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सौरभ अश्क
White जन-मन की अभिलाषा हो तुम ही भाग्य विधाता हो दाता के देवता तुम ठहरे तुम ही शिव-शिवाला ठहरे कृत्य-नृत्य के तुम दर वाले तुम ही पत्थर-मोम पिहारे आशा के हैं लौ जलाते तुम अंधकार बाटते-मिटाते हो असुर के तुम संहारे तुम ही देवी तुम ही उजियारे तुम ही जीवन तुम ही मरण तुम ही शांति तुम ही अमन तुम्हें पुकारते जग के हारे तुम जिताते उन्हें संवारते हैं शरण चित मेरा तुम्हारे शरणागत हैं हम सांझ-सकारे तुम ही ॐ हो तुम ही नमः तुम ही खड्ग और बाण तुम्हीं जय-जय हो अभिमान तुम्हारा जय -जय हो कृपा निधान तुम्हारा कर जोड़ नमन करबद्ध नमन हो जग में अमन हो मेरा अमन ©सौरभ अश्क #माँ #प्रेम #अपने #इक्षाशक्ति
माँ #प्रेम #अपने #इक्षाशक्ति
read moreSatya Prakash Upadhyay
खुद पर नाराज़गी कब होती है? जब माँ पिता का ध्यान नहीं रख पाता जब रूठे दोस्तों को मना नहीं पाता जब भैया को मज़ाक में कुछ ज्यादा बोल जाता जब दीदी के कॉल का जवाब नहीं दे पाता ।।तब होती है ख़ुद पर नाराज़गी।। जब प्रभु का नाम नही ले पाता जब संतों संग बैठ नहीं पता जब लोगों को कुसंग में देखता जब गरीब कमजोरों की मदद नहीं कर पाता। ।।तब होती है ख़ुद पर नाराज़गी।। इन सब को मैं कर नहीं पाता ,ये तो बस एक बहाना है। कारण तो इसका एक मात्र दृढ़ इक्षाशक्ति का कम हो जाना है।। #खुद पर #नाराज़गी #कब #होती है? #जब #माँ #पिता का #ध्यान #नहीं #रख #पाता जब #रूठे #दोस्तों को #मना नहीं पाता जब #भैया को #मज़ाक में कुछ #ज्यादा बोल जाता जब #दीदी के #कॉल का #जवाब नहीं दे पाता ।।तब होती है ख़ुद पर नाराज़गी।।
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