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अबोध_मन//फरीदा
सुन.! पंख फैला उड़ गए पखेरू, अब तू का बैठी ताक रही। विस्तृत नभ कबसे प्रतीक्षारत, तेरे ‘आँगन’ से उसे जाना था। ... ©अबोध_मन//फरीदा #पंख #आस_उम्मीद #बिछड़ते_अपने #अबोध_मन #मुक्तक💝 #अबोध_मुक्तक #बदलते_रिश्ते सुन.! पंख फैला उड़ गए पखेरू, अब तू का बैठी ताक रही। विस्तृत नभ कबसे प्रतीक्षारत, तेरे ‘आँगन’ से उसे जाना था। ...
#पंख #आस_उम्मीद #बिछड़ते_अपने #अबोध_मन मुक्तक💝 #अबोध_मुक्तक #बदलते_रिश्ते सुन.! पंख फैला उड़ गए पखेरू, अब तू का बैठी ताक रही। विस्तृत नभ कबसे प्रतीक्षारत, तेरे ‘आँगन’ से उसे जाना था। ... #कविता #फ़क़तफरीदा
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कह देना मन में कहने को कुछ आए तो, रख लेना यादों में हमको.. तनिक जो.. कभी तेरा दिल छू पाए तो.. देखो ना.. मरू है सूखा, दरिया खारा, कौन है...बोलो इश्क़ की प्यास बुझाए जो। ‘अबोध’ है.. समझा देना ना प्यार से कुछ ऐसा हो.. ग़र मुझे न समझ में आए तो। .. अबोध_मन//“फरीदा” ©अवरुद्ध मन कहोगे नहीं...फिर भी समझ जाऊँगी... पर चाहती हूं कि तुम ख़ुद उसे ज़ुबान दो।❤️ © फ़क़त “फरीदा” #अबोध_मन #अबोध_poetry #कहीं_अनकही #बिछड़ते_अपने
कहोगे नहीं...फिर भी समझ जाऊँगी... पर चाहती हूं कि तुम ख़ुद उसे ज़ुबान दो।❤️ © फ़क़त “फरीदा” #अबोध_मन #अबोध_poetry #कहीं_अनकही #बिछड़ते_अपने #कविता #proposeday #कुछभी_typs #अबोध_अपराधबोध
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उसकी आँखों में ख़ुद को हम खोजते रहे, तस्वीर ली थी उसने, बस आँखों में सजाना याद नहीं। हृदय की स्पंदन में हम उसको सुनते रहे, ’चाहता तो बेहिसाब है, बस इज़हार नहीं,कोई बात नहीं। यादों की गठरी को ख़ुद में भींच के सोता है, अंदर ही अंदर वो रोता है, बाहर कहीं कोई बरसात नहीं। मुस्कुराती आँखों से वो आईने को मात देता है, कौन देख उसे कह सकता, कि दिल से वो है शाद नहीं। अपनी ही दीवारों पे,जज़्बात वो अपने लिखता है, रानाइयाँ, रुबाइयाँ, फलसफे, क्या–क्या उसे ज्ञात नहीं। अपनी डगर, अपना सफ़र, चलता जाए अकेला, ’अबोध’ तुझे बतलाना था, कल वक्त नहीं, मैं आज नहीं। ... _अबोध_मन//“फरीदा” ©अवरुद्ध मन उसकी आँखों में ख़ुद को हम खोजते रहे, तस्वीर ली थी उसने, बस आँखों में सजाना याद नहीं। हृदय की स्पंदन में हम उसको सुनते रहे, ’चाहता तो बेहिसाब है, बस इज़हार नहीं,कोई बात नहीं। यादों की गठरी को ख़ुद में भींच के सोता है, अंदर ही अंदर वो रोता है, बाहर कहीं कोई बरसात नहीं।
उसकी आँखों में ख़ुद को हम खोजते रहे, तस्वीर ली थी उसने, बस आँखों में सजाना याद नहीं। हृदय की स्पंदन में हम उसको सुनते रहे, ’चाहता तो बेहिसाब है, बस इज़हार नहीं,कोई बात नहीं। यादों की गठरी को ख़ुद में भींच के सोता है, अंदर ही अंदर वो रोता है, बाहर कहीं कोई बरसात नहीं। #alone #शायरी #नज़्म #nojotonazm #अबोध_मन #अबोध_poetry #बिछड़ते_अपने
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