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vishnu prabhakar singh
अकूत मौज नहीं है कथित सजगता ने उसे खा लिया है निवाला नहीं है मौज दायरा विहिन है मौज आचरण तारत्मयता जिसे भ्रष्ट करती हो वो मौज नहीं है ! शून्य के साथ है मौज ऊँचाई की पराकाष्ठा है मौज यह युग नहीं है इस दिवा का अर्थ आधार भी खो चुका है मौज तृष्णा बन कर रह गया बेचारा अंश चाहिये तो मृत्यू होगी अनेक डर है मौज नहीं है ! निभाया नहीं जा सकता मौज अभ्यास से प्रभाव विहिन हो जाता मौज मौज नहीं तो मौज की संभावना भर मस्ती नहीं है मौज निर्वाण के समकक्ष वाला स्वर्ण-स्तम्भ छटकता य़ायावरी ब्रह्म से घिरा पदम् विभूषण है मौज अलंकार नहीं है मौज नहीं है अभी चरम पर गया हुआ है ! मौज प्रेम है अखंडता है,जीवंत है,कगार है लक्ष्य है चाहत,संतुष्टी नहीं है मौज विकास है मौज करूणा है मौज अहिंसा है मौज कविता है मौज अद्भूत सरिता है मौज आज सामुहिकता खास है मौज सबका साथ सबका विकास है मौज !! विप्रणु #फक्कड़ संहिता
#फक्कड़ संहिता
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#OpenPoetry तुम्हें पाना भी "मुहब्बत" है तुम्हें खोना भी "मुहब्बत" है हिज्र-ए-मुहब्बत में फक्कड़ हँसकर रोना भी मुहब्बत है सचिन "फक्कड़" मेरी पंक्तियाँ
रजनीश "स्वच्छंद"
फक्कड़।। मैं एक फक्कड़ अदाकार हूँ, बात छुपा नहीं पाता हूँ। कभी पुष्प तो कभी खार हूँ, जात छुपा नहीं पाता हूँ। तू डाल डाल, मैं पात पात, कैसे बने फिर बोलो बात। लोग कहें ये ज़ुबां है काली, मिथ्या अभिनन्दन हुआ नहीं। एक जगह बतलाओ मुझको, जहां ये क्रंदन हुआ नहीं। कलम मेरी पहचान रही, हमसाया हमसंगी है। स्वर विरोध के फूटे इससे, विद्रोही बड़ी ये जंगी है। किस ख़ातिर तेरा सम्मान करूँ, जो ये दरबार सजाया है। किस डर मैं कर लूं वंदन, अपना घरबार जलाया है। है तेरा क्या जो दान करे, सब मिट्टी में मिल जाना है। तुम कांटे जितने बोओगे, ये पुष्प वहीं खिल जाना है। आदि अनन्त से मुक्त रहा, मैं मोक्षधाम का वासी हूँ। धनातुर हो हवन ये कैसे, मैं कलम लिया सन्यासी हूँ। न वानप्रस्थ न चौदह बरस, यहीं मैं लंका जलाऊंगा। शब्दों की रणभेरी बना, युद्ध का डंका बजाऊंगा। रक्तपुरित ये आँख लिए, मैं लाल जहां कर जाऊंगा। ढली सुबह की लाली जब जब, मैं पुनः लौट कर आऊंगा। दे अमरत्व का वर शब्दों को, निर्मित लौह-स्तंभ करूंगा। ले प्रेरणा दिनकर से फिर, मैं शब्दों में दम्भ भरूंगा। वज्रित होगा हर एक प्रहार, जरा की संधि खण्डित होगी। फिर गांधारी का होगा श्रृंगार, ना बन अंधी दण्डित होगी। एकलव्य अंगूठा नहीं कटेगा, कवच कर्ण का रक्षित होगा। ब्रह्मास्त्र चलेगा कोई नहीं, न गर्भ शिशु से वंचित होगा। रौशनी की चकाचौंध में, रात छुपा नहीं पाता हूँ। मैं एक फक्कड़ अदाकार हूँ, बात छुपा नहीं पाता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" फक्कड़।। मैं एक फक्कड़ अदाकार हूँ, बात छुपा नहीं पाता हूँ। कभी पुष्प तो कभी खार हूँ, जात छुपा नहीं पाता हूँ। तू डाल डाल, मैं पात पात,
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