _____सुषमा नैय्यर अंतर्द्वंद ओ की गठरी में अपने मन को बांध रही

आस उजास के दीपक भीतर,झांक झांक कर ताक रही

मन अंदर तम बाहर भी तम, तम भीतर रस्ता लांघ रही

जहां नहीं उम्मीद कोई, उम्मीद वहीं से मांग रही

अभिषेक तिवारी

#RDV18 रुकना मना है इस बार बार की हार से आहत हो क्या ? किस्मत के पड़ते वार से आहत हो क्या ? पर याद रखो इन बोझों से झुकना मना है । उठ कर गिरना सही पर रुकना मना है ।।

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#RDV18
रुकना मना है

इस बार बार की हार से आहत हो क्या ?
किस्मत के पड़ते वार से आहत हो क्या ?
पर याद रखो इन बोझों से झुकना मना है ।
उठ कर गिरना सही पर रुकना मना है ।।


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