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Ajay Amitabh Suman
कृपाचार्य कृतवर्मा सहचर मुझको फिर क्या होता भय, जिसे प्राप्त हो वरदहस्त शिव का उसकी हीं होती जय। त्रास नहीं था मन मे किंचित निज तन मन व प्राण का, पर चिंता एक सता रही पुरुषार्थ त्वरित अभियान का। धर्माधर्म की बात नहीं न्यूनांश ना मुझको दिखता था, रिपु मुंड के अतिरिक्त ना ध्येय अक्षि में टिकता था। ना सिंह भांति निश्चित हीं किसी एक श्रृगाल की भाँति, घात लगा हम किये प्रतीक्षा रात्रिपहर व्याल की भाँति। कटु सत्य है दिन में लड़कर ना इनको हर सकता था, भला एक हीं अश्वत्थामा युद्ध कहाँ लड़ सकता था? जब तन्द्रा में सारे थे छिप कर निज अस्त्र उठाया मैंने , निहत्थों पर चुनचुन कर हीं घातक शस्त्र चलाया मैंने। दुश्कर,दुर्लभ,दूभर,मुश्किल कर्म रचा जो बतलाता हूँ , ना चित्त में अफ़सोस बचा ना रहा ताप ना पछताता हूँ। तन मन पे भारी रहा बोझ अब हल्का हल्का लगता है, आप्त हुआ है व्रण चित्त का ना आज ह्रदय में फलता है। जो सैनिक योद्धा बचे हुए थे उनके प्राण प्रहारक हूँ , शिखंडी का शीश विक्षेपक धृष्टद्युम्न संहारक हूँ। जो पितृवध से दबा हुआ जीता था कल तक रुष्ट हुआ, गाजर मुली सादृश्य काट आज अश्वत्थामा तुष्ट हुआ। ©Ajay Amitabh Suman #Poetry_on_Duryodhana, #Ashvatthama, #Mahabharata, #Epic, #Poetry_on_mahabharata, #Poertry_on_Ashvtthama अश्रेयकर लक्ष्य संधान हेतु क्रियाशील हुए व्यक्ति को अगर सहयोगियों का साथ मिल जाता है तब उचित या अनुचित का द्वंद्व क्षीण हो जाता है। अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि कृतवर्मा और कृपाचार्य का साथ मिल जाने के कारण उसका मनोबल बढ़ गया और वो पूरे जोश के साथ लक्ष्यसिद्धि हेतु अग्रसर हो चला।
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........................... ©Ajay Amitabh Suman #Pauranik, #Kavita, #Duryodhana, #Poetry_on_Duryodhana, #Ashvatthama, #Mahabharata, #Epic, #Poetry_on_mahabharata, #Poertry_on_Ashvtthama अश्रेयकर लक्ष्य संधान हेतु क्रियाशील हुए व्यक्ति को अगर सहयोगियों का साथ मिल जाता है तब उचित या अनुचित का द्वंद्व क्षीण हो जाता है। अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि कृतवर्मा और कृपाचार्य का साथ मिल जाने के कारण उसका मनोबल बढ़ गया और वो पूरे जोश के साथ लक्ष्यसिद्धि हेतु अग्रसर हो चला।
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