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Poonam Suyal

ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई, पसीने से हैं तरबतर लू के थपेड़ों के साथ-साथ, मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई उनको भी दावत का, सुनहरी मौका मिलता है यही खून चूसने से पहले,

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ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई,
पसीने से हैं तरबतर 
लू के थपेड़ों के साथ-साथ,
मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई 

उनको भी दावत का,
सुनहरी मौका मिलता है यही 
खून चूसने से पहले,
कानों में गीत भी गुनगुनाते हैं सभी 

होते ही शाम,
सारे भिनभिनाने लगते हैं आस - पास 
उनको भगाने के सभी उपाय,
हो जाते हैं बेकार 

अपने वजन ज़्यादा होने का,
हमें आज फ़ायदा नज़र आया 
उड़ा कर ले जाना चाहते थे हमें मच्छर,
पर कोई ना हमें उठा पाया  ये कैसा गर्मी का मौसम है भाई,
पसीने से हैं तरबतर 
लू के थपेड़ों के साथ-साथ,
मच्छरों की वज़ह से भी जान पर बन आई 

उनको भी दावत का,
सुनहरी मौका मिलता है यही 
खून चूसने से पहले,

Poonam Suyal

ख़ुद को पहचान ही गई वो नैनों में ज्वाला थी उसके, आख़िर कब तक अपमान सहती वो देना ही पड़ा इक दिन जवाब, आख़िर कब तक चुप रहती वो दिल में उसके भी थी उमंगें,

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ख़ुद को पहचान गई वो 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) ख़ुद को पहचान ही गई वो 

नैनों में ज्वाला थी उसके,
आख़िर कब तक अपमान सहती वो 
देना ही पड़ा इक दिन जवाब,
आख़िर कब तक चुप रहती वो 

दिल में उसके भी थी उमंगें,

Poonam Suyal

प्यारी बिंदिया बिंदिया उसके माथे की, जगमगा रही है इतनी दिल को मेरे देती असीम सुख, चाँद की शीतल चाँदनी जितनी तेरे कानों के झुमके,

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प्यारी बिंदिया 

(अनुशीर्षक में पढ़ें)
 प्यारी बिंदिया 

बिंदिया उसके माथे की,
जगमगा रही है इतनी 
दिल को मेरे देती असीम सुख,
चाँद की शीतल चाँदनी जितनी 

तेरे कानों के झुमके,

Nitesh Prajapati

"वात्सल्य रस" (पिता पुत्र का प्रेम) 

बाप और बेटे के बीच होता है प्यार अपार,
लेकिन कभी जता नहीं पाते एक दूसरे से। 

हालांकि एक बाप को बेटी बहुत प्यारी होती है, 
लेकिन वह अपने बेटे को भी बहुत ही प्यार करते हैं। 

बेटा कभी ज़ाहिर नहीं कर पाता बाप के प्रति प्यार, 
लेकिन उसके दिल में होता है अनहद प्यार। 

डरता है एक बेटा अपने बाप को गले लगाने से, 
इसका मतलब दूरी नहीं बल्कि दोनों के बीच होता है वात्सल्य रस। 

वैसे ही एक बाप अपने बेटे को कितना भी डांट ले, 
लेकिन मन में तो उसके बेटे की तरक्की ही होती है। 

बचपन में एक बाप बेटे को ऊंगली पकड़कर चलना सिखाता है, 
वही बेटा बुढ़ापे में उस बाप का आखिरी साँस तक सहारा बनता है। 

-Nitesh Prajapati 


 रचना क्रमांक :-5

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Nitesh Prajapati


"रामदेव पीर"

आँख खुलते ही जपु तेरा नाम,
मन में तेरी छवि बनाकर करू तेरा पावन दर्शन।

माता मैणादे और पिता अजमल जी का कुंवर,
श्री कृष्णा का ग्यारहवाँ अवतार श्री रामदेव पीर कहलाया। 

सुबह शाम धूप करूं मे तेरी अरज में, 
भक्ति भाव से पूजकर आरती करूं में तेरी। 

हो तुम तो सृष्टि के कण-कण में हाजरा हजूर, 
जो पूजता है भक्ति भाव से हो जाता है उसका बेड़ा पार। 

ली जब मक्का के पीरों ने अग्नि परीक्षा, 
तब दे के उसको परचा रामदेव "पीर" कहलाया। 

ना रखा भेदभाव जात पात में,
दे के सबको एक ही मान, दिया संदेश सामाजिक एकता का। 

ना चाहिए तुमसे और कुछ, जितना दिया काफ़ी है, 
बस चाहिए तो तेरे नाम की भक्ति आखिरी साँस तक।

-Nitesh Prajapati 

  रचना क्रमांक :-4

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Nitesh Prajapati

"जोकर" (हास्य किरदार)

है मुखौटे के पीछे छुपा, लोगों को अनहद हसाता, 
छुपा के अपना चेहरा यह हास्यास्पद किरदार जोकर कहलाया। 

पहनके सतरंगी वेशभूषा, 
मंच पर मूर्खों की भूमिका बजाता। 

दो हाथों से थप्पड़ लगाकर नए नए करतब दिखाता, 
और अपनी कला से यह सबको बहुत ही हसाता। 

बच्चों का प्यारा बड़ों की चिंता कम करने वाला, 
हास्य रस का पुजारी हमेंशा परोसता हास्य रस। 

है यह तो एक बनावती किरदार, 
फिर भी दिल में दर्द छुपा कर चेहरे पर मुस्कान रखता। 

मंच पर तो मिलती है वाह-वाह, 
लेकिन पर्दे के पीछे इसे कोई नहीं पहचानता। 

ना नाम, ना पहचान, ना खुद का वजूद, 
फिर भी मुँह पर मुखोटा लिए सबको हसाता ये जोकर।

-Nitesh Prajapati 


 रचना क्रमांक :-3

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Nitesh Prajapati

"रौद्र रस"

सजीव के मन का एक भाव होता है रौद्र रस,
जब ना हुई दिल की तब ये प्रकट होता है। 

खो देता है आपा मनुष्य अपने आप पर,
और क्रोध के आवेश मे कुछ अनिच्छिनिय कर डालता है। 

लेकिन आज के कलयुग में मनुष्य का भी कोई दोष नहीं, 
ये आदमी भी ऐसा ही हो गया है कि सामने से दिलाता है क्रोध भाव। 

चाहे बात हो कोई घर की या फिर हमारे वास्तविक जीवन की, 
अपनी इच्छा संतुष्टि के लिए लोग आ जाते हैं आवेग में।

झगड़ रहे हैं लोग आज जाति और धर्म के नाम पर, 
और नष्ट कर रहे हैं हमारे राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति। 

-Nitesh Prajapati 
 रचना क्रमांक :-2

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Nitesh Prajapati

"श्रृंगार रस" 

सजती संवरती हूंँ मे तेरे लिए ओ पिया,
तेरे नाम का ही सिंदूर पूरती हूंँ ओ पिया।

बालों में फूलों की माला तेरे ही लिए सजाती हूंँ,
ताकि उसकी खुशबु से तु खींचे आए मेरे करीब ओ पिया।

तेरे ही लिए तो सजा के रखती हूं घर का आँगन,
एक बार आजा पिया मेरे आँगन को पवित्र करने।

इस बारिश के मौसम में मोहे भीगना है तेरे संग,
सुनकर मेरे अंतरात्मा की पुकार पूरी कर जा मेरी तमन्ना। 

तेरे मिलन की आस में पल-पल तड़पू में, 
लेकिन फिर भी बावरी होकर फिर से नयी आश बांधू मे। 
 रचना क्रमांक :-1

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jagruti vagh

हमारे बीच रिश्ता नहीं खून का
पर राब्ता है दिल से दिल का

वो है माँसी की नन्ही गुड़िया
मेरी तो वो मस्ती की पुड़िया

माँ-बाप से ज्यादा रहे मेरे पास
मुझे दिलाती मातृत्व का एहसास

उसका नखरे करके खाना-पीना
मुझे देखते ही रोना भूल जाना

मेरी बाहों में सदा कांधे पर सोती
होंठ मेरे गालों पर रख मुझे चुमती

उसके आगे भूल जाऊ सारा जहाँ
 वो है जैसे मेरी बेटी और मैं माँ 

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jagruti vagh

जय हो माँ आशापुरा,खोडीयार,शेरावाली
बहुचर अंबे माँ,चंडी चामुंडा,माँ दुर्गा काली

दुख निवारिणी,संकट हारिणी,शक्ति की देवी
किसी भी भक्त का दामन नहीं रहने दे खाली

नौ दिन छोड़ के पूरे वर्ष करूँ प्रतीक्षा उनकी
आगमन की ख़ुशी में चढ़ जाये होंठों पे लाली

मैं चौक में भूल जाऊ रित इस दुनिया की
माता का नाम लिये खेलूँ डोडिया,तीन ताली

ममता की मूरत भक्तो के साथ रहना सदा
हैं करोड़ों देवी देवताएं आपकी बात निराली 
Jay Ambe😍


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