Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best सुनकर Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best सुनकर Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutसुनकर meaning in hindi, सुनकर फांसी का हुक्म, सुनकर meaning in english, सुनकर मेरी कहानी, सुनकर बहुत अच्छा लगा,

  • 67 Followers
  • 446 Stories

धाकड़ है हरियाणा

#कमाल कर दिया इस बच्चे से #सुनकर हँस हँसकर बेहोश हो जाओगे

read more

Rajput ji

चलोअब जानेभी दो, क्याकरोगे ..........

read more

ঔৣRiຮђi

#Khamoshi

read more

Abdul Ashrafi

#sushantsingh love you

read more
💕💕 एहसास 🔥🔥
"#मुद्दते इंतज़ार के ""#बाद "
"#वो"#बोले""#मरते हैं "#तुम पर,,,"
"#उफ्फ""#और हम ""#ये,,,"
""#सुनकर ही ""#मर ""गए

©Abdul Ashrafi #sushantsingh 
love you

Rakesh frnds4ever

#सुनकर देखो कभी ,, #बारिश की धुन, प्यासी #धरती को तृप्त करती रून-झुन।। कभी आंखों से सुनो बेजुबान जानवरो की वेदना, क्यों नहीं होती हमको इनसे कभी #संवेदना

read more
सुनकर देखो कभी ,,बारिश की धुन,
प्यासी धरती को तृप्त करती  रून-झुन।।

कभी आंखों  से सुनो 
बेजुबान जानवरो की वेदना,
क्यों नहीं होती हमको इनसे कभी संवेदना

कभी ओस को छू के सुने,
अपने शरीर की कोमलता को

बच्चो की आंखो  से सुने,
छोटी छोटी खुशियो मे चमकना
जरा सी बात पे दमभर बरसना,,


कभी कमजोरो को सुने,
क्योंकि 
कोई न सुनता उनके जज्बात, 
लोगों की मदद करें,
घुलें मिलें
बदलने की कोशिश करें सभी के हालात,,,
कभी सुने,,,
अनसुनी बातों,रिश्तों ,एहसासों,, अनुभावों को
कभी सुने अनसुने किस्सों,,कहानियों,,जज्बातों सन्नटों को,,,
कभी सुनें,,,,,...... #सुनकर देखो कभी ,,
#बारिश की धुन,
प्यासी #धरती को 
तृप्त करती  रून-झुन।।

कभी आंखों  से सुनो 
बेजुबान जानवरो की वेदना,
क्यों नहीं होती हमको इनसे कभी #संवेदना

Amandeep Sinha

मेरे विचार |

read more
मनुष्य की सबसे बड़ी विडम्बना

          उसे झूठी तारीफ़ सुनकर
     बर्बाद होना तो पसंद है लेकिन
         सच्ची आलोचना सुनकर
           सम्भलना मंजूर नहीं । मेरे विचार |

dayal singh

bachpan ke din

read more
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

Deepak Raj

read more
मेरे संघर्ष की कहानी 

जीवन एक संघर्ष है (कहानी)

एक पिता अपनी बेटी के साथ उसके घर में रहता था। दोनों ही एक दूसरे को बहुत सम्मान व प्यार देते थे और बहुत मिलजुलकर साथ रहते थे। एक दिन बेटी अपने पिता से शिकायत करने लगी कि उसकी ज़िन्दगी बहुत ही उलझी हुई है। बेटी आगे कहने लगी “मैं जितना सुलझाने की कोशिश करती हूँ जीवन उतना ही और उलझ जाता है, पापा! सच में मैं बहुत थक गयी हूँ अपने जीवन से लड़ते-लड़ते। जैसे ही कोई एक समस्या खत्म होती है तो तुरंत दूसरी समस्या जीवन में दस्तक दे चुकी होती है। कब तक अपने आप से और इन समस्याओं से लड़ती रहूंगी।” बेटी की बातें सुनकर पिता को लगा वह काफी परेशान हो गई है।

सारी बातें ध्यान से सुनकर पिता ने कहा मेरे साथ रसोई में आओ। पिता कि आज्ञानुसार बेटी अपने पिता के साथ रसोई में खड़ी हो गई। उसके पिता ने कुछ कहे बिना तीन बर्तनों को पानी सहित अलग-अलग चुल्हों पर उबालने रख दिया। एक बर्तन में आलू, एक में अण्डे और एक में कॉफी के दाने डाल दिए और चुपचाप बिना कुछ कहे बैठ के बरतनों को देखने लगे।

20-30 मिनट पश्चात पिता ने चुल्हे बंद कर दिए। अलग-अलग प्लेट में आलू व अण्डे और एक कप में कॉफ़ी निकालकर रख दी। फिर अपनी बेटी की ओर मुड़कर पूछा – बेटी तुमने क्या देखा?
बेटी ने हंसकर जवाब दिया – आलू, अण्डे और कॉफ़ी।
पिता ने कहा – जरा नज़दीक से छूकर देखो फिर बताओ तुमने क्या देखा?
बेटी ने आलू को छूकर देखा तो महसूस किया कि वो बहुत ही नरम हो चुके थे।
पिता ने अपनी बात दोहराई और कहा – अब अंडे को छीलकर देखो।
बेटी ने वैसा ही किया और देखा अंडे अंदर से सख्त हो चुके थे।
अंत में पिता ने कॉफ़ी का कप पकड़ाते हुए कहा अब इसे पियो।
कॉफ़ी की इतनी अच्छी महक से उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और वह कॉफी पीने लगी।
फिर उसने बड़े उत्सुकता के साथ अपने पिता से पूछा – पापा इन सब चीज़ों का क्या मतलब है। आप मुझे क्या समझाना चाहते है?

बेटी की उत्सुकता को शांत करने के लिए पिता ने समझाया – आलू, अण्डे और कॉफ़ी तीनो एक ही अवस्था से गुजरे थे। तीनों को एक ही विधि से उबाला गया था। परन्तु जब इन चीज़ों को बाहर निकाला गया तो तीनों की प्रतिक्रिया अलग-अलग थी। जब हमने आलू को उबालने रखा था तो वह बहुत सख्त था परन्तु उबालने के बाद वो नरम हो गया। जब अण्डे को उबलने रखा था तब वह अन्दर से पानी की तरह तरल था परन्तु उबालते ही सख्त हो गया। उसी तरह जब कॉफ़ी के दानों को उबालने रखा तब वह सारे दाने अलग-अलग थे मगर उबालते ही सब आपस में घुल-मिल गए और पानी को भी अपने रंग में रंग दिया।

बेटी! ठीक इसी तरह जीवन में भी अलग-अलग परिस्थितियां आती रहती है। तब इंसान को खुद ही फैसला लेना होता है कि उसे किस परिस्थिति को कैसे सम्भालना है। कभी नरम होकर, तो कभी सख़्त होकर और कभी-कभी सब के साथ घुल-मिलकर।

दोस्तों, समस्या किसके पास नही होती? दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नही जो परेशानी का सामना ना कर रहा हो। हर समस्या हमें कुछ ना कुछ सिखाकर ही जाती है। परेशानियाँ हमें अनुभवी बनाती है। बस एक बात हमेशा याद रखे अगर जीवन में समस्या है तो उसका समाधान भी है। वो समाधान क्या है इसका पता आपको स्वयं लगाना होगा। समस्याओं से हार ना माने बल्कि जीवन की हर चुनौती का हँसकर सामना करे और खुद के मनोबल को मजबूत बनाएं। समस्या से भागना या कतराना एक कमजोर व्यक्ति की पहचान है।

Amit Pratap Agnihotri

read more
#अंदाज़ा मेरी #मोहब्बत का सब #लगा लेते हैं,
जब #तुम्हारा नाम #सुनकर हम #मुस्कुरा देते हैं।।

Lata Sharma सखी

आखिरी फैसला आज बारी थी #सखी की आखिरी फैसला करने की, या तो वो चल पड़ती उस राह पर जहाँ मुहब्बत में बस दर्द ही दर्द था, या फिर मोड़ लेती अपनी रहा उस अकेलेपन की तरफ जो उसका खुद का था। यूँ तो चंदर कहता कि उसे उझसे प्यार है, लेकिन जब भी अपनाने की बारी आती वो कहता एक बार फिर से सोच लो। उसके मुंह से ये बात बार बार सुनकर वो अंदर ही अंदर टूट रही थी। हर बार उसकी ये बात उसके अंदर एक घाव कर देती, और वो असहाय सी कहती, "रहने दो चन्दर, हम तन्हा भले हैं। यूँ ही जिंदगी अकेले काट लेंगे" और फिर झूठ बोलती, "मुहब्बत तो तुम्हें हुई है, हमको नहीं, तुम अपना सोचो।" ये सुनकर चन्दर कह देता सही है। और वैसे भी मेरे साथ तुम जिंदगी नहीं जी पाओगी। और कुछ दिन बाद फिर उसके लबों पर वही जादुई शब्द "i love you #sakhi होते। और वो कसमसाकर रह जाती। न हाँ कह पाती और न मना कर पाती। चन्दर का दिल तोड़ नहीं पाती तो खुद की भावनाएं गहरे तक दबा जाती। 
अब बहुत मुश्किल हो रहा उसके लिए एहसासों को दबाना, और उस दर्द में जीना की उसके एहसासों  को कभी भी वो नहीं मिलेगा। धीरे धीरे वक़्त बीतने के साथ #सखी समझने लगी थी कि चन्दर उसे प्यार नहीं करता बल्कि टाइम पास कर रहा है, और वो अब वो टाइम पास नहीं बनना चाहती थी। चन्दर ने आज फिर कहा था उसे मुहब्बत है, मगर इस बार सखी ने #फैसला ले लिया। और चन्दर से सदा के लिए अलग होकर अपने लिए उम्रभर का दर्द ले लिया। और चन्दर को अपने आप से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया। ©सखी #akhiri #फैसला
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile